1 ! परिहा २८७१ परी' परिहा-सज्ञा पुं० [१] एक प्रकार का छद । जैसे,-सुनत दूत के परिहारना-क्रि० से. [ स० प्रहार, हिं० परहार, परिहार + ना वचन चतुर चित मे इसे । लेहिताक्ष द्वे करन वात में हम (प्रत्य०)] ( शस्त्र श्रादि) प्रहार करना । चलाना । 30- फैसे । बल ते सबै उपाय पोर तब कीजिए । नहि देहौं भेंट पारथ देखि बाण परिहारा । पंख काटि पावक मह डारा । कुठार प्राण को लीजिए। -हनुमन्नाटक (शब्द॰) । -सवल० (शब्द॰) । परिहाण-सज्ञा पुं० [स०] हानि । नुकसान [को०] । परिहारी-मञ्ज्ञा पुं० [ स० परिहारिन् ] १ परिहरण करनेवाला। परिहाणि-सचा स्त्री० [सं०] १ घाटा। हानि । २ ह्रास । प्रव- हरणकारी । २ निवारण, त्याग, दोषक्षालन,, हरण या गोपन करनेवाला। नति । : परित्याग । उपेक्षा [को॰] । परिहार्य–वि० [सं०] १ जिसका परिहार किया जा सके। जिससे परिहानि-सञ्चा श्री० [ स०] दे० 'परिहाणि' [को०] । वचा जा सके । जिसका त्याग किया जा सके। जो दूर परिहार-सज्ञा' पु० [सं०] १. दोष, अनिष्ट, खरावी आदि का किया जा सके । २ परिहार योग्य । जिसका निवारण, निवारण या निराकरण । दोषादि के दूर करने या छुडाने त्याग या उपचार करना,उचित हो। का कार्य । २. दोषादि के दूर करने की युक्ति या उपाय । इलाज । उपचार ॥ ३ त्याग । परित्याग । तजने या त्यागने परिहास--सचा पुं० [स०] १. हॅसी। दिल्लगी। मजाक । ठट्ठा । का कार्य । ४. गाँव के चारो ओर परती छोडी हुई वह भूमि उ०-क्या आप उसका परिहास करते हैं ? किसी बड़े के 'जिसमें प्रत्येक ग्रामवासी को अपना पशु चराने का अधिकार विषय में ऐसी शका ही उसकी निदा है |--भारतेंदु ग्र०, होता था और जिसमें खेती करने की मनाही होती थी। भा० १, पृ० २६६ । २. क्रीड़ा । खेल । पशुप्रो को चरने के लिये परती छोडी हुई सार्वजनिक भूमि । परिहासकथा--सज्ञा स्त्री॰ [ स०] हास्ययुक्त कहानी। परिहासयुक्त, चरहा । ५ लडाई में जीता हुआ धनादि । शत्रु से छीन ली कथा [को०] । हुई वस्तुएँ। विजित द्रव्य । ६ कर या लगान की माफी । परिहासपेसणी-वि० [सं० परिहास+पेशल] परिहासकुशल । हास । छूट । ७ खडन । तरदीद । ८ नाटक मे किसी अनुचित या परिहास में दक्ष। उ०—विअक्खणी परिहासपेसणी सुदरी विधेय कर्म का प्रायश्चित्त करना ( साहित्यदर्पण )। साथ जवे देखिन तवे मन कर तेसरा लागि तीन उपेक्खिन । अवज्ञा । तिरस्कार । १० उपेक्षा । ११ मन के अनुसार एक -कीति०,४। स्थान का नाम । परिहासवेदी-सञ्चा पुं० [सं० परिहासवेदिन् ] मजाकिया। मस- परिहार: सहा पुं॰ [ स० ] राजपूतो का एक वंश जो अग्निकुल के खरा [को०] । मतर्गत माना जाता है। परिहासशील-वि० [सं०] मजाकिया। हँसी दिल्लगी करनेवाला । विशेष- इस वश के राजपूतो द्वारा कोई वडा राज्य हस्तगत या परिहास से भरा हुमा । उ०-कैसा वह तेरा व्यग्य परिहास- स्थापित किए जाने का प्रमाण अबतक नहीं मिला है, तथापि शील था ।-लहर, पृ० ७४ । छोटे छोटे भनेक राज्यो पर इनका आधिपत्य रह चुका है। परिहास्य-वि० [सं०] परिहास योग्य । २४६ ई० मे कालिंजर का राज्य इसी वशवालों के हाथ में था जिसको कलघुरि वश के किसी राज्य ने जीतकर छीन परिहित-वि० [सं०] १ चारो ओर से छिपाया हुआ। ढंका हुआ। लिया । सन् ११२६ से १२११ तक इस वश के ७ राजाओ आवृत। आच्छादित । २ पहना हुआ (वल)। ऊपर डाला ने ग्वालियर पर राज्य किया था। कर्नल टाड ने अपने हुधा (कपडा)। राजस्थान के ,इतिहास में जोधपुर के समीपवर्ती मदारव परिहीण-वि० [ स०] १ अत्यंत हीन । सब प्रकार से हीन । दीन (मद्रोद्रि) स्थान के विषय मे वहाँ मिले हुए चिह्नो आदि के हीन । दुखी और दरिद्र। फटेहालवाला। २ हीन । रहित आधार पर निश्चित किया है कि वह किसी समय इस (को०) । ३ त्यागा हुमा। फेंका, ढकेला या निकाला हुंपा। वश के राजामो की राजधानी था। आजकल इस वश के परित्यक्त। राजपूत अधिकतर वु देलखंड, अवध आदि प्रदेशो मे बसे हैं परिहृत -वि० [सं०] १ पतित । भ्रष्ट । गिरा हुआ। अवनत । और उनमें अनेक बडे जमीदार हैं। पामाल। २ नष्ट । ध्वस्त । तबाह। बरवाद । ३ जिसका परिहार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रहार ] दे० 'प्रहार' । उ०-वचन परिहरण किया गया हो (को०)। बान सम श्रवन सुनि सहत कौन रिस त्यागि । सूरज पद परि- परिहृति-सच्चा स्त्री॰ [सं०] १ नाश । क्षय । ध्वस । मिटना। हार ते पाहन उगलत प्रागि।-प्रज०म०, पृ०८३ । जवाल । २ त्याग देना । छोडना किो०] । परिहारक-वि० [सं०] परिहार करनेवाला । परोंदन-सज्ञा पुं० [सं० परीन्दन] १ प्रसादन । पारावना । तोपण । परिहारक ग्राम-सचा पुं० [सं०] राजकर से मुक्त ग्राम । मुग्राफी २ भेंट, उपहार आदि देना [को०] । गांव । लाखिराज गांव। परो'–सच्चा स्त्री० [फा०] १. फारसी की प्राचीन कथानो के विशेष-कौटिल्य ने कहा है कि समाहर्ता के खेवट मे ग्रामो या कोहकाफ पहाड पर बसनेवाली कल्पित स्त्रियां जो आग्नेय नाम 'भूमि का जो वर्गीकरण है, उसमे परिहारक भी है। की कल्पित सृष्टि के अतर्गत मानी गई हैं। उ०—हेरि हिंडोरे' 1 अनुसार
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