पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२१९

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पाख २६२८ पाग उठना जाय अन्य देवता को भी वदनीय कहता है, जो मस्तक प्रादि में पाखरा पुं० [सं० पच, प्रा० पक्र] पक्षी का पख | वैदिक चिह्नो को धारण न कर अवैदिक चिह्नो को धारण मैना । पर। करता है, जो वेदाचार को नहीं मानता, जो सदा अवैदिक पाखतो-सा पुं० [देश॰] पार्श्व रक्षक सैनिक । उ०-पाखती सवल कर्म करता रहता है, जो वानप्रस्थाश्रमी न होकर जटावल्कल जोघे प्रचड |--रा० रू०, पृ० १८३ । धारण करता है, जो ब्राह्मण होकर हरि के अत्यत श्यि शख, पाखर'-सशा मा० [स० प्रतर, प्रक्सर ] १ लोहे की वह झूल जो चक्र, उर्ध्वपु ड्र आदि चिह्न धारण नहीं करता, जो बिना लडाई के समय रक्षा के लिये हाथी या घोडे पर दाली जाती भक्ति के वैदिक यज्ञ करता है, जीवहिंसक, जीवभक्षक, है । चार पाईना । २ राल चढ़ाया हुआ टाट या उससे बनी अप्रशस्त दान लेनेवाला, पुजारी, ग्रामयाजक ( पुरोहित ), हुई पोशाक । अनेक देवताओ की पूजा करनेवाला, देवता के जूठे वा श्राद्ध पाखर-सज्ञा पुं० [सं० पर्कटी ] दे० 'पाकर' । के अन्न पर पेट पालनेवाला, शूद्र के से कर्म करनेवाला, निषिद्ध पदार्थों को खानेवाला, लोभ, मोह आदि से युक्त, पाखरि-सज्ञा स्त्री० [हिं] दे० 'पाखर'। उ०-गिरिवन कुज परस्तीगामी, प्राश्रमधर्म का पालन न करनेवाला, जो खरिक अरु बाखरि, हित मतग ये परि पन पाखरि । ब्राह्मण सभी वस्तुप्रो को खाता या वेचता हो, पीपल, तुलसी, -घनानद, पृ० २६३ | तीर्थस्थान आदि की सेवा न करनेवाला, सिपाही, लेखक, पाखरिया-सशा स्त्री० [हिं० पाखर+इया (प्रत्य॰)] 'पाखर'। दूत, रसोइया आदि के व्यवसाय और मादक पदार्थों उ०-वसतर ढाल चंदूक पासरिया कमघज पड्या । करसी का सेवन करनेवाला ब्राह्मण पाखडी है। पाखडी कूका कूफ नाम घुडासी नानिया।-राम० धर्म०, पृ०७०। के साथ बैठना, उसके पर जल पीना पाखरो-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० पासर ( = झूल) ] टाट का बना हुमा या भोजन करना विशेष रूप से निषिद्ध है। यदि किसी वह बिस्तरा जिसको गाडी में पहले विछाकर तव अनाज भरा प्रकार एक बार भी इस निषेध का उल्लएन जाता है। परम वैष्णव भी इस पाप से पाखडी हो पायथा । मनुस्मृति पाखा'-मजा पुं० [सं० पच, प्रा० पक्ख] १ कोना । छोर । उ०- के मत से पाखडी का वाणी से भी सत्कार करे और राजा पावक भाष्यो विष्णुपदी सो शभु तेज अतिघोरा। तजई उसे अपने राज्य से निकाल दे। हिमाचल के पाखा में यह सम्मत है मोरा । -रघुराज २ वनावटी धार्मिकता दिखानेवाला । जो बाहर परम धार्मिक (पन्द०)।२ दे० 'पाख-२'। जान पड़े पर गुप्त रीति से पापाचार मे रत रहता हो। कपटा- पाखार-सञ्ज्ञा पुं० दे० 'पख'। चारी। बगलाभगत । ३ दूसरो को ठगने से निमित्त अनेक प्रकार के आयोजन करनेवाला । ठग। धोखेबाज । धूतं । पाखाक-सज्ञा खो [फा० पाखाक ] चरणरज । पैर की धूल । पाख'-सज्ञा पुं॰ [सं० पक्ष, प्रा० पक्ख ] १ महीने का प्राधा ! पद्रह पाखानभेद-सज्ञा पुं० [सं० पापाणभेदक ] दे० 'पखानभेद' । पास्नान-सज्ञा पुं० [सं० पापाय ] पत्थर । दिन । पखवाडा । २ मफान की चौडाई की दीवारो के वे भाग जो ठाठ के सुभीते के लिये लवाई की दीवारो से त्रिकोण पाखाना-सचा पुं० [फा० पाखाना ] १ वह स्थान जहाँ मलत्याग के आकार मे अधिक ऊँचे किए जाते हैं और जिनपर लकडी किया जाय । २ भोजन के पाचन के उपरात पचा हुमा का वह लवा मोटा और मजबूत लट्ठा रखा जाता है जिसको मल जो भयोमार्ग से निकल जाता है । गू । गलीज । पुरीष । 'वडेर' कहते हैं। कच्चे मकानों मे प्रायः और पक्के में भी मुहा०—पाखाने जाना = मलत्याग के लिये जाना । पाखाना कभी कभी पाख बनाए जाते हैं। इनसे ठाठ को ढालू करने में खता होना=बहुत ही भयभीत होना । पाखाना निकलना । सहायता होती है। पाख के सबसे ऊंचे भाग पर वडेर रखी पाखाना निकलना = मारे भय के बुरा हाल होना । जैसे,- जाती है जिसपर सारे ठाठ और खपरेलों का भार होता है। उन्हे देखते ही इनका पाखाना निकलता पाख का आकार इस प्रकार का होता है- फिरना = मलत्याग करना। पाखाना फिर देना= हर से घबरा जाना। भय से अत्यंत व्याकुल हो जाना । जैसे,- शेर को देखते ही डर के मारे पाखाना फिर दोगे । पाखाना लगना= मल निकलने की आवश्यकता जान पडना । मल का वेग जान पढ़ना। पाग-सज्ञा स्त्री० [हिं० पग (= पैर) ] पगडी । उ०—जूती का दे सर पर मारी, और लपककर पाग उतारी।-दक्खिनी०, पु०३११॥ विशेष-कहते हैं, पगडी पहले पैर के घुटने पर बांधकर तव सिर पर रखी जाती थी, इसी से यह नाम पडा । पाग-देश० पुं० [सं० पाक] १. दे० 'पाक' । २ वह शीरा या चाशनी । पाखाना