पाप २६५५ पापचेता करने से नष्ट होते हैं। परतु परानिष्टजनन पाप अर्थात् पाप'-वि०१ पापयुक्त । पापिष्ठ । पापी । २ दुष्ट । दुरात्मा । तत्काल वर्ता के अतिरिक्त विसी और व्यक्ति का और दुराचारी। वदमाश । ३ नीच । कमीना । ४ अशुभ । कालातर में कर्ता वा अपकार करनेवाले पाप, जैसे, चोरी, प्रमगल। हिंसा, प्रादि ऐसे हैं जिनके सस्कार यथोचित राजदह भुगत विशेष-पाप शब्द का विशेषण के रूप मे अकेले केवल सरकृत लेने से क्षीण होते हैं। मनुस्मृति में लिखा है कि समाज के में व्यवहार होता है। हिंदी मे वह समास के साथ ही प्राता सामने अपना पाप प्रकट कर देने और उसके लिये अनुताप है । जैसे, पापपुरुष, पापग्रह, आदि । करने से वह क्षीण हो जाता है। पापक-सञ्ज्ञा पु० [स०] पाप । यौ०- पापपुण्य । पापक'- वि० पापयुक्त । पापी। मुहा०-- पाप उदय होना = सचित पाप का फन मिलना। पापकर-वि० [सं०] पापी । पाप करनेवाला को०] । पिछले जन्मो के पाप का बदला मिलना 1 कोई भारी पापकर्म-सञ्ज्ञा पु० [ स०] अनुचित कार्य । बुरा काम । वह काम हानि या अनिष्ट होना जिसका कारण पिछले जन्मो के जिसके करने में पाप हो। बुरे कर्म समझे जायें। जैसे, कोई भारी पाप उदय पापकर्मा-वि० [ स० पापकर्मन् ] पापी । पातकी । हुपा है तभी उसको इस वुढापे मे लडके का शोक सहना पापकमी- वि० [सं० पापकर्मिन् ] [ वि० सी० पापकर्मिणी ] पाप पहा है। पाप कटना = पाप का नाश होना । प्रायश्चित्त करनेवाला । पापी। या दडभोग से पापसस्कारो का क्षय होना । पाप कमाना पापकल्प-वि० [सं०] पापी का सा पाचरण रखनेवाला । पापी या बटोरना=पाप कर्म करना। लगातार या वहुत से तुल्य । दुष्कर्मी । पापकर्म से जीविका करनेवाला । बदमाश । पाप करना। ऐसे बुरे कर्म करते जाना जिनका फल बुरा हो। भविष्यत् या जन्मातर मे दुख भोगने का सामान पापकारक -वि० [सं० ] पाप करनेवाला । पापी [को०] | करना। पाप काटना = पाप से मुक्त करना । किसी के पापकारी-वि० [सं० पापकारिन् ] पाप कर्म करनेवाला [को॰] । पाप का नाश कर देना। निष्पाप करना । पापरहित कर पापकृत्-वि० [ म० ] दे० 'पापकारक' [को०)। देना। पाप की गठरी या मोट = पापो का समूह । किसी पापक्षय-संज्ञा पुं० [ स०] १ पापो का नष्ट होना । २ वह स्थान व्यक्ति के सपूर्ण पाप। विसी के जन्म भर के पाप । जहाँ जाने से पापो का नाश हो । तीर्थ । पाप गलना=पाप पड़ना। पाप होना। दोष होना। पापगण-सज्ञा पुं० [०] छद शास्त्र के अनुसार ठगण का जैसे,—(ब) पापी के ससर्ग से भी पाप लगता है। (ख) आठवा भेद । ऐसे महात्मा की निंदा करने से पाप लगता है। पापगति-वि० [सं०] भाग्यहीन । प्रभागा [को०] । २ अपराध । सूर । जुर्म । ३ वध । हत्या । ४ पापवुद्धि । पापग्रह-सज्ञा पुं० [सं०] १ फलित ज्योतिष के अनुसार कृष्णाष्टमी वुरी नियत । बदनीयती । खोट । बुराई । जैसे,—उसके मन में से शुक्लाष्टमी तक का चद्रमा । वह चद्रमा जो देखने में अवश्य कुछ पाप है । ५. अनिष्ट । अहित । बुराई । खराबी। प्राधे से कम हो । २ फलित ज्योतिष के अनुसार सूर्य, मगल, नुकसान । ६ कोई क्लेशदायक कार्य या विषय । परेशान शनि और राहु, केतु ये ग्रह, अथवा इनमे से किसी ग्रह से करनेवाला काम या बात । वसेडे का काम । झमट । जजाल । युक्त बुध । ये ग्रह अशुभ फलकारक माने जाते हैं । उ० - (केवल हिंदी में प्रयुक्त)। पापग्रह तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश मे हो। -वृहत०, पृ० ३०१। मुहा०-पाप कटना = वाधा कटना। झगडा दूर होना । जजाल छूटना । जैसे,—वह पाप ही यहां से चला गया अच्छा हुआ, पापघ्न-सञ्ज्ञा पुं० [स०] तिल । पाप कटा। पाप काटना = झगडा मिटाना। वला काटना । पापघ्न'–वि० पापनाशक । जिससे पाप नष्ट हो। जजाल छुडाना। पाप मोल लेना = जान बूझकर किसी पापघ्नी-सञ्चा नी० [सं० ] तुलसी । वखेडे के काम में फंसना। दर्द सर खरीदना । झगडे में पापचद्रमा-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पापचन्द्रमा ] फलित ज्योतिष के अनुसार पडना। पाप गले या पीछे लगना = अनिच्छापूर्वक किसी विशाखा और अनुराधा नक्षत्र के दक्षिण भाग मे स्थित बखेड़े या झझट के काम में बहुत समय के लिये फंस चद्रमा। जाना । कोई बाधा साथ लगना । पापचर-वि० [सं०] [ वि० स्त्री० पापचरा ] पापाचारी । पापी। ७ कठिनाई । मुश्किल । सकट । (क्व०)। पापचर्य-प्रज्ञा पुं० [सं०] १ राक्षस । यातुधान । २ पाप में रत । मुहा०-पाप पहना-सामर्थ्य से बाहर हो जाना । मुश्किल पापी [को०] । पड जाना। कठिन हो जाना। उ-सीरे जतननि सिसिर पापचारी-वि० [सं० पापचारिन् ][ वि० सी० पापचारिणी ] पापी। ऋतु सहि विरहिन तनु ताप । वसिबे को ग्रीषम दिननि पाप करनेवाला । पातकी। परयो परोसिनि पाप ।-विहारी (शब्द०)। पापचेता-वि० [स० पापचेतस् ] बुरे चित्तवाला। जिसके चित्त में ८. पापग्रह । क्रूर ग्रह । अशुभग्रह । सदा पाप बसता हो । दुष्टचित्त ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२४६
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