पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६१

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पारी पारिपाच २४७० पारिपार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पारिषद् । अनुघर । अरदली । पारिश-सज्ञा पुं॰ [सं०] पारिस पीपल । परास पीपल । पारिपार्श्वक -सज्ञा पु० [म०] दे० 'पारिपाश्विक' (को०] । पारिशील-सज्ञा पु० [म०] एक प्रकार का पूना या मालपूना । पारिपाश्चिक-संज्ञा पुं० [१०] १ पास खडा रहनेवाला सेवक । पारिशेय-सज्ञा पुं० [स०] वह जो छोड दिया गया हो । अवशिष्ट । परिपद । अरदली। २ नाटक के अभिनय मे एक विशेष [को०] । नट जो स्थापक का अनुचर होता है। यह भी प्रस्तावना में पारिश्रमिफ-सचा पुं० [स०] किए हुए काम की मजूरी । मेहनताना। मूत्रधार, नटी प्रादि के साथ पाता है। पारिषद-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १. परिषद में बैठनेवाला । सभा में बैठने- पारिप्लव'-पच्छा पुं० [सं०] १ एक जलपक्षी । २ अश्वमेघादि यज्ञो वाला । सभासद । सभ्य । पच । २. अनुपायिवर्ग। गण । में कहा जानेवाला एक पाख्यान (शतपथ ब्राह्मण )। ३ जैसे, शिव के पारिषद, विष्णु के पारिषद । नाव । जहाज । ४ एक तीर्य (महाभारत) । ५ व्याकुलता। पारिपद्य-पज्ञा पुं० [सं०] परिपद् मे बैठनेवाला दर्शक । बेचैनी (को॰) । पारिस-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पारस'। उ०—जाकों पारिस पिय पारिप्लव-वि० १. क्षुब्ध । च चल । २ कपायमान | ३ अस्थिर । नहिं तजै दिन दिन मदन महोत्सव सजै ।-नद० प्र०, विचलित । ४ तिरता हुमा । उतराता हुआ [को०] । पृ० १५७ । पारिप्लाव्य-तशा पुं० [सं०] १ हस । २. व्याकुलता । बेचैनी। ३. पारिस पीपल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पारीश पिप्पल ] भिटी की जाति चचलता। अस्थिरतो। ४ कपन (को०] । का एक पेड जिसमें कपास के डोडे के आकार का फल पारिभद्र-मशा पु० [स०] १ फरहद का पेड । २ देवदार । ३, लगता है। सरल वृक्ष । सलई का पेड । ४ कुट । विशेष—यह फल खाने मे खट्टा होता है । इसमें भिंडी के समान पारिभद्रक-सज्ञा पुं० [सं०] १ फरहद । २ देवदार । ३ नीम । ही सु दर पाँच दलो के बडे बडे फूल लगते हैं। इसकी जड कुट। मीठी और छाल का रेशा मीठा कसला होता है । वैद्यक में पारिभाव्य-मचा पु० [सं०] १. परिभू या जामिन होने का भाव । इसके फल गुरुपाक, कृमिघ्न, शुक्रवर्धक और कफकारक कहे २.कुट नामक प्रोपधि । गए हैं। पारिभापिक-वि० [सं०] जिसका अर्थ परिभाषा द्वारा सूचित किया पारिसीर्य-वि० [स० पारिसीय्य ] जो बिना जोते हुए हो । जो हल जाय। जिसका व्यवहार किसी विशेष अर्थ के सकेत के रूप की खेती से न उपजा हो । जैसे, तिन्नी का चावल । में किया जाय । जैसे, पारिभाषिक शब्द | पारिहारिक'-वि० [म०] १ परिहार करनेवाला । २ हरण करने- पारिमांडल्य-सज्ञा पुं॰ [ स० पारिमाण्डल्य ] अणु या परमाणु का वाला । ग्रहण करनेवाला (को०) । ३ घेरनेवाला (को॰) । परिमारण। पारिहारिकर-सञ्ज्ञा पुं० हार या मालाएँ बनानेवाला [को॰] । पारिमाष्य-ना पु० [सं०] घेरा । परिधि [को०] । पारिहारिकी-सज्ञा स्त्री० [स०] एक ढग की पहेली [को॰] । पारिमित्य--Tा ० [म०] सीमा । परिसीमा (को०] । पारिहार्य-शा पुं० [ सं० पारिहार्य ] १ परिहारत्व । २ वलय । पारिमुखिक-वि० [सं०] जो समक्ष हो । सामने का । २ निकट । हाथ का कहा। समीप (को०] | पारिहासिक-वि० [सं० पारिहास+इक (प्रत्य॰)] परिहास- पारिमुख्य-सच्या पु० [सं०] १ उपस्थिति । मौजूदगी । २ निकटता । युक्त । हँसी दिल्लगी करनेवाला । हास्य विनोद से भरा समीपता [को॰] । हुमा । उ०-होली में पारिहासिक नबर निकालने की।- पारियात्र-सञ्ज्ञा पु० [सं०] दे० 'पारिपात्र'। प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ३०२। पारियात्रिक-पञ्चा पु० [सं०] दे० 'पारिपारिक' (को०] । पारिहास्य - सझा पुं० [स०] हँसी मजाक । दिल्लगी [को॰] । पारियानिक-शा पु० [सं०] यात्रा का यान । वह सवारी जिसपर पारिहीणिक-सशा [मं०] क्षतिपूर्ति । नुकसानी। हरजाने यात्रा की जाय [को॰] । की रकम । पारिरक्षक, पारिरक्षिक-पज्ञा पुं॰ [स०] तपस्वी । साधु । पारीद्र-सचा पु० [ म० पारीन्द्र ] १ सिंह । २ अजगर । पारिवारिक-वि० [ स० परिवार + इक ( प्रत्य० ) ] परिवार से पारी'-पज्ञा जी० [हिं० वार, यारो अथवा पाली ] किसी वात संबधित । परिवार का । का अवसर जो कुछ अतर देकर क्रम से प्राप्त हो। वारी । पारिवित्या पु० [सं०] बडे भाई के अविवाहित रहते छोटे भाई प्रोसरी । दे० 'वारी'। का विवाह हो जाना [को०] । क्रि० प्र०-माना।-पड़ना ।—होना । पारिवेश्य-वश पुं० [सं०] दे० 'पारिवित्य' [को॰] । पारी२-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पारना] गुड आदि का जमाया हुआ पारिवाजक, पारिवाज्य-सच्चा पुं० [सं०] १ परिव्राजक का कर्म या वडा ढोका। भाव। २ एक प्रकार का अश्वत्थ । पारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. पुरवा । 'नुक्कड । प्याला । २. जल-