सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पंचो २७३६ पंचालिका ब्राह्मण और उपनिषद् ग्रथो से लेकर पुराणो तक मे पाया पचावस्थर-संज्ञा पुं० पचत्व । शव । मुर्दा को०] । जाता है। पचाविक-शा पु० [सं० पञ्चाविक ] भेड से प्राप्त होनेवाले पांच विशेष—इस देश की सीमा भिन्न भिन्न कालो मे भिन्न भिन्न पदार्थ-दूध, दही, घी, पुरीप और मूत्र [को०] । रही है । यह देश हिमालय और चवल के बीच गगा नदी के पंचावी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पञ्चावी ] वह गाय जिसके तले ढाई वर्ष दोनो ओर माना जाता था। गगा के उत्तर प्रदेश को उत्तर का वच्चा हो। पंचाल और दक्षिण प्रदेश को दक्षिण पचाल कहते थे । इस पंचाश-वि० [म० पञ्चाश ] पचासवा देश को देवपचाल से भिन्न समझना चाहिए जो सौराष्ट्र देश पंचाशत्-वि० [ म० पञ्चाशत् ] पचास । का एक भाग था। इस देश का पचाल नाम पडने के सवध पचाशिका-पञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० पञ्चाशिका ] १. वह पुस्तक जिसमे मे पुराणो में यह कथा है महाराज हर्यश्व अपने भाई से पचास श्लोक कवित्त आदि हो। जैसे, चौरपचाशिका । २. लडकर अपनी ससुराल मधुपुरी चले गए और अपने ससुर पचास का समूह (को०)। मधु की सहायता से उन्होने अयोध्या के पश्चिम के देशो पर अधिकार कर लिया। जब लोगो ने आकर उनसे अयोध्या के पचाशीत- वि० [म० पञ्चाशीत] पच्चासीवां । राजा के आक्रमण की बात कही तब उन्होने पांच पुत्रो पचाशीति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पञ्चाशीति] पच्चासी की सख्या । ( मुद्गण, सृ जय, वृहदिषु, प्रवीर और कापिल्य ) की ओर पचास-वि० [म० पञ्चाश] ८० 'पचास'। उ०—प्रसन चद सम देखकर कहा कि ये पांचो हमारे राज्य की रक्षा के लिये जतिय दिन्न इक मय इष्ट जिय । इह धाराधत भट्ट प्रगट पचास वीर विय । -पृ० रा०, ६।२६ । अलम् (पंचालम् ) हैं। तभी से उनके अधिकृत देण का नाम पचाल पडा । पचास्य-वि० [म० पञ्चास्य] पाँच मुंहवाला। हरिवश मे लिखा है कि हर्यश्व ने सौराष्ट्र देश में प्रानर्तपुर पंचास्य'--गशा पु० १ सिंह । विशेष-दे० 'पचानन' । २ शिव । नामक नगर वसाया था । इसी अधार पर कुछ लोग देवपचाल पंचाह-सशा पुं० [स० पञ्चाह] १. एक यज्ञ का नाम जो पांच दिन को ही पचाल कहते हैं । पर महाभारत मे हिमालय के प्रचल में होता था। २ सोमयाग के अतर्गत वह कृत्य जो सुत्या के से लेकर चबल तक फैले हुए गगा के उभयपार्श्वस्थ देश का पांच दिनो मे किया जाता है। ही वर्णन पचाल के अतर्गत पाया है। पाडवो के समय में इस पंचिका-मशा स्री० [ मं० पञ्चिका ] पाँच अध्यायो वा खडो का देश का राजा द्रुपद था जिससे द्रोणाचार्य ने उत्तरपचाल समूह। २ एक प्रकार का जूना जो पांच गोटियो से खेला छीन लिया था। महाभारत मे उत्तरपचाल की राजधानी जाता है (को०) । ३ रजिस्टर । खाता । वही । लेखा (को०)। अहिच्छत्रपुर और दक्षिण की कपिल लिखी है । द्रौपदी यहीं पंचीकरण-सज्ञा पुं॰ [ म० :ञ्चीकरण ] वेदात मे पचभूतो का के राजा की कन्या होने के कारण 'पाचाली' कही गई है। विभाग विशेष। २ [ सी० पचाली ] पचाल देशवासी। ३ पचाल देश का विशेष-वेदातसार के अनुसार प्रत्येक स्थूल भूत में शेष चार राजा । ४. एक ऋषि जो वाभ्रव्य गोत्र के थे । ५ महादेव । भूतो के प्रश भी वर्तमान रहते हैं । भूतो की यह स्थूल स्थिति शिव । ६ एक छद जिसके प्रत्येक चरण मे एक तगण (ssi) पचीकरण द्वारा होती है जो इस प्रकार होता है। पाँचो होता है । ७. दक्षिण देश की एक जाति । इस जाति के लोग भूतो को पहले दो वरावर वरावर भागो में विभक्त किया, वढई और लोहार का काम करते हैं और अपने को विश्वकर्मा फिर प्रत्येक के प्रथमार्द्ध को चार चार भागो मे बांटा। फिर के वश का बतलाते हैं । ये जनेऊ पहनते हैं। ८ एक सर्प का इन सब वीसो भागो को लेकर अलग रक्खा। अत मे एक नाम । ९. एक विषैला कीडा । एक भूत के द्वितीयार्घ में इन वीस भागो मे से चार चार पचालिका-सशा स्त्री॰ [ मै० पञ्चालिका ] १ पुतलो। गुडिया । भाग फिर से इस प्रकार रक्खे कि जिस भूत का द्वितीया २ नटी । नर्तकी। उ०—नपति मच पचालिका कर हो उसके अतिरिक्त शेप चार भूतो का एक एक भाग उसमे सकलित अपार ।-केशव ( शब्द०)। पचालिसा-वि० [हिं० पंच+चालिस ] दे० 'पैतालिस' । पचीकृत-वि० [सं० पञ्चीकृत] (भूत) जिसका पचीकरण हुमा हो । पंचालिष्ठ-वि० [?] दे० 'पैतालिस' । पचूरा-सशा पु० [हिं० पानी+चूना] लडको के खेलने का मिट्टी का पचाली-सज्ञा स्त्री० [सं० पञ्चाली ] १. पुतली। गुडिया। २ एक बरतन या खिलौना जिसके पेंदे मे बहुत से छेद होते हैं । पाचाली । द्रौपदी। ३ एक प्रकार का गीत । पाचाली। ४ पानी भरने से वह छेदो मे से होकर टपकने लगता है। चौसर की विसात । पचारी पंचेंद्रिय-मशा पी० [म० पञ्चेन्द्रिय] पाँच ज्ञानेंद्रियां जिनके द्वारा पंचावयव-वि० [सं० पञ्चावयव ] पाँच अवयव अर्थात् अगोवाला प्राणियो को वाह्य जगत् का ज्ञान होता है। दे. 'इद्रिय' । [को०] । पचेपु-सज्ञा पुं० [ म० पञ्चेपु ] वामदेव ( जिसके पाँच इपु या पचावस्थ'- [ मै० पञ्चावस्थ ] पांचवी अवस्था मे पहुंचा हुना शर हैं)। अर्थात् मृत। पंचो-सज्ञा पुं॰ [देश॰] गुल्ली डड़े के सेल मे डडे मे गुल्ली को मार- आ जाय।