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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३१३

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पीड़नीय ३०२९ पीढ़ीपंध दबोचना दवा देना। १४ स्वरो के उच्चारण मे गलती पीढा--सज्ञा पुं॰ [स० पीठ अथवा पीठक ] [ सी० अल्पा० पिढ़िया, करना (को०)। पीढ़ी] चौकी के प्राकार का वह प्रासन जिसपर हिंदू लोग पीड़नीय'- वि० [स० पीढनीय ] पीठन करने योग्य । दुख पहुंचाने विशेषत भोजन करते समय वैठते हैं। पाटा। पीठ । पीठक । योग्य । २ जिससे पीटन किया जाय (को॰) । विशेप-इसकी लवाई टेढ दो हाथ, चौडाई पौन या एक हाथ पीडनीयः- सज्ञा पुं० १. याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार मत्री और और उँचाई चार छह अंगुली से प्राय अधिक नहीं होती। सेना से रहित राजा । २ याज्ञवल्क्य स्मृति में वरिणत चार अधिकतर यह पाम दी लकडी से बनाया जाता है । अमीर प्रकार के शत्रुनो में से एक । लोग सगमरमर और राजा महाराजा सोने चांदी आदि के भी पीडवा-सशा स्त्री॰ [सं० प्रतिपदा ] दे० 'परिवा'। उ०-आज पीढे बनवाते हैं। सखी मोहि विहाण । पीड़वा कह दिन कहइ छइ जाण । पीदो-सका नौ० [सं० पीठिका ] १ किमी विशेष कुन की परपरा बी० रासो, पृ०४७ । में किसी विशेप व्यक्ति की म तति का प्रमागत स्थान । किमी पोड़ा-सज्ञा स्त्री० [सं० पीढा ] १ किसी प्रकार का दुख पहुंचाने फुल या वश मे किसी विशेष व्यक्ति से प्रारभ करके उसमे का भाव । शारीरिक या मानसिक यलेश का अनुभव । ऊपर या नीचे के पुरपो का गणनाक्रम से निश्चित स्थान । वेदना । व्यथा। तकलीफ । दर्द। २ रोग। व्याधि । ३ किसी व्यक्ति से या उसकी कुलपरपग मे किसी विशेष सिर में लपेटी हुई माला। शिरोमाला। ४, एक सुगधित व्यक्ति से प्रारभ करपे वाप, दादा, परदादे प्रादि अथवा बेटे, पोषधि । धूप सरल । सरल । ५ वाधा । गरवड । (फो०)। पोते, परपोते प्रादि के क्रम से पहला, दूसरा, पौथा पादि ६ हानि । नुकसान (को०)। ७ विरोध (को०)। ८ प्रतिबध । कोई स्थान | पुश्त । जैसे,—(क) ये राजा कृष्णसिंह की अवरोध (को०) । ६ करुणा । दया (फो०)। १० सरल चौथी पीढी मे हैं । (ख) यदि वशोन्नति सवधी नियमो का वृक्ष (को०) । ११ दलिया । टोकरी (को०)। भली भांति पालन किया जाय तो हमारी तीसरी पीटी की पीडायर-वि० [ स० पीडाकर ] कष्टकर । दु खदायी। उ०- त तान अवश्य यथेष्ट बलवान् और दीर्घजीवी होगी। पार्थिवैश्वर्य का प्रधकार पीडाकर । -तुलसी०, पृ० १६ । विशेप-पीढ़ी का हिसाव ऊपर और नीचे दोनो मोर चलता पोडाकरण-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पीड़ाकरण ] कष्ट देना। दुख या पीड़ा है। किसी व्यक्ति के पिता और पितामह जिस प्रकार क्रम से पहुंचाना [को०] । उसकी पहली पोर दूसरी पीढी में हैं उसी प्रकार उसके पुत्र पोड़ागृह-सझा पुं० [सं० पीडागृह ] वह स्थान जहाँ पीडा पहुंचाई और पौत्र भी । परतु अधिकतर स्थलों में अकेला पीढ़ी शब्द जाय । ससितघर को०] । नीचे के क्रम का ही बोधक होता है, ऊपर के क्रम का सूचक बनाने के लिये प्राय उसके प्रागे 'ऊपर की' विशेषण पीटार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० फरणाकर? ] सर्प । एक प्रकार का सर्प । पीवणा । पीणा । उ०-राई नही सखी भइस पीडार । लगा देते हैं। यह शब्द मनप्यो ही के लिये नही अन्य सव अस्त्रीय चरित्र उलिपई ही गवार । -बी० रासो, पृ० ३८ । पिंडज और घडज प्राणियों के लिये भी प्रयुक्त हो सकता है। पीड़ास्थान-सज्ञा स्त्री० [सं० पीडास्थान ] कुडली में उपचय अर्थात् लग्न से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें स्थान के २ उपयुक्त किसी विशेष स्थान अथवा पीढी के समस्त व्यक्ति या प्राणी। विसी विशेष व्यक्ति प्रथवा प्राणी का सतति अतिरिक्त स्थान | अशुभ ग्रहों के स्थान । समुदाय । जैसे,—(क) हमारे पूर्वजो ने कदापि न सोचा होगा पोड़िका-मज्ञा स्त्री० [ मं० पीठिका ] फुसी । पिटिका [को०] । कि हमारी कोई पीही ऐसे कम करने भी उतारू हो पीड़ित' नि [ म पीहित ] १ पीडायुक्त । जिसे व्यथा या पीडा जाएगी। ।ख ग्रह पपत्ति हमारे पाम तीन पीढियो से चली पहुँची हो । दुखित । क्लेशयुक्त । २ रोगी। बीमार । ३ पा रही है। ३ किसी जाति, दश अथवा लोकमडल मान दवाया हुषा जिसपर दाब पहुँचाया गया हो । ४ उच्छिन्न । के बीच किसी बालविशेष मे होनेवाला समस्त जनसमुदाय । नष्ट किया हुमा । ५ कसकर बाँधा हुआ (को॰) । कालविशेष में किसी विशेष जाति, देश अथवा समस्त स सार पीड़ित-सशा पुं० [सं०] १ स्थियो के कान का छेद । कर्णभेद । में वर्तमान व्यक्तियो अथवा जीवो प्रादि का समुदाय । क्सिी २ तत्रसार मे दिए हुए एक प्रकार के मत्र । ३ पीडा देने विशेष समय मे वगविशेष के व्यक्तियों की समष्टि । स तति । या कष्ट पहुंचाने की क्रिया (को०)। ४ एक रतिवघ । सुरत स तान । नस्ल । जैसे,—(क) भारतवासियों की अगली काल का एक विशेष प्रासन (को०) । पीड़ी के कर्तव्य बहुत ही गुरुतर होंगे । (ख) उपाय करने से पीड़ी-वि० [सं० पीढिन् ] कष्ट पहुँचानेवाला । दुखकर [को०] । गोवश की दूसरी पीढ़ी अधिक दुधारी और हृष्टपुष्ट बनाई जा पीडोर-पज्ञा स्त्री० [सं० पीठिका, हिं० पीढ़ो ] वेदी । ४० सकती है। इससे अच्छा यही होगा कि भगवती दुर्गा की पीटी पर मेरी पीढो-सज्ञा सी० [हिं० पीढ़ा ] छोटा पीढ़ा। उ०-चदन पीढ़ी बलि चढा दो।-नई०, पृ० ३७ । वैठक सुरति रस विजन ।-धरम० श०, पृ०६६ । पोडुरी-सज्ञा स्त्री॰ [ हिं० ] दे० 'पिंडली' । पीढ़ीवध-सज्ञा पुं० [हिं० पीढ़ी+स० धन्य] वशक्रम । पीढ़ियो का T7