पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३१५

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पीत? पीतल पीतद्रु-पना पु० [स०] १ दारु हलदी । २ एक प्रकार का देवदार । पीतपृष्ठा-मज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की कौडी । वह कौडी जिसकी पीठ पीली होती है। चिची कौडी। धूप सरल । पीतधातु -सशा पुं॰ [ म० पीत+धातु ] रामरज | गोपीचदन । पीतप्रसव-सबा पु० [सं०] १ हिंगुपत्री । २ पीला कनेर । उ.-स्यामा त् अति स्यामहिं भाव । वैठत उठत चलत गौ पीसफल-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. सिहोर । शाखोट वृक्ष । २ कमरख । चारत तेरी लीला गावै । पीत वरन लखि पीत वसन उर कर्मरग । ३ घव का वृक्ष । पीतधातु अंग लावै ।-सूर०, १०।२५७६ । पीतफलक-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ सिहोर । २ रीठा । ३ कमरख । पीतन-सज्ञा पुं० [ स०] १ केशर । २ चूप सरल । ३ हरताल । ४ धव वृक्ष । ४ प्रामडा । ५ पाकह। पोतफेन-सचा पुं० [सं०] रीठा । अरिष्टक वृक्ष । पीतनक-मज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पीतन' । पीतवलि-सञ्चा पु० [सं०] गधक । पीतनदी-सज्ञा मी० [सं० पीत (= पीला)+नदी ] चीन की पीतयोलुका-सज्ञा स्त्री० [सं०] हरिद्रा । हलदी। प्रसिद्ध नदी ह्वागहो जो अपने किनारे पर उपजाऊ पीली मिट्टी पीतबोजा-सञ्ज्ञा सी० [ स० ] मेथी । अधिकता से छोडती है। उ०-उसकी मुख्य भूमि पीत नदी (ह्वाग्हो) के बडे चकोर चक्कर से पश्चिम थी। किन्नर०, पीतभद्रक-सशा पु० [सं०] एक प्रकार का बवूल । देव कर । पीतभृगराज-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पीतभृङ्गराज ] पीला मॅगरा । पृ० ८५। पोतनाश-सज्ञा पुं॰ [स] लकुच । बडहर । क्षुद्र पनस । पीतम-वि० [ स० प्रियतम ] दे० 'प्रियतम' । पीतनिद्र-वि० [स०] जो गहरी नीद में हो । गहरी नींद में पीतम-सञ्ज्ञा पुं० दे० 'प्रियतम' । उ०-विना प्रेम पैये नहिं सोया हुप्रा (को०] । पोतम लाख सपदा वारी । -भारतेंदु म०, भा० १, पृ० ६६६. पीतनी-सञ्ज्ञा सी० [स० ] सरिवन । शालपणी । पीतनील-सञ्चा पु० [सं०] नीले और पीले रंग के सयोग से बना पोतमणि-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] पुखराज । पुष्पराग मणि । हुमा रग। हरा रग। पीतमस्तक-सज्ञा पुं० [सं०] वडी जाति का वाज । श्येन पक्षी । पीतनोल--वि० हरे रग का । हरित वर्ण (पदार्थ) । पीतमाक्षिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] सोनामाखी । स्वर्णमाक्षिक । पीरपराग-सज्ञा पुं० [सं०] पद्मकेशर । फमल का केसर । पोतमारुत-सचा पुं० [सं०] एक प्रकार का सर्प [को०] । किंजल्का पीतमुंड-सञ्ज्ञा पु० [सं० पीतमुण्ड ] एक प्रकार का हरिन । पीतपर्णी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] वृश्चिकाली। पोतमुद्ग-सशा पुं० [ स०] पीले रंग की मूग (को०] । पीतपापरा-सज्ञा पुं॰ [ स० पीत+पर्पट, हिं• पितपापडा ] दे० पीतमूलक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] गाजर । 'पितपापडा' । उ०-मोथा नींव चिरायत बाँसा । पीतपापरा पीतमूली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] रेवद चीनी । पित कहँ नासा ।- द्रा०, पृ० १५१ । पोतयूथी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] सोनजूही। स्वर्णयूथिका । पीतपादप-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ सोनापाठा । श्योनाक वृक्ष । २ पीत-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पित्तल, पीतल ] दे० 'पीतल' । लोष का पेड। पोतरा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पितृ, पितर ] दे० 'पितर'। उ०-(क) पीतपादा'-सज्ञा सी० [ स० पीत+पाद ] मैना । सारिका । पीतर पाथर पूजन लागे तीरथ गर्व भुलाना । -कवीर प्र०, पीतपादा-वि० सी० जिसके चरण पीले हो । पृ० ३३८ । पोतपिष्ट-सज्ञा पुं० [स०] सीसा धातु । यौ०-पीतरपंड = पितपिट । पिंडदान । उ०-पीतरपड भरावइ छ। पोतपुष्प-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ कनेर । २ घिया तोरई । ३ पोले राई।-बी० रासो, पृ०५२ । फूल की कटसरेया। ४ चपा । ५ रग नामक क्षुप । ६ पीतरक्त-सशा पुं० [सं०] १ पुखराज । २ पद्माख । पदमकाठ । पेठा । ७ तगर । ८ हिंगोट । ६ लाल कचनार । ३ पीलापन लिए हुए लाल रग (को०)। पीतपुष्प-वि० पीले फूलोंवाला । जिसमें पीले फूल लगते हों [को०] । पीवरक्तर-वि० पीलापन लिए हुए लाल रग का [को०] । पीतपुष्पक-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] दे॰ 'पीतपुष्प' । पोतरत्न-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पुखराज । पीतमणि । पीतपुष्पका-मज्ञा स्त्री॰ [ म०] जगली कही। पीतरस-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] कसेरू । पोतपुप्पा-सा स्री० [स०] १ झिझरीटा । २ इद्रायण । ३ पोखराग-सचा पुं० [सं०] १ पद्मकेसर । २ मोम । ३ पीला रग । सहदेवी। ४ अरहर । ५ तोरई। ६ पीले फूल की कट पीतराग-वि० पीला । पोले रग का । सरेया । ७ पीले फूल का कनेर । ८ सोनजुही । यूथिका । पीतरोहिणी-सहा स्त्री० [सं०] १ जभीरी। कुभेर। २ पीली पीतपुप्पी-सरा स्त्री० [सं०] १ शाखाहुली। २ सहदेई । ३ बड़ी कुटकी। तोरई। ४ खीरा । ५ इद्रायण । ६. सोनजुही। पोवल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पित्तल, पीतन ] १ एक प्रसिद्ध उपधातु जो