पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३२७

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- पुक्कार २०३६ पुचारा पुक्कार-सशा स्री० [सं० पूरकरण, प्रा० पुक्कार ] फरियाद । पुगतापण-सज्ञा पुं॰ [हिं० पुगना (= पूरा होना) + पन (प्रत्य॰)] गोहार । दे० 'पुकार' । उ०-पुक्कार परिय नृप पगपुर कहय बुढ़ापा । वार्धक्य । उ०-कर कपै लोयण झरै मुख लल- सर्व किन्नव हदस । --५० रासो, पृ० १२७ । राव जीह । मावडिया जुध में मिल पुगतापण रा दीह ।- बाँकी ग्र०, भा०२, पृ० १८ । पुख@t-सज्ञा पुं० [सं० पुष्प ] दे० 'पुष्प'। जैसे, पुखराज = पुष्प राग। पुगना-क्रि० प्र० [हिं० पूजना ] पूरा होना । पूर्ण होना । पुखत-वि• [ स० पुष्ट या फा० पुख्तह् ] पूर्णत । भली प्रकार । चुकता होना । खत्म होना। उ०-प्राणी तू दूबो पुखत मोह नदी रे माहि । देव नदी मे पुगाना-क्रि० स० [हिं० पुजाना ] १ पूरा करना । पुजाना। इवियो नख पग हदो नाहिं । बाँकी० प्र०, भा॰ २, पृ० जैसे, मिति पुगाना, रुपया पुगाना। २ गोली के खेल में ११०। गोली का गड्ढे मे डालना ( लड़के)। २ दृढ़ । पुख्ता । उ०-प्राण गाँठ जेते पुखत, इण तन माझल पुचकार-सज्ञा स्त्री० [हिं० पुचकारना ] प्यार जताने के लिये प्रोठों एह । क्यावर तेते नाम कर दाम गांठ मत देह ।-बाँकी. से निकाला हुआ घूमने का सा शब्द । चुमकार । ग्र०, भा०१, पृ०५१। पुचकारना-क्रि० स० [ अनुव० पुच (= घोठो को दवाकर छोडने पुखता-वि० [फा० पुख्ताह ] दे० 'पुरुता'। से निकला हुआ शब्द )+हिं० कार +ना (प्रत्य०) ] घूमने पुखर--सज्ञा पुं० [सं० पुष्कर, प्रा. पुक्खर ] तालाब । पोखरा । का सा शब्द निकालकर प्यार जताना । सुमकारना । जैसे, उ.-भरहिं पुखर प्रौ ताल तलाबा । —जायसी (शब्द॰) । (क) बच्चे को पुचकारना । (ख) कुत्ते को पुचकारना । पुखरा-सचा पुं० [सं० पुष्कर, प्रा० पुक्खर ] पोखरा । तालाब । उ.-(क) ठोंकि पीठ पुचकारि वहोरी । कीन्हीं विदा सिद्धि पुखराज-मज्ञा पुं॰ [ स० पुष्पराग ] एक प्रकार का रन या बहु- कहि तोरी।-रघुराज (शब्द॰) । (ख) सुनि बैठाय प्रक मूल्य पत्थर जो प्राय पीला होता है पर कभी कभी कुछ दानवपति पोछि वदन पुचकारी। बेटा, पढ़ो कौन विद्या तुम हलका नीलापन या हरापन लिए भी होता है। देह परीक्षा सारी। -रघुराज (शब्द॰) । विशेष—यह अलुमीनियम का एक प्रकार का सैक्त छार है । पुचकारो-सज्ञा स्त्री० [सं० पुचकारना ] प्यार जताने के लिये प्रोठों यह हीरे से भारी पर कम कड़ा होता है। पुखराज अधिकतर से निकाला हुआ चूमने का सा शब्द । चुमकार । जैसे, जान- ग्रेनाइट की चट्टानों और कभी कभी ज्वालामुखी पर्वतो की वर या बच्चे को पुचकारी देकर बुलाना । दरारो मे मिलता है। कार्नवाल (इंगलैंड), स्काटलैंड, बेजिल, क्रि० प्र०-देना। मैक्सिको, साइबेरिया और अमेरिका के संयुक्त राज मे यह पुचपुच-सचा ग्जी० [ अनुव० ] पोठों निकाली हुई चूमने की सी पाया जाता । एशिया मे यह यूराल पर्वत से बहुत निकाला आवाज । पुचकारी। जाता है । बजिल का गहरे पीले रंग का पुखराज सबसे अच्छा पुचारस-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] कई घातुओ का मेल । ऐसी धातु जिसमें माना जाता है। यो तो भारतवर्ष तथा और पूर्वीय देशों मिलावट हो। मे भी यह थोडा बहुत पाया जाता है। पुधारना'-क्रि० स० [हिं० पुचारा ] १ पुचारा देना। २ हमारे यहां के रत्नपरीक्षा के प्रथो में पुष्पराग के कई भेद लिखे पोतना । ३ मीठी बातें कहना। प्रसन्न करनेवाली बातें हैं । जो पुष्पराग कुछ पीलापन लिए लाल रग का हो उसे कहना । चापलूसी करना । ठकुरसुहाती कहना । ४ उत्साहित कौरट और जो कुछ ललाई लिए पीले रंग का हो उसे करनेवाली बातें कहना। प्रोत्साहित करना । पुचकारना। काषायक कहते हैं। जो कुछ ललाई लिए सफेद हो वह पुचाहा-सज्ञा पुं॰ [हिं० पुतारा या अनु० पुचपुच ] दे॰ 'पुचारा' । सोमलक, जो बिलकुल लाल हो पद्मराग और जो नीला उ०-पश्चिम के विचारकों ने यहाँवालो को अक्सर यह हो वह इ द्रनील है। इस प्रकार प्रचीन ग्रयों में पुखराज भी पुचाटा दिया है कि तुम्हारी विशेषता तो परोक्ष चिंतन मे कुरड जाति के पत्थरो में माना गया है। है।-प्राचार्य०, पृ० ६६ । पुख्ता-वि० [ फा० पुस्तह] १ मजबूत । एढ़। पुष्ट। २ परि पुचारा'-सज्ञा पुं० [अनु० पुचपुच (= भीगे कपडे को दबाने का पक्व । ३ स्थिर । टिकाऊ । ४ नियत । निश्चित (को०] । शब्द ) या पुतारा ] १ किसी वस्तु के ऊपर पानी से तर यो०- पुख्ता प्रक्ल = दृढ मति । स्थिरबुद्धि । परिपक्व मति । कपडा फेरने की क्रिया। भीगे कपड़े से पोछने का काम । पुख्तामग्ज = दे० 'पुख्तस्यक्ल' । पुख्तामिमाज = स्थिरमति । जैसे,—बरतन आंच पर चढाकर ऊपर से पानी का पुचारा देते जाना। पुख्य-सच्चा पुं० [सं० पुप्य ] दे० 'पुष्य' । क्रि०प्र०-देना। पुगड-मशा पुं० [ स० पौगएड ] दे० 'पोगड', 'पौगंड' । उ०-बाल २ पतला लेप करने का काम । हलकी पुताई या लिपाई । कुमार पुगड घरम मासक्त जु ललित तन । घरमी नित्य किसोर कान्ह मोहत सबको मन । -नद० ग्र०, पृ०६। क्रि० प्र०-देना। -फेरना। दृढ़चित्त । पोता।