३०४४ पुन.सगम पुत्रसू पुत्रसू-मा स्पी० [सं० ] पुत्र की मां [को०] । पुत्रेपणा-सशा नी० [ मे० ] पुत्र कामना । पुषेच्छा [को०] । पुत्राचार्य–वि. [ म० ] पुत्र को गुरु माननेवाला [को०] । पुत्र्य-१ [म.] पुष मवघी । पुत्रीय [। पुत्रादिनी-शा स्त्री० [सं०] १ मप्राकृतिक मा। अपनी सतानो पुदीना-मज्ञा पुं० [ फा० पोदोन | एक छाटा पौधा जो या तो को खा जानेवाली मा । २ व्याघ्री [को०)। जमीन पर ही फैलता है प्रयवा अधिक से अधिक एक या टेढ वीता ऊपर जाता है। पुत्रादी-वि० [ स० पुत्रादिन् ] [ वि० पी० पुत्रादिनी ] पुत्रभक्षक । वेटे को खानेवाला । (गाली)। विशेष—इसकी पत्तियां दो ढाई अगुल लवी पौर डेढ पौने दो प्रगुल तक चौडी तथा किनारे पर पटाबदार और देखने में पुत्रान्नाद-वि० [ मं०] पुत्र से भरणपोषण प्राप्त करनेवाला। पुत्र की प्राजीविका पर जीनेवाला । कुटीचक (को०] । खुरदरी होती हैं। पत्तियों में बहुत अच्छी गघ होती है इसमे लोग उन्हे चटनी प्रादि में पीमार डालते हैं । पुदीने को यहाँ पुत्रार्थी-वि० [म० पुत्रार्थिन् ] [ वि० सी० पुत्राथिनी ] पुत्र की उठनों से ही लगाते हैं, उनका बीज नहीं बोते । पुदीने का कामना करनेवाला । पुत्र चाहनेवाला (को०) । फूल सफेद होता है और बीज छोटे छोटे होते हैं। पुदीना पुत्रिका-सज्ञा स्त्री॰ [ म०] १ लडकी । बेटी। उ०-जनक सुखद तीन प्रकार का होता है-माधारण, पहाडी और जलपुदीना। गीता । पुत्रिका पाइ सीता ।-केशव ( शब्द०)। २ पुत्र जलपुदीने की पत्तियां कुछ बढी होती हैं। पुदीना चिवाक, के स्थान पर मानी हुई कन्या । अजीर्णनाशक और वमन को रोकनेवाला है। यह पौषा विशेष-मनुस्मृति नवम अध्याय में कहा है कि जिसे पुत्र न हिंदुस्तान में बाहर मे प्राया है, प्राचीन ग्रंथों में इसका उन्लेख हो वह कन्या को इस प्रकार पुत्र रूप से ग्रहण कर सकता नहीं है। यह पिपरमिट की जाति वा ही पौधा है। है । विवाह के समय वह जामाता से यह निश्चय कर ले कि पुद्गल'-मज्ञा पुं० [१०] १ जैनशाम्नानुनार ६ द्रव्यों में से एक। 'कन्या का जो पुत्र होगा वह मेरा 'स्वधाकर' पर्थात् मुझे जगत् के रूपवान् जट पदार्य । म, रम पौर वर्णवाला पिंड देनेवाला और मेरी सपत्ति का अधिकारी होगा। पदार्थ । ३. गुडिया । मूर्ति । पुतली । ४ प्रांख की पुतली । उ० विशेप-जैन दर्शन में पड्द्रव्य माने गए हैं-जीवास्तिकाय, महादेव की नेत्र की पुत्रिका सी। कि सम की भूमि में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, भाषाशास्तिकाय, पुद्गलास्ति- चद्रिका सी।- केशव (शब्द०)। ५ स्त्री की तसवीर । काय और काल। उ.-चित्र की सी पुत्रिका की रूरे वगरूरे माहि, शबर २ शरीर । देह। (बौद्ध)। ३ परमारगु । ४ आत्मा। ५ छोडाय लई कामिनी की काम की।-केशव (शब्द०)। गतृण । ६ शिव (को०)। ६ ( समासात में ) अपने वर्ग की छोटी या तुच्छ वस्तु । पुद्गल -वि० स दर । प्यारा । सलोना [को०] । जैसे, प्रसिपुत्रिका, खड्गपुत्रिका (को॰) । पुद्गलास्तिकाय-नग पुं० [म०] संसार के सब रूपवान जड पुत्रिकापुत्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कन्या का पुत्र जो पुत्र के पदार्थों की समष्टि । समान माना गया हो और सपत्ति का अधिकारी हो । २ । पुनः-अव्य० [म० पुनर, पुन] १ फिर। दोवाग। दूसरी वार । दौहित्र (को०)। २ उपरात | पीछे। मनतर । पुत्रिकाभर्ता-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुत्रिकाभत ] जामाता । दामाद [को॰] । विशेप-सस्कृत व्याकरण के अनुसार विभिन्न वर्गों का योग पुत्रिकासुत-सज्ञा पु० [ सं० ] दे० 'पुत्रिकापुत्र' [फो० । होने पर यह पुन , पुनर् और पुनश् प्रादि रूपों में परिवर्तित होता है। पुत्रिणी-मज्ञा स्त्री॰ [ म०] १ वह स्त्री जिसको पुत्र हों। पुत्र- पुन'करण-राज्ञा पुं॰ [मं०] फिर से करना । पुन करना [को०] । वती स्त्री । २ एक परपुष्ट लना [को०] । पुनःक्रिया-सज्ञा पी० [म०] २० 'पुन करण' । पुत्रिय-वि० [ म० ] पुत्र से सब धिन । पुत्रविषयक [को॰] । पुनःखुरी-मज्ञा पुं॰ [ मं० पुन बुरिन् ] घोडो के पैर का एक रोग पुत्रो-श' म्पी० [ स०] १ कन्या। लडकी। बेटी । २ जिसमें उनकी टाप फैल जाती है और वे लडखडाते चलते हैं । दुर्गा (को०)। पुत्री-वि० [सं॰ पुगिन् ] [वि॰ स्त्री० पुत्रिणी ] पुत्रवाला। जिसे पुन पाक-सा पुं० [सं०] किसी वस्तु को फिर मे पकाना या पकाया जाना 101 पुन पुन -क्रि० वि० [मं०] बार वार । पुत्रीय-सी [ म०] पुत्र का । पुत्र सबंधी। पुत्रिय [को०] । पुत्रीया-खी० बी० [सं०] पुत्र प्राप्ति की कामना (को॰] । पुन पुना-सज्ञा पी० [सं०] गया की पुतुना नदी । पुन प्रतिनिर्वतन-सचा पुं॰ [स०] वापस पा । लौट आना को०] । पुत्रेप्सु-वि० [ स० ] पुत्र की कामना करनेवाला (को॰] । पुत्रेष्टि-सज्ञा स्त्री० [40] एक प्रकार का यज्ञ जो पुत्रलाभ की पुन प्रमाद-ज्ञा पु० [ मे० ] दुवारा उपेक्षा या लापरवाही करना [को०] । इच्छा से किया जाता है। पुन:संगम-सज्ञा पुं० [सं० पुन सगम ] फिर से मिलना । पुन पुत्रेष्टिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'पुत्रेष्टि' [को॰] । मिलना । पुनर्मिलन। पुत्र हो।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३३५
दिखावट