किया हुआ। पुनःसंधान ३०४५ पुनरोपी पुन सधान-सहा पुं० [सं० पुन सन्धान ] अग्निहोत्र को फिर से पुनरालंभ-मना पुं० [ मं० पुनरालम्भ ] पुन ग्रहण करना । पुनः जलाना [को०] । स्वीकरण। पुनःसस्कार-मज्ञा पुं० [स०] फिर से किया जानेवाला सस्कार । पुनरावर्त-सचा पुं० [स०] १ लौटना । २ पुनर्जन्म [को॰] । उपनयन भादि सस्कार जो फिर से किए जायें । पुनरावर्तक-वि० [सं०] बार बार प्रानेवाला (ज्वर आदि)। विशेष-जैसे, अनजाने अभक्ष्य, मलमूत्र, मद्य लगा हुमा अन्न पुनरावर्तन-संज्ञा पुं० [सं०] पुन होना। फिर पूर्वस्थिति व आदि मुह में पष्ट जाने से ब्राह्मण का फिर से उपनयन माना । उ०-कभी कभी हम वही देखते पुनरावर्तन । उ होना चाहिए। इस पुन सस्कार में शिरोमुडन, मेखला, मानते नियम चल रहा जिसमे जीवन ।-कामायन दड, भक्ष्य और ब्रह्मचर्य की बावश्यकता नहीं होती। पू०१६१। पुनःसंस्कृत-वि० [सं०] पुन संस्कारयुक्त। फिर से मुघारा या ठीक पुनरावर्ती–वि० [ सं० पुनरावर्तिन ] १ पुन जन्म लेनेवाला। फिर से होनेवाला। फिर पूर्व की स्थिति में प्रानेवाला पुनस्थापन-सज्ञा पुं॰ [सं०] फिर से स्थापित करना । पुन प्रतिष्ठा उ०-गत यदि पुनरावर्ती होता तो हो जाता जीवन नि करना। नव ।-प्रपलक, पृ० ८। पुना-प्रव्य० [स० पुन] > 'पुन' उ०-पुन भविष्य प्रादुर्भाव पुनरावृत्त-वि० [म०] १ फिर से घुमा हुपा । फिर से घुमव मे पुष्कर क्षेत्र की उतपति को बर्नन है -पौद्दार अभि० आया हमा। २ दोहराया हुअा। फिर मे किया अ०, पृ०४८४। कहा हुआ। पुन-सज्ञा पु० [सं० पुण्य] पुण्य । धर्म । सवाव । पुनरावृत्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ फिर में घूमना। फिर से धू पुनना-क्रि० स० [हिं० पूरना] बुग गला कहना। उघटना । कर माना। २ किए हुए काम को फिर करना।' दोहरान बखानना | बुराई खोल खोलकर बाहना (स्त्रि०) । ३ पुन पाठ । एक बार पढकर फिर पढना । दोहराना। पुनपुन, पुनपुना-स। सी॰ [ म० पुन पुना ] बिहार या मगध की पुनरुक्त'-वि० [सं०] १ फिर से कहा हुप्रा । २ एक वार एक छोटी नदी जो गया से बहती है और पवित्र मानी कहा हुया । जो फिर कहा गया हो। जाती है। इसके किनारे 'लोग पिंडदान करते हैं। वर्षा पुनरुक्त-सञ्ज्ञा पुं० दुवारा कहना [को०] । को छोड और ऋतुप्रो में इसमें जल नहीं रहता। पुनरुक्तवदाभास-सज्ञा पुं० [सं०] वह शब्दालकार जिसमें र पुनरपागम-सज्ञा पुं० [स० पुनर + अपागम ] फिर से चले सुनने से पुनरुक्ति सी जान पढे परतु यथार्थ मे न हो । जैसे, जाना (को०। वदनीय केहि के नहीं वे कविंद मति मान । र पुनरपि-क्रि० वि० [म०] फिर भी । वार वार । गए हू काव्यरस जिनको जगत जहान। इसमे 'जगत' । पुनरबसgt-सञ्ज्ञा पुं॰ [म. पुनर्वसु] दे॰ 'पुनर्वसु' । 'जहान' इन दोनो शब्दो के प्रयोग मे पुनरुक्ति जान पर पुनरवसु-सरा पुं० [म० पुनर्वसु] दे० 'पुनर्वसु' । है, पर है नहीं, क्योकि 'जगत' का अर्थ है -जगता है। पुनरागत-० [सं०] वापिस पाया हुा । लौटा हुआ [को०] । पुनरुक्ति-सला स्त्री० [सं०] एक बार कही हुई वार को f पुनरागम, पुनरागमन-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ फिर से या पुन आना। कहना । कहे हए वचन को फिर लाना। पाना । दोबारा थाना। २ ससार मे फिर माना। पुन विशेप-साहित्य की दृष्टि से रचना का यह एक दोप म फिर जन्म लेना। जाता है। पुनरागामी-गि [ म० पुनरागामिन् ] [वि॰ पुनरागामिनी] फिर पुनरुज्जीवित -वि० [ सं० पुनर् + उज्जीवित ] जिसे फिर से जी से आ जानेवाला । लौटनेवाला प्राप्त हुआ हो । जो फिर जी उठा हो। पुनराजाति - सस ग्मी० [म०] फिर से जन्म लेना [को०] । पुनरुत्थान-सञ्ज्ञा पुं० [म०] पुन. उठना । फिर से उन्नति क पुनरादि-० [सं०] पुन प्रारभ करनेवाला [को०] । (को०)। पुनराधान-सज्ञा पुं० [स०] श्रौत या स्मार्त अग्नि का फिर से गहण । पुनरुत्थित-वि० [स० पुनर् +उस्थित] फिर से उठा हुमा [को०] । फिर से प्रग्निस्थापन। पुनरुद्धार-रज्ञा पुं० [म०] मरम्मत कराना । मुवार कराना । विशेप-पत्नी की मृत्यु हो जाने पर उसके दाहकर्म में भग्नि शी (भवादि) को ठीक कराना । पित करके गृहस्थ फिर से विवाह और अग्नि ग्रहण कर पुनरूगमन-संज्ञा पुं॰ [ म०] लौटेना। फिर से जाना पो०] । सस्ता है। पुनरूद्वा-वि० मी० [ म०] ( स्पे) जिसका फिर से विवाह । पुनराधेय-० [मं०] फिर से अग्निस्थापन [को०] । हो [फो। पुनरानयन-मश पु० [मं०] फिर से ले पाना । वापिस लौटा पुनरोपो-क्रि० वि० [ स० पुनरपि ] २० 'पुनरपि'। उ० लाना [को०] 1 मित्त पुनरोपि चित्तयं वसय ।-पृ० रा०, २५॥३७७ । ६-४१
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३३६
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