उद्योगी पुरुप । पुरखार पुरंपाटणे पुरखार-वि० [फा० पुरसार ] काटो से परिपूर्ण । कांटो से भरा मुहा०-चलता पुरजा = चालाक भादमी। तेज आदमी। हुा । कटकमय । जहाँ कांटे अधिक हो । उ०—पुरखार चार सू है गुलजार वहाँ है। -कवीर म०, पृ० ३२३ । ४.चिडियो के महीन पर । रोई । पुरखून-वि० [ फा० पुरखू ] खून से तरबतर । रक्ताक्त । उ०-लगे पुरजित्-सज्ञा पुं॰ [ स०] १. शिव । २ एक राजा । ३ कृष्ण का गुलशन पे अजवस गम के होल्या, हुए पुरखून कुल मेंहदी के एक पुत्र जो जाववती से उत्पन्न हुआ था। फूला।-दविखनी०, पृ० १६१। पुरजोर-वि० [फा० पुरज़ोर ] पुरप्रमर । प्रोजपूर्ण । पुरग-वि० [ स०] १ शहर को जानेवाला । २ जिसकी मनोवृत्ति पुरजोश-वि० [फा० पुरजोश ] जोश से भरा हुआ । जोशीला । अनुकूल हो [को०। पुरट-सज्ञा पुं॰ [सं०] सुवर्ण । सोना । उ०-(क) छुहे पुरट घट पुरगुर-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] वगाल के उत्तरपूर्व होनेवाला एक पेड जो सहज सुहाए। मदन सकुव जनु नीड बनाए ।-मानम, धौली से मिलता जुलता होता है। इसकी लकडी खेती के १॥३४॥ । (ख) पुरट मनि मरकतनि की तति तहाँ मजन सामान और खिलौने धादि बनाने के काम पाती है। ठाट-घनानद, पृ० ३००। पुरचक-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पुचकार ] १. नुमकार । पुचकार । पुरण-मज्ञा पुं॰ [सं०] समुद्र । २ वढावा। उत्साहदान । जैसे,—तुम्ही ने तो पुरधक दे पुरतः-प्रव्य० [ स० पुरसस् ] आगे । देकर लडके को गाली बकना सिखाया है। पुरतटी-मक्षा नी० [ स०] छोटा कसबा या गांव जिसमे वाजार क्रि० प्र०-देना। लगता हो। ३ प्रेरणा । उसकावा । उभारने का काम । जैसे,—उसने पुरचक पुरतोरण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] शहर का बाहरी दरवाजा । देकर उसे लडा दिया । ४ पृष्ठपोषण । वाहवाही । समर्थन । पुरद्वार [को०] । पक्षमडन । हिमायत । तरफदारी। जैसे,—पुरचक पाकर ही पुरत्राण-सज्ञा पुं॰ [स० ] शहरपनाह । प्राकार । कोट । परकोटा । पुलिसवालो ने यह सब उपद्रव किया। उ०-कनक रचित मणि खचित दिवाला । अष्ट द्वार क्रि० प्र०-देना।-पाना।-लेना। पुरत्राण विशाला। पुरगो-वि० [फा० ] बहुत अधिक कविता करनेवाला । २ अधिक पुरदद-वि० [ फा०] दर्द से भरा हुअा। दुःखपूर्ण । पीडायुक्त बोलनेवाला । बातूनी [को०] । उ०-इसका अर्थ वडा विकट है, वडा पुरदर्द है ।-कुकुर पुरगोई-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा०] १. प्रत्यधिक कविता करना । २, (भू०), पृ० १३॥ वकवादपन । वाचालता [को०] । पुरद्वार-संज्ञा पुं॰ [ स०] नगरद्वार। शहर पनाह का फाटक । पुरजन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] नगरवासी लोग । उ०-बचन सुनत पुरन-वि० [स० पूर्ण, हिं° पूरन] दे० 'पूरन' । उ०-सुतन दुरूर पुरजन धनु रागे । तिन्हके भाग सराहन लागे। —मानस, अति बाल ससि भयो पुरन बिन मत ।-पृ० रा०, २१३४० २।२५०। पुरनवासी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पूर्णमासो ] दे० 'पूर्णमासी' । उ०- पुरजा-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० पुर्जह ] १ टुकडा। खड। उ०- सूरा अगहन पुनवासी वार सुक दसखत दलदास कानगोऐ । -स सोइ सराहिए लडे घनी के खेत । पुरजा पुरजा व परे तक न दरिया, पृ० ३। छोडे खेत ।-कवीर (शब्द०)। पुरनाल-क्रि०अ०, क्रि० स० [हिं०] दे० 'पूरना' मुहा०—-पुरजे पुरजे उड़ना = टुकड़े टुकडे हो जाना। पूरी तरह पुरना-सज्ञा मी० [ देश० ] गदहपूर्ना । पुननवा । नष्ट हो जाना। उ०-पुरजे पुरजे उडे अन्न विनु बस्तर पुरनारी-सञ्चा सी० [सं० ] वारागना । वेश्या [को०] । पानी। ऐसे पर ठहराय सोई महबूब वखानी। -पलद०, पुरनियाँ-वि० [हिं० पुराना + इयाँ (प्रत्य॰)] वृद्ध । वयोवृद्ध भा० १, पृ० ३३ । पुरजे पुरजे करना या उड़ाना = खड खड बुढा। करना । टूयः टूक करना । धज्जियां उडाना। पुरजा पुरजा पुरनो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हि० पूरना (= भरना) ] १ छल्ला। अंगूठे हो पढ़ना = दे० 'पुरजे पुरजे होना' । उ०-सूर न जाने पहनने का गहना । २ तुरही। सिंहा । ३ बदूक का गज । कापरी सूरा तन से हेत । पुरजा पुरजा हो पह, तहूँ न छाठे पुरनूर-वि० [ फा ] ज्योतिर्मय । सौंदर्ययुक्त। प्रकाशमान । सुदर खेता-दरिया वा०, पृ० १२ । पुरजा पुरजा हो रहना = से परिपूर्ण । उ०-जाहिरा जहान जाका जहूर पुरनू दे० 'पुरजे पुरजे होना' । उ०-सूरा सोई सराहिये, लडे धनी -मलूक०, पृ० २०॥ के हेत । पुरजा पुरजा होई रहे, तऊ न छाडे खेत कबीर पुरनोटा-संज्ञा पुं॰ [ थं० प्रोनोट ] ऋणाय । रुका। सरखा सा० स०, भा० १, पृ० २३ । पुरजे पुरजे होना = खड खड उ.-मुझसे अपने रुपयो के लिये पुरनोट लिखा लो, स होना । टुट फूटकर टुकड़े टुकड़े होना।' लिखा लो, और क्या करोगे ?-गवन, पृ० ११७ । २ कतरन । धज्जी । कटा टुकडा । कत्तल । ३. अवयव । मग । पुरपाटण-वज्ञा पुं० [सं० पुर + हि० पाटन<स० परान ] नग प्रश । भाग । जैसे, कल के पुरजे, घड़ी के पुरजे । उ०-पुर पाटण सूबस बस ।-कबीर ग्र०, पृ० ५२ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४०
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