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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४७

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पुरानि ३०५६ पर फरना । अनुकूल वात करना । अनुसरण करना । उ०- पुरिया-सशासी० [हिं०] २० 'पुटिया'। सुरदास प्रभु ग्रज गोपिन के मन प्रमिलाख पुराए ।-सूर पुरिशय-वि० [म० ] पारीर में रहने वाला [फ०] । (शब्द०)। ५. इस प्रकार वौटना कि सबको मिल जाय । पुरिप-सज्ञा पुं० [२० पुरुप ] ० 'पुरुष'। ३०-पुरिप उपज घंटाना । पूरा डालना। १६ भाटे मादि से चौक दनाना । विक्रमी, समर समर राम मोय ।-१० रायो, पृ०३४ । जैसे, चौक पुराना। उ०-गजमुकुता हीरामनि चौक पुराइय हो ।—तुलसी ग्र०, पृ० ३ । पुरिपा-राश पुं० [हिं०] ८० 'पुगा'। उ०--(क) लक्ष्मण के सयो० कि०-देना।-लेना । परिपान पियो पुरुषारय सो न पहो पई 1-फेवय पुरानि-वि० [हिं० ] पुरानी। उ०-चादर भई पुरानि दिनो (शब्द०) । (ख) जिनके पुरिया भुन गगहि लाए । नगरी दिन बार न कीजे । सत सगत में सौद शान का सावुन दीजै । सुन स्वर्ग सदेह सिधाए ।-पेशव (शब्द॰) । -पलटू, भा० १, पृ०४। पुरिपातन- पु० [ म पुरप+तन (प्रत्य॰)] :० 'पुरुषत्व' उ०-पहर रात पाहिली राज पाए डेरा मपि । वढ़िय काम पुरायठ+-वि० [हिं० पुराना ] अत्यधिक पुराना । पुष्ट । नामना भई पुरिपातन पी मिपि ।-पृ० रा०, ११४०७ । वलिष्ठ । उ०-मनहूँ पुरायठ अजगर द्वै सनमुस पीचक मिलि ।-प्रेमघन॰, भा० १, पृ० २२ । पुरिसाल-नग पुं० [सं० परप ] ० 'पुग्मा' । उ०-पहिरण प्रौढन कयला साठे पुरिसे नी ।-टोला, दू० ६६२ । पुरायोनि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] शिव [को०। पुराराति, पुरारि-सरा पु० [२०] शिव। उ०-प्रतिथि पूज्य पुरी-राग स्पी० [सं०] १ नगरी । शहर । उ०-मोभा नही कहि प्रियतम पुरारि फे। कामद घन दारिद दारि ।-मानस, जाय फट विपिन, रची मानो पुरीन की नासिका। -भारतेंदु १॥३२॥ ५०, भा० १, पृ० २८१ । २ जागाथपुरी। पुरुषोचम घाम । ३. शरीर (को०)। ४ दुर्ग (को॰) । पुरारी-सज्ञा स्त्री॰ [सं० पुरारि ] दे० 'पुरारि'। उ०-मगल भवन अमगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी । पुरोतत-नशा ती [ म पुरीतत ] हृदय के पास की एन विशेष मानस, १।१०। नाटी । प्रांत [को०। पुराल-संश पुं० [ देश.] 1. 'पयाल'। पुरीमोह-मश पुं० [ स० ] धतूरा । पुरावती-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] एक नदी (महाभारत) । पुरोप'- पुं० [ 10 ] ? पिष्टा । गल। गू। २ जूडा चटा पुरावना-क्रि० स० [हिं० पुराना ] ८० 'पूरना' । उ०-यहु (को०) । ३ जल। विषि भारति साजि तो चौक पुरावही।-फवार ०, भा० पुरोपा-सपा पुं० [हिं०] १० पुरुष' ३०-नल राजा मेल्हे ४, पृ०३। गयो, पुरीप समी नही निगुण सतार ।-ची० रातो, पृ० ६४। पुरावस्-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] भीष्म । पुराविद्-वि० [स०] पुरानी वातो या पुराने इतिहास का पुरोपण - T पुं० [म०] १. मल । गू। २ मलत्याग (को०] । ज्ञाता [को०) । पुरीपनिग्रहण-सग पुं० [सं०] कोप्ठयक्षता (पो०] पुरावृत्त-सशा पुं० [सं०] पुराना वृचात । पुराना हाल । इतिहास। पुरीपम-उरा पुं॰ [ स०] माप । उरद । पुरापाट्-वि० [स०] भनेको का जेता । बहुतो को पराभूत पुरीपोत्सर्ग- पुं० [सं०] मलत्याग (को०] । करनेवाला को। पुरु'-सरा पु० [म०] १ देवलोक । स्वर्ग। २ एक दैत्य जिसे पुरासाह-सज्ञा पुं० [सं०] इद्र। इद्र ने मारा था। ३. पराग। ४ एक पर्वत । ५ शरीर । पुरासिनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] सहदेवी । सहदेइया नाम की बूटी। ६ बृहत्स हिता के अनुसार एक देश । ७ एक प्राचीन राजा जो नहुष के पुत्र ययाति के पुत्र थे। पुरासुहृद्-संज्ञा पुं॰ [सं०] शिव (को०) । पुरिंद्र-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पुरदर' । उ०-भज प्रभु ब्रह्म विशेप-पुराणो में ययाति चद्रयश के मूल पुरुषो में पे । ययाति पुरिंद्र महेस भज सनकादिक नारद सेस ।-सु दर० प्र०, की दो रानियां थी। एक शुक्राचार्य की कन्या देवयानी, दूसरी शर्मिष्ठा । देवयानी के गर्भ से यदु मोर तुर्वसु तथा भा० १, पृ० २२। शर्मिष्ठा के गर्भ से द्रुह्य , अनु मोर पुरु हुए। इन नामो का पुरि'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ पुरी । २ शरीर । ३ नदी । उल्लेख ऋग्वेद में है । पुरु के बडे भारी विजयी और पराक्रमी पुरि-सशा पुं० १ राजा । २ दशनामी सन्यासियों में एक । होने की चर्चा भी ऋग्वेद में है। एक स्थान पर लिखा है- पुरिखा-सज्ञा पुं॰ [हिं० ] दे० 'पुरखा' । 'हे वैश्वानर | जब तुम पुरु के समीप पुरियो का विध्वत पुरिया-सक्षा सी० [हिं० पूरना ] वह नरी जिसपर जुलाहे वाने करके प्रज्वलित हुए तब तुम्हारे भय से प्रसिक्नी (मसियनीर- को वुनने के पहले फैलाते हैं। सितवर्णा-सायण, अर्थात् असिवनी या चेनाब के किनारे मुहा०-पुरिया करना= ताने को पुरिया पर फैलाना । के फाले अनार्य दस्यु) भोजन छोड़ छोड़कर पाए' । एक