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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४८

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पुरुपन कामी [को०] । 1 स्थान पर भौर भी है-'हे इद्र | तुम युद्ध मे भूमिलाभ के पुरुद्रुह-मज्ञा पुं॰ [सं० [इद्र का एक नाम [को०] । लिये पुरुकुत्स के पुत्र प्रसदस्यु और पुरु की रक्षा करो ।' पुरा-सज्ञा पु० [सं०] पूर्व दिशा। उ०-पटिय क चार पुरुव इसका समर्थन एक और मत्र इस प्रकार करता है-'हे इद्र की वारी। लिखी जो जोरी होइन न्यारी।-जायसी तुमने पुरु और दिवोदास राजा के लिये नव्वे पुरो का नाश म. (गुप्त), पृ० ३०६ । किया है।' पुरुभोजा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुरुभोजस् ] मेघ । बादल । महाभारत मौर पुराणों में पुर के सबध में यह कथा मिलती पुरुमित्र-सझा पुं० [सं०] १ एक प्राचीन राजा जिसका नाम ऋग्वेद है-शुक्राचार्य के शाप से जब ययाति जराग्रस्त हुए तब में पाया है । २ धृतराष्ट्र का एक पुत्र । उन्होंने सब पुत्रो को बुलाकर अपना बुढापा देना चाहा । पर पुरु को छोड भौर कोई वुढापा लेकर अपनी जवानी पुरुलपट-वि० [सं० पुरुलम्पट ] अत्यधिक लपट । बहुत देने पर सम्मत न हुपा । पुरु से यौवन प्राप्त कर ययाति ने बहुत दिनो तक सुखभोग किया, प्रत में अपने पुत्र पुरु पुरुष-सज्ञा पुं० [ स०] १ मनुष्य । प्रादमी । २ नर । ३. साख्य को राज्य दे वे वन मे चले गए। पुरु के वश में ही दुष्यत के अनुसार प्रकृति से भिन्न भिन्न अपरिणामी, अकर्ता और के पुत्र भरत हुए । भरत के कई पीढियो पीछे फुरु हुए जिनके असग चेतन पदार्थ । प्रात्मा। इसी के सान्निध्य से प्रकृति नाम से कौरव वश कहलाया। ससार की सृष्टि करती है। दे० 'साख्य'। ४ विष्णु । ५. सूर्य । ६ जीव । ७ शिव । ८ पुन्नाग का वृक्ष । ६ पारा । ८ पजाव का एक राजा जो ईसा से ३२७ वर्ष पहले सिकदर से लहा था। पोरस । पारद । १० गुग्गुल । ११ घोडे की एक स्थिति जिसमे वह अपने दोनो अगले पैरो को उठाकर पिछले पैरो के बल खडा पुरु-क्रि० वि०१ अधिक । बहुत से । कई । २ अकसर । वारवार । होता है। जमना। सीखपांव । १२ व्याकरण मे सर्वनाम पुन पुन [को०। और तदनुसारिणी क्रिया के रूपो का वह भेद जिससे यह पुरुकुत्स-सज्ञा पुं० [स०] एक राजा जो माधाता का पुत्र और निश्चय होता है कि सर्वनाम या क्रियापद वाचक (कहनेवाले) मुचुकुद का भाई था और नर्मदा नदी के आसपास के प्रदेश के लिये प्रयुक्त हुपा है अथवा सबोध्य ( जिससे कहा जाय ) पर राज्य करता था। के लिये अथवा अन्य के लिये। जैसे 'मैं' उत्तम पुरुप विशेष-हरिवंश पुराण में लिखा गया है कि नागो की भगिनी हुमा, 'वह' प्रथम पुरुप और 'तुम' मध्यम पुरुप । १३ मनुष्य नर्मदा के साथ इसने विवाह किया था । नागो और नर्मदा के का शरीर या पात्मा। १४ पूर्वज। उ०—(क) सो सठ कहने से पुरुकुत्स ने रसातल मे जाकर मौनेय गधों का कोटिक पुरुष समेता। वसहिं फलप सत नरक निकेता। नाश किया था। -तुलसी (शब्द॰) । (ख) जा कुल माहिं भक्ति मम होई । ऋग्वेद में भी पुरुकुत्स का नाम पाया है। उसमें लिखा है सप्त पुरुष ले उधर । —सूर (शब्द॰) । १५ पति । स्वामी। कि दस्युनगर का ध्वस करने में इद्र ने राजा पुरुकुत्स की १६ ज्योतिष में विषम राशियाँ (को०)। १७ ऊँचाई या सहायता की थी। (१।६३।७, ११११२।१७) । गहराई की एक माप । पुरसा (को०) । १८ पाँख की पुतली। नेत्र की तारिका (को०)। १६ मेरु पर्वत (को॰) । पुरुकुत्सव-सचा पुं० [सं०] गरुडपुराण के अनुसार इद्र के एक शत्रु का नाम। पुरुषक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] घोड़े का जमना । सीखपांव । अलफ । पुरुखg -सधा पुं॰ [स० पुरुप ] दे० 'पुरुष' । पुरुषकार-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] पुरुषार्थ । उद्योग । पौरुप । पुरुखा-मज्ञा पुं० [सं० पुरुष हिं० ] १ दे० 'पुरखा' । २ ईश्वर । पुरुषकेशरी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुरुषकेशरिन् ] १ पुरुषो में श्रेष्ठ ग्रह्म । उ०-की घौं जलहिं रहै तब पुरखा। पढ़ेउ वेद पुरुष । २. नरसिंह भगवान् । यह लखेउ न मूर्खा । -कबीर सा०, पृ० ४२८ । पुरुपकेसरी-सज्ञा पुं० [सं० पुरुपकेसरिन् ] दे० 'पुरुषकेशरी' [को०] । पुरुजित्-सज्ञा पु० [सं०] १ कुतिभोज का पुत्र। यह अर्जुन पुरुषगति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का साम । का मामा था और महाभारत के युद्ध मे पाया था। २ पुरुषप्रह-सशा पुं० [सं०] ज्योतिष के अनुसार मगल, सूर्य और विष्णु। ३ भागवत के अनुसार शशविंदु वशीय रुचक के वृहस्पति । पुत्र का नाम। पुरुपघ्नी-वि० सी० [सं०] पति की हत्या करनेवाली [को०] । पुरुदंशक-संज्ञा पुं० [सं०] हस । पुरुषत्व-सणा पुं० [सं०] पुरुष होने का भाव । पुस्त्व । पुरुदशा-सज्ञा पुं॰ [ सं० पुरुदशस ] इंद्र । पुरुद-संज्ञा पुं० [सं०] सोना । स्वर्ण (को॰] । पुरुषदविका-सशा सी० [सं० पुरपदन्तिका ] मेदा नाम की पुरुदत्र-सञ्ज्ञा पुं० [३०] इद्र का एक नाम (को०] । पुरुपन-वि० [सं०] एक मनुष्य की ऊँचाई के वरावर । पृरुप- पुरुस्म-सया पुं० [सं०] विष्णु । प्रमाण [को०] । मोपधि।