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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५४

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पुलिन पुश्तो उसने चढ़ाई की तब पुलिकेशि के हाथ से गहरी हार खाकर से व्याह किया था। २ एक राक्षस । ३ प्राध्र वश का एक भाग पाया। राजा। पुलिन-सज्ञा पुं० [स०] १ वह सीड या कीचड की जमीन जिस यौ०-पुलोमजित् पुलोमद्विट्, पुलोमभिद् = इद्र । एलोमपुत्री = पर से पानी हटे थोड़े ही दिन हुए हो। पानी के भीतर से दे० 'पुलोमजा'। हाल की निकली हुई जमीन । चर । २ नदी आदि का तट। पुलोमजा-सहा सी० [सं०] पुलोम की कन्या इंद्राणी । शची। तीर । किनारा । उ०—प्रावत धीर समीर तें, चल्या पुलिन पुलोमपुत्री-सच्चा स्त्री० [स०] पुलोम प्रसुर की कन्या । इपली शची को जात ।-घनानद, पृ० १७८ । ३ नदी के बीच पड़ी हुई [को०]। रेत । ४ एक यक्ष का नाम । पुलोमहो-सच्चा सी० [सं०] महिफेन । अफीम । पुलिनवती-सशा स्त्री॰ [सं०] नदी (को०] । पुलोमा-सशा स्त्री० [सं०] भृगु की पत्नी का नाम जो वैश्वानर नामक पुलिया-सज्ञा स्त्री॰ [ फा० पुल ] छोटा पुल । दत्य को कन्या थी। च्यवन ऋपि उन्ही के पुत्र थे। पुलिरिफ-सहा पुं० [सं०] सर्प । साँप । पुलोमारि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] इद्र (को०] । पुलिश-सज्ञा पुं० [सं०] ज्योतिष के एक प्राचीन प्राचार्य जिनके नाम पुल्कस-मशा पुं० [ मं०] एक सकर जाति जिमको उत्पत्ति ग्राह्मण से पोलिश सिद्धात प्रसिद्ध है जो वराहमिहिरोक्त पच सिद्धातो पुरुप और क्षत्रिय स्त्रो से कही जाती है। शतपथ ब्राह्मण और वृहदारण्यक उपनिषद् मे इस जाति का उत्लस है। विशेष-- अलबरूनी ने पुलिश या पलस को यूनानी ( यवन ) पुल्ल'-सचा पुं० [सं०] एक फूल । लिखा है। कुछ इतिहासज्ञों ने पुलिश को भिन्न देश का पुल्लर-वि० विकसित । फुल्ल (को॰) । बताया है। पाजकल मूल पोलिश सिद्धात नहीं मिलता। पुल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० फूल ] नाक मे पहनने का एक गहना । भटोत्पल और बलभद्र ने थोड़े से वचन उद्धृत किए हैं। उन पुल्ली-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] घोडे के सुम के ऊपर का हिस्सा । उद्धृत वचनो से निश्चयपूर्वक नही कहा जा सकता कि पुवा -तज्ञा पुं० [ स० अपूप] दे० 'पूवा', 'मालपूवा' । उ०-पुवा, पुलिश कोई विदेशी ही था। सुहारी, मोदक भारी। गूझा, रसगू झा, दधि न्यारी । पुलिस-सशा सी० [म. ] १, नगर, ग्राम प्रादि को शातिरक्षा नद० ग्र०, पृ० ३०६ । के लिये नियुक्त सिपाहियो पोर कर्मचारियो का वर्ग। प्रजा पुवार-सशा पुं० [ देश०] दे० 'पयाल' । की जान पोर माल को हिफाजत के लिये मुकर्रर सिपाहियो पुश्क-सज्ञा सी० [ तु० ] दिल्ली। मार्जार [को०] । और अफसरो का दल। २ अपराधों को रोकने और अप- पुश्त-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ पृष्ठ । पीठ । पीया । २ यशपरपरा राधियो का पता लगाकर उन्हें पकडने के लिये नियुक्त सिपाही मे कोई एक स्थान । पिता, पितामह, प्रपितामह यादि या या अफसर । पुलिस का सिपाही या अफसर । पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र आदि का पूर्वापर स्थान । पीढी। यौ०-पुलिस काररवाई, पुलिस राज = भातक । दवदवा । यौ०-पुश्तखम = वह जिसकी पीठ सम हो । फुवढा। पुलिसमैन-सज्ञा पुं० [अ०] पुलिस का प्यादा। पुलिस का सिपाही । पुरतखार । पुरत दर पुश्त % वशपरपरा मे। बाप के पीछे कांस्टेबल। वेटा, बेटे के पीछे पोता इस क्रम से लगातार | पुश्तपनाह% पुलिहोरा-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] एक पकवान । २०-विविध पच पक्षपाती। मददगार। सहायक । पुश्तहा पुरत = कई पीढ़ियों पकवान अपारे । सक्कर पुगल भौर पुलिहोरा ।-रघुराज तक । (शब्द०)। पुश्तक-सच्चा नी० [फा० पुरत ] घोडे, गदहे, आदि का पीछे के पुजी-सधा सी॰ [ देश• ] काले और भूरे रंग की एक चिडिया जो दोनो पैरो से लात मारना । दोलती। सारे उत्तर भारत में पजाव से लेकर बगाल तक होती है । क्रि० प्र०-फाडना। -मारना। पुलोसा-सशा स्त्री० [. पुलिस ] दे० पुलिस' । उ०—पुलीस पुश्तखार-ज्ञा पु० [ फा० पुश्तखार ] पीठ खुजलाने का सोग या पौर अदालत के प्रमलो ने लूट मारा।-प्रेमघन०, भा०२, हाथीदांत आदि का एक पजा [को०] । पृ० १६१। पुश्तनामा-सया पु० [ फा० पुश्वनाम ] वह कागज जिसपर पुलेधैठ-सया पुं० [ फा० पील (हाथी = } + हिं• बैठना, या हिं. पूर्वापर क्रम से किसी कुन मे उत्पन्न लोगों के नाम लिये पुसना (= चलना)+बैठना ] पीछे के दोनो पैर झुका दे। हो । वशावली । पीढ़ीनामा । कुरसीनामा। पीलवानों को एक होली जिसको सुनकर हाथी पीछे के दोनो पुश्तवानी-सहा पी० [फा० पुश्त+हिं० वान (५०) ] वह पैर मुका देता है। हाथीवानो को वोली । प्राटी लक्डी जो किवाड के पीछे पल्से की मजबूती के लिय पुलोम-सपा पुं० [सं० पुलोमन् ] १. एक दैत्य जिसकी कन्या शची लगी रहती है। थी। इद्र ने युद्ध में पुलोम को मारकर उसकी कन्या घची पुश्ता-तज्ञा पुं० [फा० पुरवह] १. पानी की रोक के लिय