पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५५

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३०६४ . पुश्तापुश्त पुष्करनाम या मजबूती के लिये किसी दीवार से लगातार कुछ ऊपर कुष्ठोपधि । कुण्ठभेद । २० एक प्रकार का ढोल । २१ सूर्य । तक जमाया हुआ मिट्टी, ईट, पत्थर प्रादि का ढेर या ढालुवाँ २० एक रोग। २३ एक दिग्गज । २४ सारस पक्षी। टीला। २ पानी की रोक के लिये कुछ दूर तक उठाया २५. विष्णु का एक नाम । २६ शिव का एक नाम । हया टीला। बाघ । ऊची मेंड। ३ किताव की जिल्द के २७ पुष्कर द्वीपस्थ वरुण के एक पुत्र । २८ एक असुर । पीछे का चमडा । २६ कृष्ण के एक पुत्र का नाम । ३० वुद्ध का एक नाम । ३१ एक राजा जो नल के भाई थे। क्रि प्र०-उठाना । -देना। -बांधना। ४ पौने चार मात्रामो का एक ताल जिसमें तीन आघात और विशेष-इन्होंने नल को जुए में हराकर निषध देश का राज्य एक खाली रहता है। ले लिया था। पीछे नल ने जुए में ही फिर राज्य को जीत लिया। पुश्वापुश्त-क्रि० वि० [ फा०] पीछे के क्रम मे । पश्चाद्वर्ती (फो०] । ३२ भरत के एक पुत्र का नाम । ३३ पुराणो मे कहे गए सात पुश्वाबद्दी-सञ्ज्ञा सी० [फा०] १ पुश्ते की बधाई । पुश्ता उठाने द्वीपो मे से एक। की क्रिया या भाव । २ पुश्ते का काम । पुश्तारा-सशा पुं० [फा० पुरतारह ] पीठ पर उठाया जा सकनेवाला विशेप-दघि समुद्र के आगे यह द्वीप बताया गया है। इसका चोझ । गट्ठर । भार (को०] | विस्तार शाकद्वीप से दूना कहा गया है। पुश्तो-सचा स्त्री० [फा०] १ टेक । सहारा । पाश्रय । थाम । ३४ मेघो का एक नायक । २ सहायता। पृष्ठरक्षा। मदद। विशेष-जिस वर्ष मेघों के ये अधिपति होते हैं उस वर्ष पानी क्रि० प्र०—करना । —होना । नहीं बरसता और न खेती होती है। ३ पक्ष । तरफदारी। ३५. एक तीर्थ जो अजमेर के पास है। कि० प्र०-लेना विशेप-ऐसा प्रसिद्ध है कि ब्रह्मा ने इस स्थान पर यज्ञ किया ४ वडा तकिया जिसपर पीठ टिकाकर बैठते हैं। पीठ टेकने का तकिया। गावतकिया। ५ वाँध । मेंड । था। यहां ब्रह्मा का एक मदिर है। पद्म और नारदपुराण में इस तीर्थ का बहुत कुछ माहात्म्य मिलता है। पद्मपुराण मे पुश्तैन-वि० [फ० पुश्त ] पुरुषपरपरा। वशपरपरा । पीढ़ी दर लिखा है कि एक बार पितामह ब्रह्मा हाथ में कमल लिए पीढ़ी। यज्ञ करने की इच्छा से इस सु दर पर्वत प्रदेश में पाए। पुश्तैनी-मज्ञा स्त्री॰ [फा० पुश्त] जो कई पुरतों । से चला आता हो। कमल उनके हाथ से गिर पड़ा। उसके गिरने का ऐसा शब्द कई पीढियो से चला पाता हुआ । दादा परदादा के समय का हुआ कि सब देवता काप उठे। जब देवता ब्रह्मा से पूछने पुराना । जैसे, पुश्तैनी बीमारी, पुश्तैनी नौकर । २ जो कई लगे तव ब्रह्मा ने कहा-'बालको का घातक वचनाभ असुर पुश्तों तक चला चले। आगे की पीढियो तक चलनेवाला। रसातल में तप करता था वह तुम लोगो का सहार करने वेटे, पोते, परपोते आदि तक लगातार चला चलनेवाला। के लिये यहाँ आना ही चाहता था कि मैंने कमल गिराकर जैसे,—उसे पुश्तैनी खिताब मिला है । उसे मार डाला। तुम लोगों की बड़ी भारी विपत्ति दूर हुई। पुष'-वि० [ स० ] पोषक । [को०] । इस पद के गिरने के कारण इस स्थान का नाम पुष्कर पुपर-सज्ञा पु० [सं० पुप्य ] एक नक्षत्र । दे० 'पुष्य' । उ०-काल होगा। यह परम पुण्यप्रद महातीर्थ होगा। पुष्कर तीर्थ का जोगण भद्रा नही पुप नक्षत्र नई कातिक मास । -वी० उल्लेख महाभारत में भी है । सांची में मिले हुए एक रासो०, पृ०४०। शिलालेख से पता लगता है कि ईसा से तीन सौ वर्ष से भी पुषा-वज्ञा स्त्री॰ [ स०] कलिहारी का पौध।। कलियारी। और पहले से यह तीर्थस्थान प्रसिद्ध था। आजकल पुष्कर पुषित-वि० [सं०] १ पोषण किया हुआ । पाला पोसा हुआ । में जो ताल है उसके किनारे सु दर घाट मौर राजाओ के २ वर्षित। बहुत से भवन बने हुए हैं। यहाँ ब्रह्मा, सावित्री, वदरीनारायण मौर वराह जी के मदिर प्रसिद्ध हैं। पुष्क-सञ्ज्ञा पुं॰ [स] पोपण। पुष्टि [को०] । ३६. विष्णु भगवान् का एक रूप । पुष्कर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] १ जल । २ जलाशय । ताल । पोखरा । ३ कमल । ४ करछी का कटोरा। ५ ढोल, मृदग आदि विशेष-विष्णु की नाभि से जो कमल उत्पन्न हुमा था वह का मुंह जिसपर चमडा मढा जाता है । ६ हाथी की सूंड उन्ही का एक मग था। इसकी कथा हरिवश में बढे विस्तार का अगला भाग। ७ आकाश। ८ वाण । तीर । ६ तलवार के साथ पाई है। पृथ्वी पर के पर्वत श्रादि नाना भाग इस की म्यान या फल । १० पिंजडा। ११ पद्मकद । १२ पघ के पग कहे गए हैं। नृत्यकला । १३. सर्प । १४ युद्ध । १५ भाग। अश । पुष्करकर्णिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] स्थलपछिनी । १६ मद । नशा । १७. भग्नपाद नक्षत्र का एक प्रशुभ योग पुष्करनाडी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] स्थलपमिनी । जिसकी शाति की जाती है। १५. पुष्करमूल । १६ कठ। पुष्करनाभ-संज्ञा पुं॰ [सं०] विष्णु [को०] ।