पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५६

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४ में से एक। पुष्करपक्ष २०६५ पुष्टिदग्धयत्न पुष्करपक्ष-सज्ञा पु० [सं०] कमलपत्र । पुष्कलक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कस्तूरीमृग । २ कील । खूटी। पुष्करपर्ण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. कमल का पत्ता । २ एक प्रकार ३ अर्गला । ४ बौद्ध भिक्षु [को०] । की ईंट जो यज्ञ की वेदी बनाने के काम मे पाती थी। पुष्कलावती-सज्ञा स्त्री० [सं०] गांधार देश की प्राचीन राजधानी । विशेष-विष्णुपुराण में लिखा है कि भरत के पुत्र पुष्कल ने पुष्करपनाश-सज्ञा पुं॰ [ स०] दे० 'पुष्करपत्र' (को०] । इस नगरी को बसाया था। सिकदर की चढाई के समय मे पुष्करप्रिय-सज्ञा पु० [ स०] १ मधुमक्षिका । २ मोम (को॰) । यह नगरी थी क्योंकि एरियन प्रादि यूनानी लेखकों ने पेकु. पुष्करबीज-सज्ञा पुं० [सं०] कमल का बीज (को०] । केले, प्युकोलैतिस आदि नामों से इसका उल्लेख किया है । पुष्करमल-सशा पुं० [स०] एक ओषधि का मूल या जड जो एरियन ने लिखा है कि यह नगरी बहुत बड़ी थी और सिंधु- कश्मीर देश के सरोवरो में उत्पन्न कही जाती है। नद से थोड़ी ही दूर पर थी। ईसा की सातवी शताब्दी में विशेष-यह ओषधि प्राजकल नही मिलती, वैद्य लोग इसके आए हुए चीनी यात्री हुएन्साग ने भी इस नगरी में हिंदू देव- स्थान पर कुष्ठ या कूठ का व्यवहार करते हैं। मदिरो और बौद्ध स्तूपो का होना लिखा है । पेशावर से पुष्करव्याघ्र-सञ्चा पुं० [सं०] घडियाल । मगर । [को०] । नौ कोस उत्तर स्वात और कावुल नदी के सगम पर जहाँ हस्तनगर नाम का गाँव है वही प्राचीन पुष्कलावती थी। पुष्करशिफा-सज्ञा सी० [स०] पुष्करमूल । पुष्ट'-वि० [सं०] १ पोषण किया हुप्रा । पाला हुआ। २ पुष्करसागर-सञ्चा पु० [सं०] पुष्करमूल । तैयार । मोटा ताजा । बलिष्ठ। ३ मोटा ताजा करनेवाला । पुष्करसारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] ललितविस्तर में गिनाई हुई लिपियो बलवर्धक । जैसे,—गाजर का हलुमा बडा पुष्ट है। दृढ़ । मजबूत । पक्का । ५ पूर्ण। पूरा (को०)। ६ गभीर । पुष्करस्थपति-सज्ञा पुं० [सं०] शिव [को०] । पूर्ण ध्वनियुक्त (को०)। पुष्करस्रज-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ अश्विनीकुमार । २ कमल के फूलों पुष्ट'-सज्ञा पुं० १ विष्णु । २ पोषण (को॰) । की माला (को०)। पुष्टई -सज्ञा स्त्री० [सं० पुष्ट + हि० ई (प्रत्य॰)] पुष्ट करनेवाली पुष्कराक्ष'-सचा पुं० [ स०] विष्णु [को०] । औषध । बल-वीर्य वर्धक औषध । ताकत की दवा । पुष्कराक्ष-वि० कमल जैसी माखोवाला । कमलनेत्र । पुष्टता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ मोटा ताजापन । मजबूती । बलिष्ठता। पुष्कराख्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] सारस । २ पोढापन । दृढ़ता। पुष्कराम- सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] हाथी की सूड का छोर (को०] । पुष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ पोषण। २ मोटाताजापन । बलिष्ठता। पुष्करावर्तक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] मेघों के एक विशेष अधिपति । ३. वृद्धि । सतति की बढती । ४ दृढ़ता । मजबूती। ५ बात का समर्थन । पक्कापन । जैसे,—इस बात से तुम्हारे कथन पुष्कराह्व-सज्ञा पुं० [सं०] १ सारस । २ पुष्करमूल [को०] । की पुष्टि होती है। ६ सोलह मातृकाप्रो मे से एक । ७. पुष्करिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] एक रोग जिसमें लिंग के अप्रभाग मगला, विजया प्रादि पाठ प्रकार की चारपाइयों मे से एक । पर फुसियां हो जाती हैं। ८ धर्म की पत्नियो में से एक । ६ एक योगिनी। १० अश्व- पुष्करिणी-सशा स्त्री॰ [ स०] १ हथिनी। २ कमलों से भरा गधा । असगध । ११ सपन्नता। धनाढ्यता । वैभव (को०) । हुआ तालाब । ३ कमल का पौधा। ४ कमलिनी। १२. रक्षण । सहायता (को०)। १३ अभ्युदय के लिये किया ५ पुष्करमूल । ६ कमल का समूह । ७ स्थलपद्मिनी। जानेवाला एक धार्मिक कृत्य (को॰) । ८. सौ धनुष की नाप का एक प्रकार का चौकोर तालाब (को०] । पुष्टिकर-वि० [सं०] पुष्ट करनेवाला। बल-वीयं-वर्धक । ताकत पुष्करों-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुष्करिन् ] हाथी । देनेवाला । जैसे, पुष्टिकर पदार्थों का भोजन । पुष्टि करी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] गगा (काशीखड)। पुष्करी-वि० पुष्करयुक्त । कमलयुक्त [को०] । पुष्टिकम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक धार्मिक कृत्य जो वैभव और पुष्कल'-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ चार ग्रास की भिक्षा । २. अनाज नापने का एक प्राचीन मान जो ६४ मुट्टियों के बरावर सपन्नता प्राप्त करने के लिये किया जाता है [को॰] । होता था। ३ राम के भाई भरत के दो पुत्रो मे से एक । पुष्टिकांत-समा पुं० [ स० पुष्टिकान्त ] गणेश [को०) । ४ एक असुर । ५ एक प्रकार का ढोल । ६ एक प्रकार पुष्टिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] जल की सीप । सुतही । सीपी। की वीणा । ७ शिव । ८ वरुण के एक पुत्र । ६. एक बुद्ध पुष्टिकाम-वि० [सं०] अभ्युदय का इच्छुक । पुष्टि की कामना का नाम । १० मेरु पर्वत का एक नाम (को॰) । करनेवाला [को०] । पुष्कल-वि०१ बहुत । अधिक । ढेर सा । प्रचुर । २ मरापूरा । पुष्टिकारक-वि० [सं०] पुष्टि करनेवाला । वल-वीर्य-कारक । परिपूर्ण । ३ श्रेष्ठ । ४ समीपस्थ । उपस्थित । वि० [सं०] पुष्टि देनेवाला । पुष्टिकारक (को० । ६. शब्द या कोलाहल से पूर्ण (को॰) । यत्न-सच्चा पुं० [सं०] भाग के जले को माग से ही