पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५८

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पुष्पध ३०६७ पुष्पवाटिका पुष्पध-सज्ञा पुं० [ स०] व्रात्य ब्राह्मण से उत्पन्न एक जाति । पुष्पमंजरिका-नशा स्त्री० [सं० पुष्पमञ्जरिका] नील कमलिनी । विशेप-व्रात्य ब्राह्मण की सवर्णा पत्नी से उत्पन्न संतति पुष्पध पुष्पमंजरी-संज्ञा सज्ञा [ स० पुष्पमञ्जरी ] १ फूल की मजरी कहलाती है। २ घृतकरज । घीकरज। पुष्पमाल-पञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पुप्प+हिं० माल ] फूलो की माला । पुष्पधनुस्-सा पु० [सं० पुप्पधनुप] कामदेव । उ०-पावत देखे श्याम मनोहर पुष्पमाल ले दौरी।-नद० पुष्पधन्वा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुष्पधन्वन् ] १. कामदेव । मीनकेतु । ग्र०, पृ० ३५४ । २. एक रसौषध। पुष्पमास-मञ्ज्ञा पुं० [स०] १ वसत ऋतु के दो महीने । वसत विशेष-यह रससिंदूर, सीसे, लोहे, अभ्रक और वग में धतूग, ऋतु । २ चैत्र (को०)। भांग, जेठी मधु, सेमरामूल मिलाकर पान के रस की भावना पुष्पमित्र-सज्ञा पु० [सं०] एक राजा । देने से बनती है और कामोद्दीपक तथा शक्तिवर्धक मानी विशेष -दे० 'पुष्यमित्र। जाती है। पुष्पमृत्यु-मज्ञा पुं० [म० ] देवनल । एक प्रकार का नरकट । पुष्पधारण-सज्ञा पुं० [०] विष्णु फो०] । बडा नरसल । पुष्पध्वज-सञ्चा पु० [ स०] कामदेव । पुप्परक्त-पज्ञा पुं॰ [ म० ] सूर्य मणि नाम के फूल का पौधा । पुष्पनिक्ष-सज्ञा पु० [सं०] भ्रमर । भौंरा । पुष्परज-सज्ञा पुं॰ [ स० पुप्परजस् ] पराग । फूलो की धूल । पुष्पनिर्यास, पुष्पनिर्यासन-सज्ञा पुं० [स० ] पुष्परम । मकरद । पुष्परथ-सज्ञा पुं॰ [ मं० ] टहलने घूमने प्रादि का रथ [को०] । पुष्पनेत्र-सशा पुं० [सं०] वग्ति की पिचकारी की सलाई। पुप्परस-सच्चा पु० [सं० ] मधु । मकरद । पुष्पपत्री-सज्ञा पुं० [सं० पुप्पपग्निन् ] कामदेव । पुष्परसाह्वय-सज्ञा पु० [सं० । मधु । पुष्पपथ-सज्ञा पुं० [सं०] स्त्रियो के रज के निकलने का मार्ग । पुष्पराग-सज्ञा पु० [ म० ] एक मणि । पुखराज । योनि । भग। पुष्पराज-सशा पु० [ स० ] पुष्पराग । पुखराज । पुष्पपदवी-सज्ञा स्त्री० [स०] योनि । भग [को०] । पुष्परेणु-सज्ञा पुं॰ [ स० ] फूल की धूल । पराग । पुष्पपांडु-सज्ञा पुं॰ [सं० पुष्पपाण्ड ] एक प्रकार का साँप । पुष्परोचन-सचा पुं० [सं०] नागकेसर । पुष्पपिट-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुप्पपिण्ड ] अशोक का पेड । पुष्पलक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे॰ 'पुष्कलक' । पुष्पपुट-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ फूल की पंखडियों का आधार जो पुष्पलाव-पना पुं० [स०] [स्त्री० पुष्पलावी ] फूल चुननेवाला । कटोरी के आकार का होता है । २ उक्त आकार का हाथ माली। का चगुल । पुष्पलावन-सी० पुं० [सं०] बृहत्सहिता के अनुसार उत्तर दिशा फा पुष्रपुर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] प्राचीन पाटलिपुत्र (पटना) का एक नाम । एक देश । पुष्पपेशल-वि० [०] पुष्प की तरह कोमल । फूल सा मृदु । पुष्पलावो-सञ्ज्ञा ली० [म० पुष्पलाविन् ] फूल 'चुननेवाली। मालिन । पुष्पप्रचय, पुष्पप्रचाय-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] फूल 'नुनना [को०] । पुष्पलिक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] भ्रमर । भौंरा । पुष्पप्रस्तार-सज्ञा पुं० [ स० ] पुष्पशय्या । फूलों का विछौना [को०] । पुष्पलिपि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] एक पुरानी लिपि या लिखावट पुप्पप्रियक-सञ्ज्ञा पु० [ सं० ] विजयसाल । (ललितविस्तर)। पुष्पफल-सज्ञा पु० [स०] १ कुम्हडा । २ कैथ । कपित्थ । ३ पुष्पलिह-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० पुप्पलिह ] भ्रमर । भौरा । अर्जुन वृक्ष । पुष्पवती-वि० [सं०] १ फूलवाली । फूली हुई । २ रजोवती। पुष्पबाण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] कामदेव । रजस्वला । ऋतुमती। उ०-उम प्रकृतिलता के यौवन मे, पुष्पभद्र-सक्षा पुं० [ स०] वास्तु शिल्प में एक प्रकार का मडप उस पुष्पवती के माधव का, मघुहास हुपा था वह पहला, दो रूप मधुर जो ढाल सका ।-कामायनी, पृ०७२ । ३ जिसमें ६२ खभे हो। महाभारत में वणित एक तीर्थ । ४ उठी हुई गाय (को०) । पुष्पभद्रक-राज्ञा पुं० [सं० ] देवतामो का एक उपवन । पुष्पवर्ग-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] अगस्त, कचनार, सेमल अादि का भायु- पुष्पभद्रा-सञ्ज्ञा सी० [ सं०] मलयगिरि के पधिचम की एक नदी। वेदोक्त वर्ग [को०)। (ब्रह्मवैवर्त )। पुष्पवा-यशा पुं० [ म० पुष्पवर्मन् ] द्रुपद नरेश । दौपदी के पुष्पभव-सज्ञा पुं० [सं०] पुष्परस । मकरद [को०] । पिता का नाम [को०] । पुष्पभूति-सज्ञा पुं० [ म० ] १ सम्राट हर्षवर्धन के पूर्व/पुरुष जो पुष्पवर्ष-सज्ञा पुं० [ म० ] एक वपपर्वत का नाम । शैव थे । २ काबोज या कावुल के एक हिंदू राजा जो ईसा पुष्पवाटिका-सञ्ज्ञा स्रो० [सं०] फुलवारी। फूलो का बगीचा । की सातवी शताब्दी में राज्य करते थे उपवन । उद्यान ।