पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुष्पवाटी २०६८ पुष्पिताः पुष्पवाटी-मश स्री० [सं०] फुलवारी । फूलों का बगीचा । पुष्पांक-ज्ञा पुं० [ स० पुप्पास ] माधवी । अनेकार्थ । (शब्द॰) । पुष्पवाण-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ फूलों का घाण । २ कामदेव । पुष्पांजन-सा पुं० [सं० पुप्पाञ्जन ] एक प्रकार का पजन जो ३ कुशद्वीप के एक राजा । ४ एक दैत्य । पीतल के कसाव के साथ कुछ प्रोपषियो को पीसकर पुष्पवाहिनी-सशा स्त्री॰ [सं०] हरिवश पुराणोक्त एक नदी । बनाया जाता है। वैद्यक मे सब प्रकार के नेत्ररोगों पर यह पुप्पविचित्रा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] एक वृत्त का नाम । एक इद्र का चलता है। नाम (को०)। पर्या-पुप्पकेतु । कौसु भ। रीतिक । रीतिपुष्प । पुष्पविमान-सञ्ज्ञा पु० [स० पुष्प+विमान ] दे॰ 'पुष्पक' । उ० पुष्पाजलि-सज्ञा स्त्री॰ [ मै० पुप्पाञ्जलि ] फूलो से भरी अजली पुष्पविमान सदा उजियारा । —कबीर सा०, पृ० २। या प्रजली भर फूल जो किसी देवता या पूज्य पुरुष को पुप्पविशिष-सञ्चा पु० [सं०] दे० 'पुष्पवाण' । चढाए जायें। पुष्पवृष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] फूलों की वर्षा । ऊपर से फूल गिरना । पुष्पाढ-मज्ञा पु० [ स० पुप्पाण्ड ] एक प्रकार का पान (को०] । (मगल उत्सव या प्रसन्नता सूचित करने के लिये फूल गिराए पुष्पाबुज-मचा पुं० [ मै० पुप्पाम्बुज] मकरद । जाते थे)। पुष्पांभस -सज्ञा पुं॰ [सं० पुप्पाम्भस ] एक तीर्थ । पुष्पवेणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] फूलो की बनी हुई वेणी। फूलों से पुष्पा-सजा स्री० [सं०] कर्ण की राजधानी जो भगदेश में थी। गुयी हुई वेणी (को०)। चपा (माजकल के भागलपुर के पास)। पुष्पशकटी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] भाकाशवाणी। पुष्पाकर-सज्ञा पु० [ स० ] वसत ऋतु । पुप्पशकलो-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० ] सुधुत के अनुसार एक प्रकार का पुष्पागम-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] वसत काल । विषहीन सांप। पुष्पाग्र-सज्ञा पुं॰ [सं०] वीजकोश । गर्भ केसर (को०] । पुष्तशर-सज्ञा पु० [सं०] कामदेव । पुष्पजीव-सज्ञा पुं० [स०]फूलो से जिसकी जीविका हो-माली (को०)। पुप्पशरासन-सज्ञा पु० [ मं०] कामदेव । पुष्पाधर-सज्ञा पुं॰ [ स० पुप्प+अधर ] फूलो के अोठ। पंखुड़ियाँ पुष्पशाक-सज्ञा पुं० [स०] ऐसे फूल जिनकी भाजी बनाई जाती है, उ०-मुक कर पुष्पाघर मुसकाए । -अर्चना, पृ० ८६ । जैसे, कचनाल, रासना, खैर, सेमल, सहजन, अगस्त, नीम । पुष्पानन-सज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का मद्य । पुष्पशून्य'-वि० [सं०] बिना फूल का । पुष्परहित । पुष्पापण-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] फूलो का वाजार [को॰] । पुष्पशून्य-सज्ञा पु० गूलर। पुष्पापीड-सज्ञा पुं॰ [ स० ] सिर पर रखी हुई या पहनी जानेवाली पुष्पशेखर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] फूलों की माला [को०] । माला (को०] । पुष्पश्रेणी-सशा स्त्री० [सं० ] मूसाकानी । पुष्पायुध-सज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । पुष्पसमय-मज्ञा पुं॰ [स०] वसत [को०। पुष्पाराम-मया पुं० [ स०] फूनो का बगीचा [को०] । पुष्पसाधारण-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] वसतकाल । पुष्पावचायी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० पुप्पावचायिन् ] मालो [को०] । पुष्पसार-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. फूल का मधु या रस। २ फूलो पुष्पासव-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] फूलों से बनाया हुमा मद्य । मद्य । का इण। पुष्पसारा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] तुलसी । पुष्पास्तरण-सज्ञा पुं० सं०] १ शय्या पर फूल सजाने की कला । २ फूलो को सजी हुई शय्या [को०] । पुष्पसूत्र-सज्ञा पुं० [०] दक्षिण में प्रसिद्ध सामवेद का एक सूत्रग्रथ जो गोभिलरचित कहा जाता है। पुष्पास्त्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कामदेव (को०] । पुष्पसौरभा-सशा मी० [सं०] कलिहारी का पौधा । करियारी । पुष्पाहा-सशा स्पी० [सं०] सौंफ । पुष्पस्नान-सज्ञा पुं॰ [ स०] दे० 'पुष्यस्नान'। पुष्पिका–सञ्चा सी० [स०] १ दांत को मैल । २ लिंग की मैल पुष्पस्नेह-सशा पुं० [ स०] मक रद । पुष्परस (को०) । ३. अध्याय के अत मे वह वाक्य जिसमें कहे हुए प्रसग की समाप्ति सूचित की जाती है । यह वाक्य 'इति श्री' करके प्राय पुष्पस्वेद-सज्ञा पुं॰ [ स०] दे० पुष्पस्नेह' । प्रारंभ होता है जैसे, 'इति श्री स्कदपुराणे रेवाखडे' इत्यादि । पुष्पहास-प्रज्ञा पु० [सं०] १ फूलों का खिलना । २ विष्णु। पुष्पिणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ म० ] रजस्वला [को०] । पुष्पहासा-सचा ग्री० [ म०] रजस्वला स्त्री। पुष्पहीन'–वि० [स०] बिना फूल का। पुष्पित-वि० [ स०] १ पुष्पसयुक्त । फूला हुया । २ रगविरगा। ३ विकसित (को०)। पुष्पहीन-सज्ञा पुं॰ [सं०] गूलर का पेड। पुष्पित'-सञ्ज्ञा पुं० १ कुशद्वीप का एक पर्वत । २ एक बुद्ध का पुष्पहीना-सक्षा सी० [सं०] (स्त्री) जिसे रजोदर्शन न हो। बाँझ । नाम। वध्या। पुष्पिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [ म० ] रजस्वला स्त्री।