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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३७१

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समय का। पूर्णकाम २०५० पूर्णदर्शन पूर्णकाम-सञ्ज्ञा पुं० परमेश्वर। पूर्णदर्व -मझा पु० [ स०] १ एक वैदिक त्रिया । २. पूर्णिमा। पूर्णकाल आधि-सुज्ञा स्त्री॰ [ म० ] वह गिरवी जिसके रखने का पूर्णपरिवतक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह जीव जो अपने जीवन में अनेक समय पूरा हो गया हो। वार अपना रूप प्रादि बदलता हो । जैसे, तितली। पूर्णकालिक-वि० [ म० पूर्ण + कालिक ] पूरे समय तक । पूरे पूर्णपदु-सज्ञा पुं॰ [सं० पूर्णपर्वेन्दु ] पूर्णिमा । पूर्णमासी। पूर्णकाश्यप-सशा पु० [ स० ] बौद्धशास्त्रों के अनुसार एक प्रसिद्ध पूर्णपात्र-सचा पृ० [ स० ] १ पूरा पात्र । भरा हुमा पात्र । २ पुत्रजन्मादि के उत्सव के समय पारितोषिक या इनाम के तीथिक। भगवान् बुद्ध ने जिन यह तीथिको को पराजित रूप में मिले हुए -वम्य, अलकार आदि। ३ सुसवाद लाने- किया था उनमें एक ये भी थे। वालो को मिलनेवाला उपहार । अच्छी सूचना लाने पर विशेप-वुद्ध से पहले ही इन्होने अपने मत का प्रचार प्रारभ मिलनेवाला पुरस्कार। ४ वह घहा जो प्राचीन काल में कर दिया था और बहुत से लोग उनके अनुयायी हो गए चावलो से भरकर होम या यज्ञ के अंत में ब्रह्मा को दक्षिणा थे। साधारण लोगो से लेकर मगध के राजा तक इनपर रूप में दिया जाता था। इसमें साधारणत २५६ मुट्ठी भक्ति और श्रद्घा रखते थे। भूटान में मिले हुए एक बौद्ध चावल हुमा करता था। ग्रथ के अनुसार ये उपर्युक्त छहों तीथिको मे प्रधान थे। ये पूर्णप्रज्ञ'–वि० [सं०] जिसकी बुद्धि में कोई कमी या त्रुटि न कोई कपडा नहीं पहनते थे, नगे बदन घूमा करते थे, ये कहते हो । पूर्ण ज्ञानी । बहुत बुद्धिमान् । थे, जगत् प्रनत भी है और सात भी, अक्षय भी है, क्षयशील भी, असीम भी है और ससीम भी, चित्त और देह भिन्न भी पूर्णप्रज्ञ-सज्ञा पुं० पूर्णप्रज्ञ दर्शन के कर्ता मध्वाचार्य । हैं और अभिन्न भी। परलोक का अस्तित्व और अनस्तित्व विशेष-ये वैष्णव मत के संस्थापक प्राचार्यों में माने जाते हैं। दोनों ही है। पर जन्म नहीं है, इस जन्म में ही जीव का वेदातसूत्र पर इन्होने 'माध्यभाष्य' नामक दैतपक्षप्रतिपादक शेप, ध्वस या मृत्यु होती है। मरने के बाद फिर जन्म नही भाष्य लिखा है। हनुमान और भीम के बाद ये वायु के होता। शरीर चार भूतो से हो-क्षिति, अप, तेज और तीसरे अवतार माने गए हैं। अपने भाष्य मे इन्होंने स्वय मरुत् से बना है। मृत्यु के पश्चात् वह क्रम से पृथ्वी, जल, भी यह बात लिखी है । इनका एक नाम मानदतीर्थ भी है। अग्नि और वायु में मिल जाता है। उनके मत से यही पूर्णदर्शन-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] सर्वदर्शन स ग्रह के अनुसार वह दर्शन परमतत्व था। बुद्ध से पराजित होने का इन्हें इतना दुख जिसके प्रवर्तक पूर्णप्रज्ञ या मध्वाचार्य हैं। हुआ था कि ये गले मे बालू से भरा घडा बांधकर दूब मरे । विशेष-इस दर्शन का आधार वेदातसूत्र मौर उसपर रामानुज श्रावस्ती और जेतवन में बुद्ध के साथ इनको मूर्ति भी पाई कृत भाष्य है । इसके अधिकतर सिद्धात रामानुज दर्शन के गई है। सिद्धांतो से मिलते हैं। दोनों का मुख्य प्रतर ईश्वर मौर पूर्णकु भ-सज्ञा पुं० [ पूर्णकुम्भ ] १ भरा हुआ घडा । २ पानी से जीव के भेदाभेद के विषय में है। इस संबंध में रामानुज भरा हुआ वह घडा जो शुभ की दृष्टि से दरवाजे पर रखा दर्शन का भेद, प्रभेद और भेदाभेद सिद्धांत इस दर्शन को जाता है। ३ दीवार में बना हुआ घडे के आकार का छेद । स्वीकार नहीं है। इसके मत से जीव मौर ईश्वर में किसी ४ युद्ध की एक विशेष विधि [को०] । प्रकार का सूक्ष्म या स्थूल अभेद नहीं है, किंतु स्पष्ट भेद है। पूर्णकोशा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] एक प्रकार की लता । उनका सबध शरीरात्म भाव का नहीं है बल्कि सेग्य सेवक भाव का है। म तर्यामी होने के कारण जीव ईश्वर का । पूर्णकोषा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ कचौरी । २ प्राचीन काल का शरीर नहीं है, बल्कि उसका सेवक और अधीन है। ईश्वर एक प्रकार का पकवान जो जौ के आटे का बनता था। स्वतंत्र तत्व श्रोर जीव अस्वतत्र तत्व और ईश्वरायत्त है। पूर्णकोष्ठा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] नागरमोथा । इस दर्शन के मत से पदार्थ के तीन भेद हैं-चित् ( जीव ), पूर्णगर्भा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ पूरन पूरी । २. वह स्त्री जिसे अचित् ( जड ) और ईश्वर । चित् जीवपदवाच्य, भोक्ता,, शीघ्र प्रसव होने की संभावना हो। वह स्त्री जिसे शीघ्र ही असकुचित, अपरिच्छिन्न, निर्मल ज्ञानस्वरूप, नित्य, मनादि सतान होनेवाली हो। पौर फर्मरूप अविद्या से ढंका हुपा है। ईश्वर का माराधन पूर्णचंद्र-सशा पु० [ स० पूर्णचन्द्र ] पूर्णिमा का चद्रमा । अपनी और उसकी प्राप्ति उसका स्वभाव है। (प्राकार में ) वह सब कलाओं से युक्त चद्रमा । वाल की नोक के सौंवें भाग के बराबर है। प्रचित् पदार्थ यौ०-पूर्णचनिभानन = चद्रमा की तरह से मुखवाला। दृश्यपदवाच्य, प्रोग्य, अचेतनस्वरूप पौर विकारशील हैं। फिर भोग्य, भोगोपकरण और भोगायतन या भोगापार रूप पूर्णतया-क्रि० वि० [स० ] पूरी तरह से । पूर्ण रूप से । से इसके भी तीन भेद हैं। ईश्वर हरिपदवाच्य, सबका पूर्णतः-क्रि० वि० [ स० पूर्णतस् ] पूरे तौर से । पूर्णतया । नियामक, जगत् का कर्ता, उपादान, सकलातर्यामी, पपरिच्छिन्न पूर्णता-सज्ञा सी० [ स० ] पूर्ण का भाव । पूर्ण होना । भौर ज्ञान, ऐश्वर्य, वीर्य, शक्ति, तेज मादि गुणों से पूर्णतूण-वि० [ स० ] जिसका तरकस वाणो से पूर्ण हो [को०] । संपन्न है।