पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३८

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परती पवारा २७४७ कौनी। बिंव पंवारे लाजही दामिनि दुति थोरी। ऐसे हरि हुआ बेकार धान । उ०-पइया करम ध्यान सो फटको जोग हमको कहो कहूं देखे हो री।—सूर (शब्द॰) । जुक्ति करि सूपे ।-भीखा श०, पृ० २० । पवारा- संज्ञा पु० [स० प्रवाद] १ कीर्ति की गाथा । वीरता का पइरनाल-क्रि० स० [हिं० पैरना ] तैरना। पैरना । उ०- पइरि मोम अइलिहूं तरनि तरग । लांघल साए सहस भुजग। पाख्यान । उ०-वीर बडो विरुदैत बली, अजहूँ जग विद्यापति, पृ० २५८ । जागत जासु पंवारो। सो हनुमान हनी मुठिका, गिरि गो गिरिराज ज्यो गाऊ को मारो। तुलसी ग्र०, पृ० १६१ । पइलहाबु-वि० [हिं० परला ] उस पोर का। दूसरी तरफ का। दे० 'पवाडा'। दे० 'परला' । उ०-कू झडियाँ कलिमल कियउ, सरवर पइ- पषारी-मचा स्त्री॰ [देश॰] लोहारो का एक औजार जिससे लोहे लइ तीर । निसि भरि सज्जण सल्लियाँ, नयणे वूहा नीर ।- मे छेद किया जाता है। ढोला०, दू० ५६ । पसरहट्टा-सज्ञा पुं० [हिं० पंसारी+हट्ट, हाट] वह बाजार जहाँ पइला-सञ्ज्ञा पुं० [ देश० ] अनाज मापने का एक वरतन जिसमें पसारियो की दुकानें हो। पांच सेर अनाज आता है। पॅसियाना -क्रि० स० [हिं० पासा] पासे से मारना। पइसा-सशा सी० [सं० प्रविश, प्रा० पइस ] पैठ। प्रवेश। गति । रसाई । पहुंच। पॅसुरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'पंसुली' । पइसना-क्रि० अ० [ स० प्रविश ] दे० 'पैसना' । उ०-( क ) पसुनी-सच्चा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'पसली'। हियडइ भीतर पइसि करि, गउ सज्जण रूख । नित सूकइ पह-प्रव्य० [स० पार्श्व] १ पास । समीप । नजदीक । २ से । नित पल्हवइ, नित नित नवला दूख ।-ढोला०, दू०१८ । प'- वि० [सं०] १ पीनेवाला। जैसे,-द्विप, अनेकप, मद्यप । २ (ख ) खेला पइसइ मांडली । पाखर पाखर प्राणजे जोडि । रक्षा या शासन करनेवाला । जैसे, क्षितिप, नृप । बी० रासो, पृ० ४। प- सज्ञा पुं०१ वायु । हवा। २ पत्ता। ३ अडा। ४ पीने की पइसारा-सचा पुं० [हिं० पइसना ] पैठ । प्रवेश । उ०-अति लघु क्रिया । ५ सगीत मे पचम स्वर का सकेत [को०] । रूप धरौं निसि नगर करउ पइसार ।-तुलसी (शब्द०)। पहल+-अव्य० [स० प्रति, प्रा० पडि, पइ, हिं० पं] पास । समीप । पइहरनाg+-क्रि० स० [हिं० पहनना ] पहनना। पहिरना । उ.-एक दिवस पूगल सदर सउदागर आवत । तिण पइ धारण करना । उ०-( क ) गलि पइहरउ मोतीय को घोडा अति घणा बेच्या लाख लहत ।-ढोला०, दू०८३ । हार ।-बी० रासो, पृ०७२। (ख) जान तणी साजति पइभाल-सज्ञा पुं॰ [स० पाताल] दे० 'पाताल' । उ०-सगल खड करउ, जोरह रगावली पइहरज्यो टोप ।-बी० रासो, पृ० ११ महि रहे अखच सुरग पइसाल अरु ब्रह्मड। -प्राण०, पृ०६। पई-सज्ञा पुं० [स० पद, प्रा० पय, पइ ] पैर । पाँव । उ०- पइग-सञ्ज्ञा पु० [सं० पग] दे० 'पैग', 'पग'। अष्टजाम चित लगै रह्तु है प्रमु जी के परलु पई।-गुलाल०, पइजा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० प्रतिज्ञा दे० 'पैज' । पृ० ४२। पइठ-सचा श्री० [स० प्रविष्टि] दे० 'पैठ' । पई२-सचा पुं० [ देशी पइश्र] पहिया। रथचक्र। उ.-बडक पइठना -क्रि० अ० [स० प्रविष्ट से धातुरूप] दे० 'पैठना'। उ०- ओघण बघिया, पैसे पई पताल । सोच कर नह सागडी घवल झावकि पइठी झालि, सु दरि काइ न सलसलइ। बोलइ नही तणी दिस भाल ।-बाँकी० ग्र०, भा०१, पृ० ३८ । ज बाल धण धधूणी जोइयउ।-ढोला०, दू०६०३ । पउँ अ-सञ्ज्ञा पुं० [स० पद्म, प्रा० पउम ] दे० 'पद्म' । उ०- पइता-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक छद जिसे पाइता भी कहते हैं। इसमे एक पउँप नाल अइयपन भल मैल । रात परीहन पल्लव देल । मगण, एक भगण और सगण होता है। जैसे,—ताके दोनो विद्यापति, पृ० १६५। कुल गनिए, श्री दोनो लोचन मनिये । जेते नारी गुण यौ०-पउयनाल = पमनाल । वनार । गनियो । सो है लागे श्रुति सुनियो। पउँरि, पउँरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हिं . ] ड्योढ़ी । दे० 'पौरि'। पइना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं] दे० 'पैना'। पउड़ी-सज्ञा स्त्री॰ [हि० पंवरि ] प्रवेशद्वार । ड्योढी। उ०- पहभर-सज्ञा पुं॰ [स० पदाति + भट ] दे० 'पैदल'। उ०-गज ऊची पउडी ले गगनतरि चढ़ीया । महद वीचारु चमकी वाजि रथ्य पइभर गहर सजिय सेन सनमुख चलिय।-पृ० जोतीडीमा। -प्रारण०, पृ० २२३ । रा०, श६१८ पउढना-क्रि० प्र० [ देशी पवढ्ढ ] शयन करना । पौढना । पइयाँ-सज्ञा स्त्री० [ देश० ] जगली चेरी। उ०-पइमों की प्रसन्न 3०-ढोलउ मारू पउढिया, रसमई चतुर सुजाण । च्यारे पखडियाँ उडती थी पिछवारे। महक रहे थे नीबू, कुसुमों मे दिसि चउकी फिरइ सोहत भूप जुवारण । - ढोला०, रजगध सँवारे ।-प्रतिमा, पृ०१५। दू०५९६ पइया-सञ्ज्ञा पुं० [ देश० ] वह धान जिसके दाने नष्ट हो जाते हैं, पर परती-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] ढक्कनदार टोकरी। सदूकची। उ०- छिलका जैसे का तैसा रहता है । खोलना घान । कीटे से खाया नानी को सीको से पखी, विजनी, पान सुपारी रखने का