पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३९

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पउनार २७४८ पकना डिव्वा, धुथरी, पठती, विडहाडा, रिकावी, डलिया, चंगेरी पृ० १००। ६ समझ। ७ किसी राग का परिचायक फुल हाली बनाने का भारी शौक था।-नई०, पृ० ११२ । स्वरग्राम। पउनारी-सज्ञा सी० [सं० पद्मनाल ] दे० 'पीनार'। पकड़ धकड़-सज्ञा पी० [हिं० पकड़ ] 'धर पकड' । पउनी- सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] छोटा पौना । पकड़ना-कि० स० [ मं० प्रकृष्ट, + प्रा० पक्कड्ढ ] १ किसी वस्तु को इस प्रकार दृढता से स्पर्श करना या हाथ मे लेना कि वह पउरुसर -सञ्ज्ञा पुं० [स० परुप] 20 'परुप'। उ०-पियासनो जल्दी छूट न सके अथवा इधर उधर जा या हिल डोल न पउरुस ककेतोजे वोलकए, जिह तोरि टुटि न पडली।- सके। धरना। थामना। गहना । ग्रहण करना । जैसे,- विद्यापति, पृ० १००। ( क ) छडी पकडना । ( ख ) उसका हाथ पकडे रहो, नींह पठला-सज्ञा पुं० [सं० पौर, प्रा० पउर, हि० पोल ( = दरवाजा )। तो वह गिर पडेगा। (ग) किमी वस्तु को उठाने के लिये दरवाजा । ड्योढ़ी। प्रवेशद्वार । उ०-जोगी बईठो पउलइ चिमटी से पकडना। जाई, बभूत सरी सी पोल कराई।-बी० रासो, पृ० ७१ । सयो०क्रि०-देना ।-लेना । पउना-सज्ञा पुं० [हिं० पार्वं +ला (प्रत्य॰)] भद्दे प्रकार की खडाऊँ २ छिपे हुए या भागते हुए को पाना और अधिकार मे करना। जिसमे खूटी के स्थान पर ऊंगलियां फंसाने के लिए रम्सी लगी कावू मे करना । गिरफ्तार करना । जैसे, चोर पकडना । ३ रहती है। पवाई। गति या व्यापार न करने देना । कुछ करने से रोक रखना। पउवा-वि० [हिं० पाना] पानेवाला । प्राप्त करनेवाला। उ०- स्थिर करना । ठहराना । जैसे, वोलते हुए की जबान पकडना, पउवा प्रेम पगर जो नावै उनमुनि जाय गगन घर धावै ।- मारते हुए का हाथ पकडना । गुलाल०, पृ०५८। सयो० क्रि०-लेना। पउवा-सञ्ज्ञा पुं० [ म० पाद ] २० 'पौवा' । ४ ढूंढ निकालना । पता लगाना। जैसे, गलती पकडना, चोरी पएदा-सचा पु० [फा० प्यादा] २० 'प्यादा'। उ०-सव्वस्म सराव पकडना। ५ कुछ करते हुए को कोई विशेष वात आने पराव कइ ततत कवावा दाम अविक करीवी कहजो का पर रोकना । टोकना । जैसे,जहाँ वह भूल करे वहाँ उसे पाछा पएदा लेले भम ।-कीति०, पृ० ४० । पकडना । ६ दौडने, चलने या और किसी बात में बढे हुए पएर+-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पैर ] दे० 'पैर'। उ०-पएर पखाल के बरावर हो जाना। जैसे,—(क) दौड मे पहले तो रोसे नहि खाए। अघरा हाथ भेटल हर जाए। --विद्यापति, दूसरा पागे वढा था पर पीछे इमने पकड लिया। (ख) पृ० ३१३ । यदि तुम परिश्रम से पढोगे तो दो महीने में उसे पकड लोगे । पकठोसा-वि० [देश॰] पक्का और ठोस । प्रौढ आयु का। उ०- ७ किसी फैलनेवाली वस्तु मे लगकर उनका अपने मे मचार पंद्रह साल की कच्ची छोकरी पचास साल के पकठोस दूल्हा के करना। जैसे, फूम का आग को पकडना, कपडे का रग साय किस तरह अपनी जिनगी काटेगी।-नई०, पृ० २६ । पकडना । ८ लगकर फैलना या मिलना। सचार करना । जैसे पकड़-सच्चा स्त्री० [ स० प्रकृष्ट, प्रा० पक्कड़ ] १ पकडने की क्रिया प्राग का फूस को पकडना। अपने स्वभाव या वृत्ति के या भाव । धरने का काम । ग्रहण । जैसे,—तुम उसकी पकड अतर्गत करना । धारण करना । जैसे, चाल पकडना, ढग से नहीं छूट सकते। पकडना। १० अाकात करना । ग्रसना । छोपना । घेरना। यो०-धर पकड़। जैसे, रोग पकडना, गठिया पकडना। मुहा०-पकह में श्राना = ( १ ) पकडा जाना। गृहीत होना । पकड़वाना--क्रि० स० [हिं० पकहना का प्रे० रूप ] पकडने का मिलना। हाथ लगना । (२) दांव पर चढना। घात मे काम दूसरे में कराना। ग्रहण करना । जैसे, चोर को सिपाही पाना । वश मे होना। से पकडवाना। २ पकडने का ढग। ३ लडाई या कुश्ती प्रादि मे एक एक वार सयो० कि०-देना। --मँगाना । माकर परस्पर गुथना । भिष्ट त। हाथापाई। जैसे,-- पकड़ाना--क्रि० स० [हिं० पकड़ना का प्रे०रूप] १ किसी के ( क ) हमारी तुम्हारी एक पकड हो जाय। (ख) वह कई हाथ मे देना या रखना । थमाना। जैसे,--यह किताव उन्हें पकड लड चुका है। ४ दोष, भूल आदि ढूंढ निकालने पकडा दो। २ पकडने का काम कराना । ग्रहण कराना। की क्रिया या भाव । जैसे,—उमकी पकड वडी जवरदस्त जैसे, चोर पकडाना। है, उसने कई जगह भूलें दिखाई। उ०-जहाँ शब्दो की सयो०क्रि०-देना। ही पकड है और वात वात मे वितर्क होता है वहां निश्चित पकना--क्रि० प्र० [सं० पक्व, हिं० पक्का, पका + ना (प्रत्य॰)] रूप से किसी सिद्धात का मक्षिप्तीकरण सुलभ नहीं।-रस १ पक्वावस्था को पहुंच जाना । कच्चा न रहना । अनाज, क०, पृ० २४ । ५ रोक । अवरोध । वधन । उ०--इतना न फल आदि का पुष्ट होकर काटने या खाने के योग्य होना । चमत्कृत हो वाले अपने मनका उपकार करो। मैं एक पकड ऐसी अवस्था को पहुंचना जिसमे स्वाद, पूर्णता आदि मा हूँ जो कहती ठहरो पुछ सोच विचार करो।-फामायनी, जाती है। जैसे, पाम पकना, खेत मे अनाज पकना। 1