पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१४

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देते हैं। पोताना ३१२३ पोनर्भव पोताना-मा पुं० [सं० पाद, प्रा. पाव+ संस्थान, प्रा० याण पौदा-मज्ञा पुं० [म० पोत ] १. नया निकला हुमा पेड। वह पेट : हिं० पैताना ] १ दे० 'पैताना'। २ जुलाहो के करघे में अभी बढ़ रहा हो । २ छोटा पेड । क्षुप । गुल्म प्रादि । लकडी का एक प्रौजार । क्रि० प्र०-लगाना। विशेप-यह चार अगुल लवा और चौकोर होता है । इसके ३ रेशम या सूत का फूंदना जिसे बुलबुल की पेटी में व बीच मे छेद होता है जिसमे रस्सी लगाकर इसे पौसर में बांध देते हैं । कपडा वुनते समय यह फरधे के गड्ढे मे लटकता पौद्गलिक--वि० [सं०] १ पुद्गलसबधी । द्रव्य या भूत । २ जं रहता है। इसे पैर के अंगूठे में फंसाकर ऊपर नीचे उठाते सवषी । ३ विषयानुरक्त । स्वार्थी । और दवाते हैं जिससे राछ पौसर प्रादि दवते और उठते है। पौधा-नशा पी० [हिं० ] दे० 'पौद' । पौतिक-सज्ञा पुं॰ [ म०] एक प्रकार का मधु । पौधन- सज्ञा स्त्री० [सं० पयस्+अाधान ] मिट्टी का वह बरत पौतिनासिक्य-रचा पु० [सं०] पीनस रोग। जिसमें खाना रखकर परोमा जाना है। पौत्तलिक-वि० [सं०] १ पुतली का। पुतली संबधी। २. प्रतिमा- पौधा-सज्ञा पुं० [म० पोत ] १ नया निकलता हुमा पेड । वह रे पूजक । मूर्तिपूजक । जो अभी बढ रहा हो । उगता हुमा नरम पेड । २ छोटा पे पौलिकता-सञ्चा सी० [सं० पौत्तलिक+हिं० ता (प्रत्य॰)] क्षुप, गुल्म प्रादि । जैसे , प्राम का पौधा, नील का पौधा । पुतलियो की पूजा। मूर्तिपूजा। (श्र० प्राइसोलेटरी)। कि०प्र०-लगाना। उ०-इघर अग्रेजो के माने पर ईसाइयो के प्रादोलन के पौधि-मचा दी० [हिं० पौध ] दे० 'पौद'। उ०-प्रेम की बीच जो ब्रह्मोसमाज बगाल मे स्थापित हुप्रा उसमें भी पौधि प्यारी सूखत भनौघि दुख पोधि दिन बीते वहो 'पौत्तलिकता' का भय कुछ कम न रहा।-चिंतामणि, धीर धरिहों । -देव (शब्द॰) । भा०२, पृ० १२५ । पौन पुनिक-वि० [सं०] [वि० पी० पौन पुनिकी ] जो वार । पौत्तिक --मा पु० [सं०] पुत्तिका नाम की मधुमक्खी का मधु । हो । फिर फिर होनेवाला । यह मधु घी के समान होता है और प्राय नेपाल से प्राता है। पौनःपुन्य-सज्ञा पुं॰ [ मं०] बार वार होने का भाव । किसी पौत्र-सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० पौत्री] लडके का लडका | पोता। का लगातार होना [को०] । पौत्रिकेय-सज्ञा पुं० [स०] पुत्रिका का पुत्र। लडकी का लडका जो पौन-सा पु०, स्त्री० [स० पवन ] १ वायु । हवा । उ०- अपने नाना की सपत्ति का उत्तराधिकारी हो। जस सीतल पौन परसि चटकी गुलाव की कलियाँ । -भ पौत्री-सशा स्री० [सं०] १ पुत्र की पुत्री । पोती । २. दुर्गा [को०] । तेंदु ग्र०, भा०१, पृ० २७२ । पौद-सज्ञा स्त्री॰ [ म. पोत ] १ छोटा पौधा। नया निकलता हुपा यौ०-पौन का पूत = (१) हनुमान । (२) नाग । सर्प (वे पेड। २ वह कोमल छोटा पौधा जो एक स्थान से उखाडकर कारण)। दूसरे स्थान पर लगाया जा सके। २. जीव । प्राण । जीवात्मा। उ०-नौ द्वारे का पीजरा क्रि० प्र०-जमाना ।- लगाना । पछी पौन । रहने को प्राचरज है गए अवमा कौन- ३. सतान । वश । (शब्द॰) । २ प्रेतात्मा । प्रेत । भूत । पौद-सा सी० [हिं० पाव+पट ] वह वस्स जो बडे लोगों के मुहा०-पौन घलाना या मारना=जादू करना । मार्ग में इसलिये विछाया जाता है कि वे उसपर से होकर चलाना। मूठ घलाना । प्रयोग करना । पौन बिठान चलें । पावडी । पांवड़ा । उ०-(क) सबै बहभागी अनुरागी (किसी पर) भूत करना । किसी के पीछे प्रेत लगाना । प्रभु पाहन के, चाहन सों वात कहैं सबके विलास की। चले पौन-वि० [स० पाद+ऊन = पादोन, प्रा. पाश्रोन ] एव उपरोध मनो पौद लगी पानंद की, पौध प्राय गई पौध गई से चौथाई कम । तीन चौथाई । जैसे,—पोन घटे में पाएँ बनवास की। हनुमान (शब्द०)। (ख) गोपुर ते मत पौन-सज्ञा पुं॰ [सं० पवन ] ठगण का एक भेद जिसमे पहले पुर द्वारा । लगी पौद विस्तार अपारा।-रघुराज (शब्द॰) । पीछे सघु होते हैं। पौदन्य-सज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक नगर का नाम पौनरुक्त, पौनरुक्त्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रावृत्ति । वार जहाँ श्रश्मक राजा की राजधानी यो। उक्त होना । २ व्यर्थता । अनुपयुक्तता [को०] । पौदर-मज्ञा गी० [हिं० पाव+डालना या धरना ] १ पैर का चिह्न। २ वह राह जो पैर को रगड से बन गई हो। पौनर्णव-सक्षा पुं० [स० ] मल्लूकी ठप के अनुमार एक । पगडंडी । ३ कुएँ के पास की वह ढालवीं भौर कुछ चौडी का सन्निपात जर जिममें रोगी लबी नांस लेना है जमीन जिसपर मोट या पुरवट खीचने के समय वैल पाते पोडा से बहुत तलफता है । जाते हैं। ४ वह राह जिसपर होकर कोल्हू सीननेवाला वैल पीनर्नव-वि० [सं०] पुनर्नवा सबषी । पुनर्नवा का (को०)। घूमता गा आता जाता है। पौनर्भव'-वि० [सं०] [वि० सी० पानमंवा ] १ पुनर्मू । ३