पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१५

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पौनभंवर ३१२४ पौरवी विवाह करनेवाली स्त्री) सबधी। पूनर्भू का। २ पुनर्मू से पौने-वि० [हिं० पौना J किसी सख्या मे से चौथाई भाग कम । उत्पन्न । किसी स रूपा का तीन चौथाई। जैसे, पौने दो, पौने पाठ पौनर्भव-सञ्ज्ञा पुं० १ पुनk से उत्पन्न पुत्र । इत्यादि । विशेष-यह धर्मशास्त्र मे सात प्रकार (जटाधर के मत से १२. विशेष-इसका प्रयोग स ख्यावाचक शब्दों के साथ होता है। प्रकार) के पुत्रों में प्रतिम माना गया है । मुहा०-पौने चार सेर = बनियो की बोलचाल में एक रुपए २ वह पति जिसके साथ विधवा का या पति से परित्यक्ता स्त्री मे पद्रह सेर की विक्री । पौने सोलह आना = बहुत अधिक का पुनिविवाह हो। श्रश । अधिकाश । बहुत सा । उ०-परतु ध्यान से देखने पौन वा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] वह कन्या जिसका किसी के साथ एक से उन लोगो की वातों में पौने सोलह पाना झूठ निकलता बार विवाह स स्कार हो गया हो और फिर दूसरी बार है। -दुर्गाप्रसाद (शब्द०) । पौने सोलह श्राने अधिक दूसरे के साथ विवाह किया जाय । अश में। प्राय । जैसे,—तुम्हारी वात पौने सोलह माने ठीक निकली। विशेष-कश्यप ने सात प्रकार की पौन वा कन्याएँ मानी हैं, (१) वाचादता, (२) मनोदत्ता, (३) कृत कौतुकमगला पौमान-सञ्ज्ञा पु० [सं० पवमान] १ ० 'पवमान' । २ जलाशय । (जिसे ककरण मादि बंधे हों), (४) उदकस्पशिता (संकल्प उ.-दासी दास अप्सरा नाना। याग तहाग विविध पूर्वक दी हुई) (५) पाणिगृहीतिका, (६) अग्निपरिगता, पौमाना ।-रघुनाथ (शब्द॰) । और (७) पुनर्भूप्रभवा । पौरदर'-पशा पुं० [स० पौरन्दर ] ज्येष्ठा नक्षत्र का नाम । पौना --मझा पुं० [सं० पाद + ऊन, प्रा० पाव + ऊन = पाऊन ] पौरदर'-वि० [वि० सी० पौरन्दरी] पुरदर सवधी । इद्र संबंधी [को०)। पौन का पहाडा। पौरंध्र-वि० [सं० पौरभ ] स्त्रियों से संबंधित । स्त्रियो फा (फो०] । पौना-सचा पुं० [हिं० पौना ] [खी० अल्पा० पौनी] काठ या पौर'-वि० [सं०] १ पुर सवधी। नगर का । २. नगर में उत्पन्न । लोहे को बड़ी करछी जिसका सिरा गोल और चिपटा होता ३. पेटू । उदरमरि । ४ पूर्व दशा या काल में उत्पन । है। इसके द्वारा पाग पर चढ़े कडाह में से पूरियां, कचौरियाँ प्रादि निकालते हैं। यौ०-पीरकन्या = नागरिक कन्याएँ । पोरकार्य = नगर स वधी काम काज । नागरिकों का काम । पौरजन। पौरजानपद: पौनार-मज्ञा स्त्री० [सं० पद्म + नाल, प्रा० पउमनाल] कमल के फूल नगर और जनपद के निवासी। पौरमुख्य = पौरवृद्ध । पौर- की नाल या डठल। योषित = दे० पौरस्त्री। पौरलोक । पौरवृद्घ । पौरसख्य । विशेप-कमल की नाल बहुत नरम और कोमल होती है, उसके ऊपर महीन महीन रोइयां या कोटे से होते हैं । पौर-सञ्ज्ञा पुं०१ रोहिप या रूसा नाम की घास । २ पुरु राजा पौनारि, पौनारी-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पोनार'। उ.- का पुत्र । ३ नखी नामक गध द्रष्य । नख । ४ पुरवासी (क) पहुँचहिं छपी कमल पोनारी । जघ छिपा कदली होइ व्यक्ति । नागरिक (को०)। बारी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) चदन गाभ की भुजा पौर-सहा रसी० [हिं०] दे० 'पौरि', 'पोरी' । सवारी । जनु सो वेल कमल पौनारी ।—जायसी (शब्द०) पौरक-सशा पुं० [सं०] १. घर के बाहर का उपवन । पाई बाग । पौनिया-सशा स्त्री० [हिं० पापना ] दे० 'पीनो' । २. नगर के पास का उपवन (को॰) । पौनियार–सञ्चा [हिं० पौन ] कपडा जिसका थान पौन पान के पौरकुत्स-सज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक तीर्थ का वरावर होता है और अर्ज भी कुछ कम होता है। नाम। पौनी-सच्या श्री० [हिं० पावना ] १. गाँव मे वे काम करनेवाले पौरगीय-वि० [सं०] पूर्वजन्म संबधो । जिन्हें अनाज की राशि में से कुछ अश मिलता है। २ नाई पौरजन-सम्मा पुं० [सं० ] नागरिक । नगर निवासी [को०) । बारी, चोवी प्रादि काम करनेवाले जो विवाह भादि उत्सवों पौरनाg-कि० अ० [हिं० ] दे० 'पैरना' । पर इनाम पाते हैं। उ०-काढी कोरा कापर हो अरु काढौ घी को मौन । जाति पांति पहिराइ के सब समदि यौ-पौरनहार = पैरनेवाला । तैराक । उ०-प्रस्तुति वारिगि छतीसी पोनि ।—सूर (शब्द०)। (ख) चली पोनि सब अगम अपारा। कोउ न जगत मह पौरन हारा ।-चित्रा० पृ०३। गोहने फूल डार ले हाथ । विश्वनाथ कइ पूजा पद्मावति के साथ ।—जायसी (शब्द०)। पौरलोक-सज्ञा पुं॰ [सं०] नागरिक । पुरजन [को॰] । पौनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पौना ] छोटा पौना । पौरव'-वि० [सं०] [पी० पौरवो] पुरु के वश का । पुष से उत्पन्न । पौनो-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] द० 'पूनी'। उ०-माप लोग जो पौरव'-मक्षा पुं० १. पुरु का वशज । पुरु की सतति। २ महा- हमको पुराना इतिहास सुनाते हैं उसमें युद्ध क्या रेशम की भारत मे वरिणत उत्तरपूर्व का एक देश । ३ उक्त देश का डोरों और कपास की पोनियों से हुआ करते थे ?-झांसी०, निवासी।४ उक्त देश का राजा। पृ० २७। पौरवी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ युधिष्ठिर को एक स्लो का नाम । पौरखी। 1