य पौरुषी पौरवृद्ध २ वसुदेव की एक स्त्री का नाम । ३ संगीत मे एक मूर्छना। भयो ठाढ़ो कह्यो पौरिया जाई। सुनत बुलाय महल .. इसका सरगम इस प्रकार है-ध, नि, स, रे, ग, म, प,। प, लीनो सुफलक सुत गयो धाई।-सूर (शब्द०)। (ख) साई घ, नि, स, रे, ग, म, प, ध, नि, स, रे। इन न विरोधिए गुरु, पडित, कवि, यार। बेटा, वनिता पौरवृद्ध-सशा पुं० [स०] १. प्रमुख नागरिक । २. वयोवृद्ध [को०] । पौरिया, यज्ञ कराचनहार ।-गिरघर (शब्द०)। पौरस-सज्ञा ० [सं० पौरुष ] पुरुषार्थ । पौरुष । उ०-जिण पौरिष-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पौरुष ] 7० 'पीयप' । उ०-जीत क रवि सूरक्षा जग जाएं। पौरस घस वश प्रगटाण।-रा. बुधिवल पौरिष, रुचि अपनी ते सरनि लीये। -दादू० रू०, पृ०,८. पृ०६२७। पौरसख्य-सज्ञा पुं० [स०] वह मित्रता जो एक ही नगर या ग्राम पौरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० प्रतोली, प्रा० पोली] घर के भीतर में रहने से परस्पर होती है। वह भाग जो द्वार में प्रवेश करते ही पहे और थोड़ी दूर पोरसो-वि० [हिं० पौरस + ई (प्रत्य॰)] पौरुषयुक्त। जिसमे लवी कोठरी या गली के रूप में चला गया हो। उधौढी पौरुष हो । उ०-बोल पठायो खान तहब्बर । उठे पोरसी उ.-(क ) सेए सीताराम नहिं भजे न शंकर गौरि । जन पूत अकब्बर ।-रा०००, पृ० ६४ । गवायो घादि ही परत पराई पौरि ।—तुलसी (शब्द० पौरस्त्य-० [सं०] १. पूर्वी। पूरब का। २ सबसे प्रागे का । (स) राजा! इक पडित पौरि सुम्हारी। -सूर (शब्द०) ३ प्रथम । मागे होनेवाला [को०] (ग) चाह भरी पति रिस भरी विरह भरी सव वात । संदेसे दृहुन के चले पौरि लौं जात ।-बिहारी (शब्द०) पौरस्त्री-सशा मो० [सं०] १ अत पुर में रहनेवाली स्त्री। २. पुर (प) पौरि लो खेलन जाती न तो इन मालिन के मन में या नगर की स्पी। क्यों ?-देव (शब्द०)। पौरांगना-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पौराङ्गना ] पौरस्त्री [को० । पौरी-तज्ञा स्त्री॰ [ हिं० पैर ] सीढी। पंडी। उ०का ५९ पौरा-सचा पु० [हिं० पैर ] पाया हुप्रा कदम । पडे हुए चरण । अस ऊंच तुखारा । दुइ पौरी पहुंचे प्रसवारा ।- पैरा । जैसे,—बहू का पौरा न जाने कैसा है, जब से पाई है (शब्द०)। घर में कोई सुखो नही है। पौरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पाँव+री] खडा। 30-पायन मुहा०-पौरा उठना=समाप्त होना । अस्तित्व न रहना। लेहु सम पोरी। कांट घेसे न गठे प्रकरौरी। उ०-अब यहाँ से भी मरिनो का पौरा उठा ही समझो।- (शब्द०)। शराबी, पृ० ७६ पौरुकुत्स-सपा पुं० [ से० ] पुरुकुत्स के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । पौराण-वि० [सं०] [ वि० सी० पौराणी ] १. पुराणो में कहा पौरुकुत्सि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पुरुकुत्स का पुत्र । या लिखा हुआ ।२ पुराण स'बधो । ३ पुरा फाल का। पौरुक्ति-मज्ञा पुं॰ [सं०] पुनर्वचन । पुन कथन । दोहराना। प्राचीन (को०)। पौराणिक-वि० [स०] [ वि० स्त्री० पौराणिकी ] १ पुराणवेत्ता । पौरुखा-सज्ञा पुं॰ [सं० पौरुष ] पौरुष । पुरुषार्थ । बल । २ पुराणपाठी । ३ पुराण सवषी, पुराण का। जैसे उ.--भाग्य पर वह भरोसा करता है जिसमें पौरुख पौराणिक कथा । ४ पूर्वकालीन । प्राचीन काल का। होता |--काया• पृ० २४६ । पौराणिक -सचा पुं० अठारह मात्रा के छंदो की सञ्ज्ञा । पौरुमह-सशा पुं० [सं०] एक प्रकार का सामगान । पौरान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुराण ] दे॰ 'पुराण'। उ०-इक पौरुमद्ग--सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सामगान । ब्रह्म पोष सम करत घोष । पौरान प्रगट इफ बचत मोष । पौरुमीढ-उशा पुं० [सं०] एक प्रकार का सामगान । -पृ०रा०६। ४४ पौरुष-ज्ञा पुं० [सं०] १. पुरुष का भाव । पुरुषत्व । पु पौरि--सद्या स्त्री० [सं० प्रतौली, प्रा० पमोली] दे० 'पोरी' । उ०- २ पुरुष का कर्म। पुरुषार्थ। ३ बलवीर्य । (क) मातुर जाय पौरि भयो ठाढ़ो कह्यो पौरिया जाई। साहस । मरदानगी। ४ उद्योग | उद्यम । -सूर (शब्द०)। (ख) पौरिनु परे पहरुवा ऐसे । प्रति जैसे,—प्रपने पौरुष का भरोसा रखो, दूसरे की । मादक मद पीए, जैसे । -नंद प०, पृ. २३० । न रहो । ५ गहराई या उँचाई की एक माप । पुरसा पौरिदार--सज्ञा पुं० [हिं० पौरि + फा० दार (प्रत्य॰)] दे० उतना बोझ जितना एक प्रादमी उठा सके। ७ 'पौरिया'। उ०--कामदला के घर पावा। पौरिदार सो लिगेंद्रिय (को०)। ८.शुक्र । वीर्य (को०)। ६. सूर्य घड़ी (का बात जनावा ।-हिं० क० का०, पृ०२१८ । पौरुप-वि० की पूजा करनेवाला को० ॥ पौरिया-सज्ञा पुं० [हिं० पौरी ] द्वारपाल । ड्योढ़ीदार । दरवान । पौरुषिक-सच्चा पुं० [१०] पुरुषपूजक । पुरुष की पूजा उ०--(क) अति मातुर नृप मोहिं बुलायो। कोन काज वाला [को०] । ऐसी घंटक्यो है मन मन सोच बढ़ायो। आतुर जाय पौरि पौरुपी-सशा स्री० [सं०] ली [को॰] । ६-५२ पुरुप सबधी । पुरुष
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१६
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