पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१७

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पृ० 'क'। पौरुषेया ३१२६ पोलिश पौरुपेय-वि० [सं०] १ पुरुष सबधी। पुरुष का । २ पुरुषकृत । विशेप-यज्ञो में प्रतिपदुत्तरा पूर्णमासी का ही ग्रहण होता प्रादमी का किया हुआ। ३ प्राध्यात्मिक । है। दो प्रकार की पूर्णमासी मानी गई है-एक पूर्वी जिसे पौरुषेय-सशा पुं०१ पुरुष का विकार । २ पुरुष का समूह । जन- पचदशी भी कहते हैं, दूसरी उत्तरा जिसे प्रतिपदुत्तरा कहते हैं। समुदाय । ३ पुरुष का कर्म। मनुष्य का काम । ४ रोज की मजदूरी या काम करनेवाला मजदूरे। ५. पुरुषहत्या । पौर्णमास्य-सज्ञा पुं० [सं०] पूर्णिमा को होनेवाला यज्ञ प्रादि । पुरुषवध (को०)। पौर्णमी-सज्ञा सी० [सं०] पूर्णिमा । पौरुष्य-मक्षा पुं० [सं०] १ साहस । २ पुरुषत्व । पौर्णिम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सन्यासी । वैरागी [को॰] । पौरुहूत-सझा पुं० [सं० ] पुरुहूत या इद्र का अस्त्र । वन । पौर्णिमा-सच्चा नी [ स०] पूणिमा [को०] । पौरू-सज्ञा स्त्री॰ [देश०] भूमि का एक भेद । एक प्रकार की मिट्टी पौत'-सज्ञा पुं० [सं०] पूर्त कार्य । पूतं । या जमीन जिसके कई भेद होते हैं। पौर्तिक-मश पुं० [सं०] पूर्त का साधक कर्म । यौ०-पौरू केहरा = एक प्रकार की मिट्टी । यह मिट्टी सफेद पोर्व-वि० [सं०] १ प्रतीत से सवधित । प्रतीन का। २ पूर्व रग की होती है और इसके ऊपर पतली पपडी सी जम जाती से सबधित । पूर्व का । ३ परपरागत । परपराप्राप्त [को०) । है जिससे रेह और सज्जी बन सकती है । इस भूमि में रबी पौर्वदेहिक, पौर्वदैहिक-वि० [ स० ] पूर्व जन्म से सबंधित । पूर्व- और खरीफ दोनो फसलें होती हैं । पौरू केहरा अमीर = एक जन्म में किया हुमा (को०] । मिट्टी। इसका रंग सफेदी लिए पीला होता है और इसमे फसल अधिक वर्षा में उपजती है। पौरू कौढ़िया = मिट्टी की पौर्वात्य-वि० [ म० ] पूर्ण। पूर्व से सबंधित । पूर्व का। उ०- एक किस्म । यह मिट्टी ललाई लिए होती है। यह न गोली हिंदी के प्राधुनिक समीक्षको में पौर्वात्य पद्धति के प्राधार पर होने से लसीली होती है और न सूखने पर फटती है । इसमें शास्त्रीय पद्धति को व्याख्या करनेवाले हैं। -मालोचना०, खरीफ की फसल अच्छी होती है और पानी देने से इसमे रबी की फसल भी होती है । पौरू तूसी = भूरे रंग की पौर्वापर्य-सज्ञा पुं॰ [स०] १ पूर्व प्रौर पर अर्थात् मागे मोर पीछे मिट्टी। यह भूरे रंग की होती है। इसमें रवी नहीं उपज का भाव । २ अनुक्रम । सिलसिला सकती। पौरू दुरसन = इसकी मिट्टी कहीं ललाई और पौर्वापौरुपिक-वि० [स०] वशपरपरागत । पुश्तैनी। कही कालापन लिए होती है। इसमें रबी की फसल अच्छी पौर्वाहिक-वि० [ स०] [वि० मी० पौर्वाहिकी ] पूर्वाह्नस वधी । होती है पर खरीफ के लिये पानी की अधिक आवश्यकता पौर्षिक-वि० [स०] पूर्व में होनेवाला। पड़ती है। पौल-शा पुं० [हिं० ] दे० 'पौर'। उ०-सिंघ पौल के पार झार पौरेय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ नगर के समीप का स्थान, देश, ग्राम नित उठ उठ पावै ।-तुलसी० ०. पृ० १०४ । आदि । २ नागर । नागरिक [को०। पौलस्तो-सज्ञा स्त्री० [म०] शूर्पणखा । पौरोगव-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पाकशालाध्यक्ष पौलस्त्य-सज्ञा पुं० [सं०] [ यी० पौलस्त्यी ] १. पुलस्त्य का पुत्र पौरोडाश-सच्चा पु० [स्त्री०] १ पुरोडाश से सबधित वस्तु, व्यक्ति, था उनके वंश का पुरुष । २ कुवेर । ३ रावण, कुभकर्ण मत्र प्रादि । २ एक मत्र जिसका उच्चारण पुरोडाश के और विभीषण । ४ चद्र। निर्माण के समय किया जाता है (को०] । पौलस्त्यो-मज्ञा स्त्री० [सं० ] शूर्पणखा । पौरोमाशिक-मझा पुं० [सं०] पौरोडाश मत्र का उच्चारण पौला-मज्ञा पुं॰ [हिं० पाव, पाठ+ला (प्रत्य०) । एक प्रकार करनेवाला पुरोहित [को०] । का खहाऊँ जिसमें खूटी नहीं होती, छेद में बंधी हुई रस्सी पौरोधस-संज्ञा पुं॰ [ स० ] पुरोधा या पुरोहित का पद [को०] । में अगूठा फंसा रहता है। उ०-पौला पहिरि के हर जोते पौरोभाग्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ दोष देखना। दोषदर्शन। २. और सुथना पहिरि निरावें । कहें घाघ ये तीनों भकुमा सिर ईया । द्वेष । डाह । ३ दुष्कृत्य | शरारत भरा कार्य (को०] । बोझा प्री गावै ।-घाघे (शब्द॰) । पौरोहित्य-सज्ञा पुं॰ [स०] पुरोहिताई । पुरोहित का कर्म । पौलि'-सशा पुं० [सं०] १ थोडा भुना हुआ जो सरसों मादि । पौणंपर्क-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का वैदिक कृत्य । २ फुलका । रोटी। पौर्णमास-ज्ञा पु० [सं०] एक याग या इष्टिका जो पूर्णिमा के पौलि-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पोली' । उ०-करि भसुवारी दिन होती थी। कुमर दोउ, उतरे पौलि सछाण । -ह. रासो, पृ० ६३ । पौर्णमासिक-वि० [स०] १ पूर्णमासी से सबषित । २. पूर्णिमासो पौलिया-सशा पुं० [हिं॰] दे॰ 'पौरिया'। के दिन होनेवाला [को०] । पौलिश-वि० [ यू० पालस ऐलेग्जेंड्रिनस ] पुलिश कृत ( ज्योतिष पौर्णमासी-सशा सी० [सं०] पूर्णमासी। का एक सिद्धांत) । पुलिश सबधी।