पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१८

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पौली पौहरा पौली-सज्ञा स्त्री० [हिं० पाव, पाउ + ली (प्रत्य॰)] १. पेर पौष्करिणी-मचा स्त्री० [सं०] छोटा पोखरा । छोटा ताला का वह भाग जो खडे होने पर जमीन से प्राडा लगा रहता है पुष्करिणी। एड़ी से लेकर उँगलियो तक का भाग। उतना पैर जितने पौष्कल-सशा पु० [स०] १ एक साम का नाम । २ एक प्रक मे जूता, खडाऊँ' आदि पहनते हैं । २ पैर का निशान जो का अन्न (को०)। घूल, गीली मिट्टी आदि पर पड जाता है । पदचिह्न । पौष्कल्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ स पूर्णता । भरा पूरापन । । पौलूषि-सज्ञा पुं० [सं०] १ पुलु वश में उत्पन्न पुरुष । २ सत्ययज्ञ विकसित स्थिति । २ प्राधिक्य । बहुलता (को०) । नामक एक ऋषि जो पुलु ऋषि के वश में उत्पन्न हुए थे। पौष्टिक'--वि० [सं०] [ वि० सी० पौष्टिकी ] पुष्टिकारक । वलवी इनका नाम शतपथ ब्राह्मण में पाया है। दायक । जैसे, पौष्ठिक प्रोषध । पौलोम-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] [ स्त्री० पौलोमो ] १ पुलोमा ऋषि का पौष्टिकर--सज्ञा पुं० १. वह कर्म जिससे धन जन आदि की वृद्धि हो अपत्य या पुत्र । २ कोशीतक उपनिषद् के अनुसार दैत्यों २ वह कपडा जो मुडन के समय सिर पर डाल.. की एक जाति का नाम । ३ इद्र (को॰) । जाता है। पौलोमी-सक्षा स्त्री० [सं०] १. इद्राणी । २. भृगु महर्षि की पौष्टो-सशा स्त्री॰ [ स०] पुर नाम के राजा की एक स्त्री। पत्नी का नाम । पौष्ण'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] रेवती नक्षत्र । पोल्कस'-वि० [ म० ] पुल्कस ( एक सकर जाति ) जाति संवधी। पौष्ण-वि० पुषा देवता सबधी। सूर्य सवधी । पुषा देवता पौल्कस-सञ्चा पुं० पुल्कस जाति का मनुष्य । (चरु प्रादि)। पौल्या@-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पौल ] दे० 'पौरिया' । उ०-रावली पौष्प'-वि० [स०] [ वि० सी० पौप्पी ] पुष्प सबधी । फूल का पोले आवीया, पोल्या वेगो बधावउँ जाह । -बी० रासो०, पुष्पनिमित । पृ०६१। पौन-सञ्चा पुं० १ फूलों का निकाला हुमा मद्य । २ पुष्परेणु पौवा-नज्ञा पुं० [सं० पाद, पादक हिं० पाव १. एक सेर का चौथाई फूल की धूल । पराग। भाग । सेर का चतुर्याश । उ०-योढ़न मेरा राम नाम, मैं रामहिं को बनजारा हो। राम नाम का करों वनिज में हरि पौडपक -सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] कुसुमाजन । मोरा वठवारा हो । सहस नाम को करो पसारा दिन दिन पौष्पी-संज्ञा स्त्री० [ स०] १ पुष्पपुर या पाटलिपुत्र । २ से बननेवाली एक शराब (को०) । होत सवाई हो। कान तराजू सेर तिनपौवा उह किन ढोल बजाई हो ।-कबीर (शब्द०)। २ मिट्टी या काठ आदि पौसरा-पुं० [हिं० ] दे० 'पौसला'। का एक बरतन जिसमें पाव भर पानी, दूध आदि आ जाय । पौसला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पय शाला ] १ वह स्थान जहाँपर । ३ पान जो २६३ ढोली हो । २६३ ढोली पान । (तबोली)। पिलाया जाता है। वह स्थान जहाँ सर्वसाधारण को १४ एक तरह का खड़ाऊँ । उ०-पौवा अषर अधार को जल पिलाया जाता है । प्याऊ । सवील । २ प्यासो को चलत सो पाव पिराय ।-भीखा श०, पृ०६६ । पिलाने का प्रवध । पौष-सज्ञा पुं० [ सं०] १ वह महीना जिसमें पूर्णमासी पुष्य नक्षत्र कि० प्र०-बैठाना। - चलाना । में हो। पूस । २ एक उत्सव या पर्व (को०) । ३ सघर्ष । पौसाक-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'पोशाक' । उ०-कबहुँ । लड़ाई (को०)। दुति बाल बपू रजत प्रभूषन पग । पच नदी पौसाक पौषना-क्रि० स० [स० पोपण ] दे॰ 'पोसना' । उ०-षेचर घरे किए सोइ ढग |-भारतेंदु पं०, भा०२, पृ० २१४ । भूचर जे जल के घर देत प्रहार चराचर पौषै। -सु दर० पौसार-सशा ली० [हिं० पाव+साल] लकडी का एक डडा जो प्र०, भा०२.१०४३२ । और राछ के नीचे लगा रहता है। यह करघे के भीतर र पौषो-सक्षा खी० [सं०] १ पूस महीने की पूर्णिमा। पूष की है । इसी को पैर से दबाकर राछ को ऊँचा नीचा करते हैं पूर्णिमा २ पुष्य नक्षत्रयुक्त रात्रि [को०] । पौसेरा-सशा पुं० [हिं० पाव+सेर ] पाय सेर की तोल । पौष्कर'-सज्ञा पुं० [सं०] १ पुष्कर मूल । २ पदम की जड ।' पौहर-सज्ञा पुं० [सं० पुष्कर ] पुष्कर तीर्थ । उ०-४ भीसा । भसीड । ३ एरड का मूल । ४ स्थलपद्म । पौहकर नेम ले मधकर हर कुल मोड ।-रा० रू०, पृ०४ पौष्कर-वि० [सं०] [ वि० स्त्री० पौष्करी ] पुष्कर सबंधी। नील वर्ण कमल से स बघित [को०] । पौहर-सना पुं० [हिं॰] दे० 'प्रहर' । उ०-बीसल देत रजीयो। च्यार पौहर नीतु विलसह भोग ।-वी० र पौष्कर मूल-सशा सी० [सं०] पुष्कर मूल । पृ० ३०॥ पौष्कर सादि-सबा पुं० [सं०] १ एक वैयाकरण ऋषि का नाम पौहरा+-सज्ञा पुं० [हिं॰] दे॰ 'पहरा' । उ०-माढू . जिनके मत का उल्लेख महाभाष्य में है। २ पुष्करसद् नाम मारजे, पोहरा जिकां पहुंठ । विन पौहरै थाहर बसै स के ऋषि के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । बलवंत ।-बाँकी० ग्रं॰, भा०१, पृ० २३ । 8 1