प्रपा, हिं० पोहा ३१२८ प्याली पौहा-सशा पुं० [सं० पशु ] पशु । जानवर । उ०—पक रही फसल दूपण । शुदप्रिय । कृमिघ्न । मुलगधक। यहुपत्र । विश्व- लद रहे चना से वूट पडी है हरी मटर । तीमन को साग गंध । रोचन । पलांद। और पौहो को हरा, भरी पूरी धरती।-मिट्टी०, पृ० ४४ । प्याजी'-वि० [फा०] प्याज के रग फा । हलका गुलावी । पौहारी-सज्ञा पुं० [स० पयस (दूध) + थाहारी ] यह जो प्याजो-सरा पुं० [दश०] काले रंग का एक प्रकार का दाना जो प्राय' केवल दूध ही पीकर रहे (मन्न प्रादि न खाय) । जैसे, पौहारी गेहूँ के साथ उत्पन्न होता और उसी के दानों के साथ मिल वावा। जाता है । मुनमुना । विशेष दे० 'मुनमुना' । प्यंड-सशा पुं० [सं० पिएट ] दे॰ 'पिंड'। उ०-प्याड ब्रह्मह प्यादा-राणा पुं० [फा० पयादह] १ पदाति । पैदल । सेना का कथै सब कोई । वाकै प्रादि परु मत न होई । -कवीर म०, पैदल सिपाही। २. दूत । हरपारा । ३ शतरज के खेल में पृ० १४६ । एक गोटी। प्यंडर-वि० [सं० पायदुर] ३० 'पांडुर-२'। उ०-प्यंडर फेस यो०-प्यादापा=पंदल चलनेवामा। प्यादापाई -पैदल या विना कुसुम भये धौला सेत पलटि गइ बानी ।-कवीर प्र०, पृ० रावारी के चलना। २२१। प्यारल-सक्षा पुं० [हिं०] धान, कोदो के एठल जिनसे दान। प्यान'-वि० [सं०] मोटा । स्थून । पोन [को०] । अलग कर दिया गया हो। पयाल । पयार । पुमार । उ० प्यानर-सपा ५० [सं० प्रयान, हि. पयान ] 'प्रयाण' । जाहे के विनों में किसी गरम कोडे के चारो मोर प्यार विद्या उ०-दिया सवा न प्यान किया, गदर भया उजार । मर विछा के अपने परिजनो के साथ सब वैठ कथा कह कह गए ते मर गए वाचे चिनिहार ।-कवीर वी० (निशु०), दिन बिताते हैं-श्यामा०, पृ०४४ । पृ. २३६। प्याऊ-सज्ञा पुं० [स० प्याना (= पिलाना)+3 प्याना -क्रि० स० [हिं० ] दे० 'पिलाना। (प्रत्य॰) ] वह स्थान जहाँ सर्वसाधारण को पानी पिलाया प्यायन'–वि० [सं०] शक्तिवर्धक । शक्ति या युधियाला [को०)। जाता है। पौसरा । सवील । प्यायन-रामा पुं० वृद्घि । वर्षन । वढ़ना [को०)। प्याज-सचा पुं० [ फा० प्याज या पियाज़ ] एक प्रसिद्ध फद जो प्यायित-वि० [सं०] १ जो बढ गया हो। वृद्धिप्राप्त । २ जो विलकुल गोल गाँठ के प्राकार का होता है पौर जिसके पत्ते मोटा हो गया हो । ३ शक्ति या पुष्टि प्राप्त किो०] । पतले लवे और सुगधराज के पत्तो के भाकार के होते हैं । प्यार-सक्षा पुं० [सं० प्रीति, प्रिय थथया प्रियक] १ मुहब्बत । प्रेम । विशेष-इसकी गांठ मे ऊपर से नीचे तक शिवल छिलके ही चाह । स्नेह । २ वह स्पर्श, नुबन, सबौधन प्रादि जिससे प्रेम छिलके होते हैं। यह फंद प्राय सारे भारत में होता है भोर सचित हो। प्यार जनाने की क्रिया । जैसे, वच्चो को प्यार तरकारी या मास के मसाले के काम में माता है । कही कही करना। इसका उपयोग औषधो मादि में भी होता है। यह बहुत मुहा०-प्यार का खेलौना = बालक शिशु । बच्चा । उ०- पधिक पुष्ट माना जाता है। इसकी गष पहुत उन मौर प्यार फर प्यार के खेलौने को, कौन दिल में पुलक नहीं मप्रिय होती है जिसके कारण इसका अधिक व्यवहार करने छाई।-चोरो०, पृ०१३ । वालो के मुह मोर कमी कभी शरीर या पसीने से भी विकट दुगंध निकलती है। इसी लिये हिंदुओं मे इसके खाने का प्यार-सचा पुं० [सं० पियाल ] प्रचार या पियार नाम का वृक्ष जिसका वीज चिरौंजी है। बहुत अधिक निषेध है। यह बहुत दिनो तक रखा जा सकता है भोर कम सड़ता है। यौ०-प्यार मेवा =पियाल मेवा । चिरोंजी। वैद्यक के पनुसार इसके गुण प्राय लहसुन के समान ही हैं । प्यारा-वि० [सं० प्रिय [ वि० सी० प्यारी] १. जिसे प्यार वैद्यक में इसे मास और वीर्यवर्धक, पाचक, सारक, तीक्ष्ण, करें। जो प्रिय हो। प्रेमपान । प्रीतिपात्र । प्रिय । २ कठशोधक, भारी, पित्त और रक्तवर्धक, बलकारक, मेषा जो अच्छा लगे। जो भसा मालूम हो । ३. जो छोहा ने जनक, आँखो के लिये हितकारी रसायन, तथा जीएंज्वर, जाय । जिसे कोई मलग करना न चाहे । जैसे,—प्राण सबको गुल्म, अरुचि, खांसी, शोथ, प्रामदोष, कुष्ठ, अग्निमाद्य, कृमि, प्यारा होता है । ४. महंगा । अधिक मूल्यवान् । वायु पौर श्वास आदि का नाशक माना जाता है। इसमें से प्यारिसञ्चा सी० [हिं० प्यारी ] प्यारी। प्रिया । उ०-मोसी एक प्रकार का तेल भी निकलता है जो उत्तेजक पौर सखि तुम कोटिक पठवौ प्यारि न माने माप । -नंद ग्र०, चेतनाजनक माना जाता है। प्याज को कुचलने से जो रस पृ०३६८। निकलता है वह विच्छू प्रादि के काटे हुए स्थान पर लगाया प्याला-सञ्ज्ञा पुं० [फा० प्यालह, पिपालह ] [ जी० : अपा० भी जाता है और मूर्छा के समय उसे सुधाने से चेतना प्याली ] १. एक विशेष प्रकार का छोटा कटोरा जिसका कपरी भाग या मुंह नीचेवाले भाग या पेंदे की मपेक्षा कुछ पर्या-सुकंदक। लोहितकंद। तीक्ष्णकद । उष्ण । मुखन मषिक चौड़ा होता है मौर जिसका व्यवहार साधारणतः माती है।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१९
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