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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४२

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प २७५१ पक्षद्वय हो जाता है। पित्त रस के साथ मिलने से क्लोम रस मे साध्य वह्निमान की प्रतिज्ञा की गई है (न्याय) । ८ किसी तीव्रता पाती है और वसा या चिकनाई पचती है। की ओर से लडनेवालो का दल या समूह । फौज । सेना । पक्ष-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ किसी स्थान वा पदार्थ के वे दोनो छोर या वल । ६ सहायको या सवर्गों का दल । साथ रहनेवाला किनारे जो अगले और पिछले से भिन्न हो। किमी विशेष समूह । उ०-पग पक्ष जाने विना करिय न वैर विरोघ । स्थिति मे दहिने और वाएं पडनेवाले भाग । प्रोर । पाश्वं । -(शब्द०)। तरफ । जैसे, सेना के दोनो पक्ष । यौ०-केशपक्ष = बालो का समूह । विशेष -'पोर', 'तरफ' आदि गे 'पक्ष' शब्द मे यह विशेषता १. सहायक । सखा। साथी। ११ किसी विषय पर भिन्न है कि यह वस्तु के ही दो अंगों को सूचित करता है, वस्तु से भिन्न मत रखनेवालो के अलग अलग दल । विवाद या झगडा करनेवालो की अलग अलग मडलियाँ। वादियो प्रतिवादियो पृथक् दिक् मात्र को नहीं। २ किसी विषय के दो या अधिक परस्पर भिन्न अगो मे से एक । के अलग अलग समूह । जैसे,-( क ) दोनो पक्षों को साव- किसी प्रसग के सबध मे विचार करने की अलग अलग बातो घान कर दो कि झगडा न करें। (ख ) तुम कभी इस पक्ष मे से कोई एक। पहलू । जैसे,—(क) सब पक्षो पर में मिलते हो कभी उस पक्ष मे । १२. चिडियो का डैना । विचार कर काम करना चाहिए । (ख) उत्तम पक्ष तो पख । पर। १३ शरपक्ष । तीर मे लगा हुआ हुआ पर । १४ यही है कि तुम खुद जाओ। ३ किसी विषय पर दो या एक महीने के दो भागो में से कोई एक । चाद्रमास के पद्रह अधिक परस्पर भिन्न मतो में से एक । वह वात जिसे कोई पद्रह दिनो के दो विभाग। पद्रह दिन का समय । पाख । सिद्ध करना चाहता हो और जो किसी दूसरे की वात के विशेष-पर्व दो होते हैं-कृष्ण और शुक्ल । कृष्ण प्रतिपदा विरुद्ध हो। जैसे,—(क) तुम्हारा पक्ष क्या है ? ( ख ) से लेकर अमावस्या तक कृष्ण पक्ष कहलाता है क्योकि उसमें तुम शास्त्रार्थ में एक पक्ष पर स्थिर नहीं रहते । चद्रमा की कला प्रतिदिन घटती जाती है, जिसमे रात अंधेरी यौ०-उत्तम पक्ष । पूर्वपक्ष । पक्षखडन । पक्षग्रहण । पक्षमडन । होती है। शुक्ल प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष पक्षसमर्थन। कहलाता है क्योकि उसमे चद्रमा की कला प्रतिदिन बढती महा०-पक्ष गिरना = मत का युक्तियो द्वारा सिद्ध न हो सकना। जाती है जिससे रात उजेली होती है। कृष्ण पक्ष मे सूर्यास्त शास्त्रार्थ या विवाद मे हार होना । पक्ष निर्वल पड़ना = मत से और शुक्ल पक्ष मे सूर्योदय से तिथि ली जाती है। का युक्तियो द्वारा पुष्ट न हो सकना। पक्ष प्रबल पड़ना = १५ गृह । घर। १६ चूल्हे का छेद । १७ हाथ मे पहनने का मत का युक्तियो द्वारा पुष्ट होना। दलील मजबूत होना । कडा । २० महाकाल । शिव । २१ नीव । भित्ती। दीवार पक्ष सँभालना=किसी मत या बात का खडन होने से (को०)। २२ पडोस (को०)। २३ दीवार का ताख । पाख बचाना । पक्ष में = मत या वात के प्रमाण मे। कोई बात (को०) । २४ शुद्धता । पूर्णता (को०)। २५ स्थिति । दशा सिद्ध करने के लिये। (को०) । २६ शरीर (को०)। २७ सूर्य (को०)। २८ दो की ४ दो या अधिक बातो में से किसी एक के सबध मे (किसी सख्या का सूचक शब्द (को॰) । की ) ऐसी स्थिति जिससे उसके होने की इच्छा, प्रयल आदि पक्षक-सञ्चा पु० [स०] १ पार्य द्वार । २ खिड़की । चोर दरवाजा। सूचित हो। अनुकूल मत या प्रवृत्ति । जैसे,- तुम देने के पक्ष ३ ओर । पक्ष । ३ सहायक । तरफदार । ४ पखा [को०] । मे हो कि न देने के? पक्षका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] बगल की दीवार (को०] । मुहा०-किसी बात के पक्ष में होना = किसी बात का होना ठीक पक्षगम - वि० [ स० ] पखो से उडनेवाला [को॰] । या अच्छा समझना। पक्षग्रहण-सञ्ज्ञा पु० [स०] दो मे से कोई एक पक्ष या दल चुनना। ५ ऐसी स्थिति जिसमे एक दूसरे के विरुद्ध प्रयत्न करनेवालो मे किसी पक्ष का समर्थन करना [को॰] । से किसी एक की कार्यसिद्धि की इच्छा या प्रयत्न सूचित हो । पक्षघात-सञ्चा पु० [स०] दे० 'पक्षाघात' । झगडा या विवाद करनेवालो में से किसी के अनुकूल पक्षचर-सञ्ज्ञा पु० [पु०] १ मुंड से बहका हुआ हाथी। २ चद्रमा । स्थिति । जैसे,—इस मामले मे वह हमारे पक्ष में है। ३ सेवक । भृत्य (को०] । मुहा०-( किसी का ) पक्ष करना = दे० 'पक्षपात करना'। पक्षाच्छिद-सचा पु० [सं०] ( पर्वतो के पंख काटनेवाला ) इद्र का पक्ष ग्रहण करना = पक्ष लेना। (किसी का ) पक्ष लेना = एक नाम (को०] । (१) ( झगडे में ) किसी की पोर होना। किसी की पक्षज-सज्ञा पुं० [स०] चंद्रमा। सहायता में खडा होना । सहायक होना। (२) पक्षपात पक्षजन्मा-सञ्ज्ञा पु० [सं० पक्षजन्मन् ] दे॰ 'पक्षज' (को॰) । करना । तरफदारी करना। पक्षाति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा। २ पख की ६ निमित्त । लगाव । सवध । जैसे,--ऐसा करना तुम्हारे पक्ष जड । पखना । हैना [को०] । में अच्छा न होगा। ७ वह वस्तु जिसमे साध्य की प्रतिज्ञा पक्षद्वय-ज्ञा पु० [स०] विवाद के दोनो दल या पक्ष । २ दो पाख । करते हैं। जैसे, 'पर्वत वढिमान हैं । यहाँ पर्वत पक्ष है जिसमे महीना [को॰] । 1