पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रकृतिज प्रक्रांस प्रकृतिज-वि० [सं०] जो प्रकृति या स्वभाव से उत्पन्न हुमा हो । प्रकोपण-वि०, सहा पुं० [सं०] दे० 'प्रकोपन' [को॰] । प्रकृतिपुरुष-सधा पुं० [सं०] राज्यमत्री। मंत्री [को०) । प्रकोपन'-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ किसी के प्रकोप को बढ़ाना । उचै- प्रकृतिभाव-गज्ञा पुं० [स०] १ स्वभाव । २ सघि का वह नियम जित करना । २ गुस्सा करना । नागज होना। विगहना । जिसमें दो पदों के मिलने से कोई विकार नही होता । ३ क्षोम । ४ वात, पित्त आदि का कोप । विशेष-दे० 'प्रकोप'। ५ चचलता। प्रकृतिमंसल-सज्ञा पुं० [सं० प्रकृतिमयदल ] राज्य के स्वामी, प्रामात्य, सुहृद, कोष, राष्ट्र, दुर्ग और वल इन सातों अगों प्रकोपन-वि० [सं० ] प्रकोप' करानेवाला । क्षुष वरनेवाला । का समूह । २ प्रजा का समूह । प्रफुपित करनेवाला (को०1 प्रकृतिमान्-वि० [ प्रकृतिमत् ] १ स्वाभाविक । नैसर्गिक । सहज । प्रकोपित-वि० [म०] उत्तेजित किया हुमा । शुन्ध । धित (को०] । २. सात्विक विचार का [को०] । प्रकोष्ठ-सहा . [ मं० ] १ कोहनी के नीचे का भाग । २ बडे प्रकृत्तिजय-सझा पुं० [सं०] प्रकृति में मिल जाना । प्रलय दरवाजे के पास की कोठरी। सदर फाटक के पास को होना [को०)। कोठरी। ३ वडा प्रांगन जिसके चारो ओर इमारत हो। प्रकृतिवशित्व-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्रकृति को अधिकार मे लाने या प्रकोष्ठक-सज्ञा पुं० [सं०] इमारत के सदर फाटक के पास का रखने की शक्ति। कक्ष या कमरा [को०]। प्रकृतिशास्त्र-सक्षा पुं० [स०] वह शास्त्र जिसमें प्राकृतिक वातों प्रकोष्णा-सञ्ज्ञा नौ० [सं०] एक अप्सरा का नाम । ( जैसे, जीव, पशु, वनस्पति, भूगर्भ श्रादि ) का विचार प्रकार-सज्ञा पुं० [सं० प्राकार ] दे॰ 'प्राकार' । उ०-वर किया जाय। विहार प्रकार विपन वाटिका विराजिय ।-पृ० रा०, प्रकृतिसिद्ध-वि० [ म० ] स्वाभाविक । प्राकृतिक । नैसर्गिक । १८।१४। प्रकृतिसुभग-वि० [सं०] नैसर्गिक सुदर । स्वभावत सुदर [को०] । प्रक्खर-वि० [ 10 ] पत्य त तीक्ष्ण, तीव्र या उन [को०)। प्रकृतिस्थ-वि० [सं०] १ जो अपनी प्राकृतिक अवस्था में हो। प्रक्खर-सज्ञा पुं० १ घोडे या हाथी के रक्षार्थ उन्हें पहनाने का अपने स्वभाव मे स्थित । प्रानी मामूली हालत में । २ कवच पाखर । प्रश्वकवच । २ खच्चर ।३ पवान । स्वाभाविक । नैसर्गिक । कुत्ता (को०] 1. प्रकृतिस्थ सूर्य-सज्ञा पुं० [स०] उत्तरायण उल्लघन करके प्राया प्रक्रता-वि० [सं० प्रक्रन्तु] १ उपक्रम करनेवाला । प्रारभकर्ता । २ दमन करनेवाला । ३ स्वायत्त करनेवाला । वध में करने. प्रकृतीश-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] प्रकृति अर्थात् प्रजा का स्वामी । राजा। वाला (को०] । शास्ता [को०]। प्रक्रति-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'प्रकृति'-३ ( उ०-मादि भगम प्रफुत्थजीर्ण-सज्ञा पुं॰ [40] साधारण या स्वाभाविक प्रजीणं । अविकार एक ईस्वर अविणासी । पछै प्रक्रति तत पच प्रकृत्या--क्रि० वि० [सं०] प्रकृति से । स्वभावतया (को०] । विविध सुर ईख जवासी ।-रा० रू०, पृ०७। प्रकृष्ट-वि० [सं०] १ मुख्य । प्रधान । खास । २. उत्तम । श्रेष्ठ । प्रक्रत्तो-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'प्रकृति' । उ०प्रगती पुरुष । ३ प्राकृष्ट । खिंचा हुषा । ४ खींचा या बढ़ाया हुमा (को॰) । -पृ० रा०, २५४०३। प्रकृष्टता- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ उत्तममता । उत्कृष्टता । श्रेष्ठता । प्रक्रम-सज्ञा पुं० [सं०] १ क्रम । सिलसिला । २ वह उपाय जो मुख्यता । २ दीघता (को०)। किसी कार्य के प्रारम में किया जाय । उपक्रम । ३ अति- प्रकोट-सज्ञा पु० [सं०] १ शहरपनाह । परिखा । परकोटा । क्रम । उल्लघन । ४ अवसर । मौका। २ धुस्स। प्रक्रमण-सक्षा पुं० [सं०] १ अच्छी तरह घूमना । खूब भ्रमण प्रकोथ-मज्ञा पुं० [सं०] सडना । दूषित होना [को०] । करना। २ पार करना। ३ भारभ करना। ४ अग्रसर प्रकोप-सज्ञा पुं० [सं०] १ बहुत अधिक कोप । २ क्षोम । ३ होना । मागे वढ़ना। चचलता। ४ किसी रोग की प्रबलता। बीमारी का अधिक प्रक्रमणीय-वि० [सं०] प्रक्रम फे योग्य । उपक्रम योग्य [को० । और तेज होना । जैसे,—आजकल शहर मे हैजे का बहुत प्रक्रमभग-सद्या पुं० [सं० प्रक्रममग ] साहित्य मे एक दोष जो प्रकोप है। ५ शरीर के वात, पित्त भादि का किसी कारण उस समय होता है जब किसी वर्णन में प्रारभ किए हुए क्रम से विगड जाना जिससे रोग उत्पन्न होता है । जैसे,- आदि का ठीक ठीक पालन नहीं होता। उनको पित्त के प्रकोप के कारण ज्वर हुआ है । ६ पाक प्रकात'-वि० [सं० प्रकान्त ] १ पारम किया हुमा । २, कमण मण । हमला (को०) । ७. विद्रोह । किया हुमा । ३. प्रसगप्राप्त। प्रकरण प्राप्त । ४ विक्रमशाली । प्रकोपक-सज्ञा पुं० [सं०] किसी भूमि या धन का धर्मात्मा के वीर । शूर (को०] । हाथ से अधर्मी के हाथ मे जाना । अधर्मी का लाम ( जिससे प्रक्रात-सज्ञा पुं०१ यात्रारभ । यात्रा का उपक्रम । २ प्रश्न या जनता को खेद या रोष हो)। वाद का विषय (को०] । हुमा सूर्य।