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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४४

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पक्षिपानीयशालिका २७५३ पखवारी पक्षिपानीयशालिका-सशा स्त्री० [स०] पक्षियो के पानी पिलाने पखंडी-वि० [ह. पखड + ई (प्रत्य॰) ] दे० 'पाखडी'। के लिये निर्मित पात्र या हौज [को॰] । पखंडो-सज्ञा पुं० [हिं० पाखडी ] वह जो कठपुतलियाँ नचाता हो । पक्षिपाल--वि० [म० पक्षिपालक ] चिडिया पालनेवाला। उ० कठपुतली का नाच दिखानेवाला व्यक्ति । उ०-कतहुं चिरहटा पक्षिपाल ना पायहै अडा। सो लौ धर्म रचै नव खडा। पखी लावा । कतहुँ पखाडी काठ नचावा ।-जायसी (शब्द०)। कवीर सा०, पृ०७। पन-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० पक्ष, प्रा० पक्ख ] १ वह बात जो किसी बात पक्षिपु गव-सञ्ज्ञा पु० [स० पक्षिपुङ्गव] १ जटायु । २ गरुड [को॰] । के साथ जोड दी जाय और जिसके कारण व्यर्थ कुछ और पक्षिमार्ग-सश स्त्री० [०] वायु [को॰] । श्रम या कष्ट उठाना पड़े। ऊपर से व्यर्थ बढाई हुई बात । तुर्रा । जैसे,-मैं पाऊँगा अवश्य पर साथ में लाने की पख पक्षिराज-सज्ञा पुं० [म०] १ पक्षियो का राजा, गण्ड । २ जटायु । न लगाइए। ३ एक प्रकार का धान । क्रि० प्र०-लगना ।—लगाना । पक्षिल-सज्ञा पु० [स०] १ दे० 'पक्षिलस्वामी' । २ मददगार । २ ऊपर से बढाई शतं । वाधक नियम । अडगा । जैसे,—इम्तहान सहायक । सहयोगी। की पख न होती तो ये उस जगह पर हो जाते । ३ झगडा। पतिलस्वामी-सञ्चा पु० [ म० ] एक प्राचीन प्राचार्य । हेमचद्र के मत बखेडा । झ झट । हैरान करनेवाली बात । जैसे,-तुमने मेरे से वात्स्यायन ही का नाम पक्षिल स्वामी है। पीछे अच्छी पख लगा दी है यह रुपयो के लिये बराबर मुझे पक्षिशार्दूल-सञ्ज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का नृत्य [को०। घेरा करता है। पक्षिशाला-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म०] १ घोसला । २ पिंजरा । पिजर । ३ क्रि० प्र०-करना ।-फैलाना।-मचाना । चिडियाघर (को०] । ४ दोप। श्रुटि । नुक्स । जैसे,-वे इस हिसाब में यह पख पक्षींद्र-मज्ञा पुं॰ [सं० पक्षीन्द्र ] गरुड [को॰] । निकालेंगे कि इसमें अलग अलग व्योरा नहीं है। पक्षी-सञ्ज्ञा पु० [ स० पक्षिन् ] १ चिडिया। २ तरफदार । ३ वाण पखड़ी-सज्ञा स्त्री० [ म० पक्ष्म ] फूलो का रगीन पटल जो खिलने (को०) । ४ शिव (को०)। के पहले प्रावरण के रूप में गर्भ या परागकेसर को चारो पक्षी-वि० १ पक्षवाला । पखवाला । २ पक्ष विशेष का समर्थक । ओर से वद किए रहता है और खिलने पर फैला रहता है। तरफदार (को०] । पुष्पदल । जैसे, गुलाब की पखडी, कमल की पखडी। पक्षीपति-सज्ञा पु० [स०] दे० 'पक्षिपति' । पखतूट-सशा पुं० [ देश० ] डिंगल में एक प्रकार का काव्यदोष ।- पक्षीश्वर सज्ञा पुं॰ [ स० ] गरुड [को॰] । रघु० रू०, पृ०१४। पक्षीय- वि० [ स०] ( समस्त के अत मे ) किसी पक्ष, समूह आदि पखनारी-मज्ञा स्त्री॰ [ म० पक्ष + नाल ] चिडियो के पखो को डठी से सबध रखनेवाला। जैसे, कुरुपक्षीय । जिसे ढरकी के छेद मे तिली रोकने के लिये लगाते है पक्षेष्टि'-वि० [म० ] एक पक्ष मे होनेवाला । पाक्षिक । ( जुलाहे )। पक्षेष्टि-सज्ञा पुं० [०] पाक्षिक याग। वह यज्ञ जो प्रति पक्ष पखपान-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पग+ पान ] पैर में पहनने का एक गहना किया जाय। जिसे पाँवपोश भी कहते हैं। पक्ष्म-सञ्ज्ञा पुं० [ म० पक्ष्मन् ] १ आँख की विरनी। वरौनी। २ पखरनाल-क्रि० स० [हिं० पखारना ] प्रक्षालन करना। धोना। महीन धागा । धागे का कोना (को०) । ३ प ख (को०)। ४ पखारना। फूल की प खुडी (को०) । ५ पशुप्रो के मुख का बाल । मूछ । पखरवाना-क्रि० स० [हिं० पखारना ] दे० 'पख राना' । जैसे, सिंह, विल्ली आदि के (को० । ६ पशुप्रो के शरीर का पखराना-क्रि० स० [हिं० पखारना का प्रे०रूप ] घुलवाना। वाल (को०)। पखारने का काम कराना। पक्ष्मकोप-सज्ञा पु० [ स०] आँख की बिरनी या पलकों का पखरी-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [ १ दे० 'पाखर' । २ दे० 'पंखडी'। एक रोग। पखरैत-सञ्ज्ञा पु० [हिं० पाखर + ऐत (प्रत्य॰)] वह घोडा या पक्ष्मल-वि० [स०] १ लवी और सु दर बरौनियोवाला। २ वैल या हाथी जिसपर लोहे की पाखर पडी हो। रोमश । वालोवाला । ३ मुलायम । चिकना [को॰] । पखरौटा -सज्ञा पुं० [हिं० पखड़ी + श्रीटा प्रत्य०)] सोने या पक्ष्य'-वि० [स०] १ पखवारे मे होने या घटनेवाला। २ प्रत्येक चाँदी के वर्क से लपेटा हुआ पान का वीडा । पाख मे बदलनेवाला। ३ पक्षपात करनेवाला [को॰] । पखवाड़ा-सचा पुं० [स० पक्ष + वार ] दे० 'पखवारा' । पक्ष्य-सज्ञा पुं० तरफदार । पक्ष लेनेवाला [को॰] । पखवारा-सशा पु० [ सं० पक्ष + वार ] १ चाद्रमास का पूर्वार्ध या पखंड-सज्ञा पुं० [सं० पाखण्ड ] दे० 'पाखड' । उ०-पासन वासन उत्तरार्घ । महीने के पंद्रह प द्रह दिन के दो विभागों मे से मानुस अडा। भए चौखड जो ऐस पखंडा। —जायसी कोई एक । २ प द्रह दिन का काल । उ०-परखेसु मोहिं (शब्द०)। एक पखवारा । नहिं भावौं तो जानेसु मारा ।-मानस १६ ।