प्रधानधातु ६१७६ प्रनर्तित प्राधानधातु-मञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] शरीर के सब घातुप्रो में से प्रधान प्रध्मापित-वि० [सं०] वायु से पूरित किया हुमा । फूका हुमा। शुक्र और वीर्य। वजाया हुमा (को०] । प्रधानपुरुप-सज्ञा पुं० [सं०] १ राज्य या शासन प्रादि का प्रमुख प्रध्यान-सज्ञा पुं॰ [स०] विशिष्ट ध्यान या चिंतन । गभीर चिंतन । व्यक्ति । २.शिव को०]। प्रगाढ़ चिंतन (को०] । प्रधानसभिक-सज्ञा पुं० [सं०] द्यूतगृह का मुखिया । जुपाघर प्रधृष्ट-वि० [सं०] १. धर्षित । अपमानित । तिरस्कृत । २. उद्दड । का प्रधान को०] 1 घमडी। उद्धत (को०] । प्रधानमंत्री-सज्ञा पु० [ स० प्रधानमन्त्रिन् ] किसी देश, राज्य या प्रध्यापन-सशा पु० [सं०] वायु के पावागमन फो ठीक रखने के लिये राष्ट्र का वह प्रमुख व्यक्ति जो सभी मत्रियो से वहा होता श्वास नली को ठीक करने का उपचार या प्रक्रिया (को०] । है तथा शासन का प्रधान स चालक होता है। प्रध्वस-सज्ञा पु० [सं०] १. नाश । विनाश । नष्ट हो जाना । २ प्रधानांग-सज्ञा पुं० [सं० प्रधानाग] १ मुख्य अवयव । प्रधान मग । सास्य के मत से किसी वस्तु की प्रतीत अवस्था। २ राज्य का प्रसिद्ध व्यक्ति [को०] । विशेप-सांस्य मतवाले यह नहीं मानते कि किसी वस्तु का प्रधानात्मा-सशा पुं० [ स० प्रधानात्मन् ] विष्णु [को०] । नाश नहीं होता है। इसलिये वे किसी पदार्थ की प्रतीत प्रधानाध्यापक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] किसी शिक्षासस्था का मुख्य शिक्षक अवस्था को ही प्रध्वस कहते हैं। जो अध्यायन के साथ सस्था की व्यवस्था भी करता है। प्रध्वसक-० [स०] विनाशक । नाश करनेवाला। प्रधानामात्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्रधान मत्री। मत्रिसमूह में प्रधानता- प्रध्वसाभाव--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] न्याय के अनुसार पांच प्रकार के प्राप्त मत्री। प्रभावो में से एक प्रकार का प्रभाव | वह अभाव जो किसी प्रधानीgt-सज्ञा स्त्री० [हिं०प्रधान +ई (प्रत्य॰) ] प्रधान का वस्तु के उत्पन्न होकर फिर नष्ट हो जाने पर हो । पद या कम। प्रध्वसित-वि० [सं०] विनष्ट । वरवाद [को०) । प्रधानोत्तम-सक्षा पु० [सं०] १ युद्धेप्सु । वीर । २. लब्धप्रतिष्ठ । प्रध्वसी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ प्रत्यंत प्रसिद्ध । विश्रुत (को०] । प्रध्वंसिन् ] १ नाश करनेवाला। वह जो नष्ट करे । २ नष्ट होनेवाला । क्षयशील । नाशशील को०] । प्रधारण-सक्षा पु० [सं०] १ रक्षण। गुप्ति । २ धारण करना [को०] । प्रध्वस्त'-नि. [ स०] जो नष्ट हो गया हो। जितका प्रध्वंस हो चुका हो। प्रधारणा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] मस्तिष्क को किसी एक ओर या किसी विषय पर जमाना [को०] । प्रध्वस्तर-सञ्ज्ञा पु० [म०] तात्रिको के अनुसार एक प्रकार का मंत्र । प्रधावन-सचा पु० [सं०] १ वायु। हवा । २ धावक । दौडने- प्रनत-वि० [सं० प्रणत ] दे० 'प्रणत' । उ०—सरनागत मारत प्रनल-सञ्ज्ञा पुं० [स० प्रण] दे॰ 'प्रण'। वाला (को०) । ३ मलना । साफ करना (को॰) । प्रनतनि को दे दे अभयपद और निवा1 -तुलसी ग्र०, प्रघावित-वि० [सं०] दौड़ता हुआ। तीव्र गति से युक्त । उ०- पृ०४१३॥ भूले हुए क्लेश को, हो रहे प्रघावित तुम्हारे तीर्थ देश को। यो०-प्रनतपाल । प्रनतपालक । प्रनतपालिका = दे० प्रणतपाली। -बापू, पृ० १६। प्रधि-सज्ञा पु० [सं०] १ पहिए का धुरा। २ कुर्मा (को०)। ३ प्रनखिgt-सज्ञा स्त्री॰ [स० प्रणति ] द० 'प्रणति' । मंडल । चक्र (को०)। ४.खड । विच्छेद (को॰) । प्रनप्ता-सज्ञा पुं० [सं० प्रनप्तृ ] नाती का पुत्र । परनाती। प्रधी'-वि० [सं०] प्रकृष्ट बुद्धिवाला । अत्यधिक चतुर [को०] । पनाती [को०] 1 प्रघो-सज्ञा स्त्री० प्रकृष्ट मति । उत्कृष्ट बुद्धि [को०] । प्रनमन-सञ्ज्ञा पुं० [ स० प्रयमन ] दे० 'प्रणमन' । प्रधीर-वि० [सं० ] धीरधारी। धैर्यवान् । धैर्यशील । उ०-भोछे प्रनमनाg+-क्रि० स० [स० प्रणमन ] दे० 'प्रणवना' । प्रक निकस उरोज उकसन लागे हिय रस पीकर को पजन प्रनय -सज्ञा पुं॰ [ स० प्रणय ] दे० 'प्रणीय' । उ०—(क) प्रीति प्रधीरेंजे।-पजनेस०, पृ०५। प्रनय विनु मद ते गुनी।-मानस, ३।१५। (ख) राव रक प्रधूपित-वि० [सं०] १. तप्त । तपाया हुआ । २. दीप्त | चमकता सब एक से लगत प्रनय रस सोत ।-भारतेंदु ग्रं॰, भा० ३, हुमा । ३. जिसे सताप या दुख हुमा हो। ४. सुवासित । पृ० ३६८। धूपित (को०)। प्रनयाम-सचा पुं० [मे० प्राणायाम ] दे० 'प्राणायाम' । उ०- प्रधूपिता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ वह दिशा जिधर सूर्य बढ़ रहा • वैसाख मास फल पूरन जोग जुक्ति प्रनयाम ।-भीखा० शल, हो । २ फुष्टपीडित । दु ख में पड़ी हुई नारी (को॰) । पृ० ४३ प्रधूमित-वि० [सं०] धुएं से भरा हुमा । भीतर ही भीतर जलने- प्रनर्तित-वि० [सं०] १. कपायमान किया हुआ । कपित । २. वाला [को०] । मुलाया हुआ । ३ नृत्य करता हुमा । नाचता हुमा [को॰] । -
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४६७
दिखावट