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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४६८

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। प्रनव ११७७ प्रपम्न प्रनव-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रणव ] दे० 'प्रणव' । लाभ न हानि फछु तिमि प्रपच जिय जोय । तुलसी (शब्द॰) । प्रनवनाg -क्रि० स० [हिं० ] दे० 'प्रणवना' । उ०—(क) ४. बखेडा । मझट । झगडा । झमेला । उ०--देहु, कि लेह प्रवनो दीनवधु दिनदानी । --मानस, ११५ । (ख) प्रवनों अजस करि नाही। मोहिं न बहुत प्रपच सुहाही ।---तुलसी सवनि कपट छल त्यागे ।-मानस, १।१४ (ग) प्रथमहिं प्रनकै (शब्द०)। ५. आडवर । ढोग। छल । धोखा । उ०-- प्रेममय, परम जोति जो प्राहि ।-नंद ग्र०, पृ० ११७ । रचि प्रपच भूपहि अपनाई । रामतिलक हित लगन घराई 1-- प्रनष्ट-वि० [सं०] १ गायव । लुप्त । अदृश्य । २ नष्ट भ्रष्ट । तुलसी (शब्द०)। ६. विपर्यास । प्रतिकूलता। वैपरीत्य बुरी तरह नष्ट । ३ मगा हुमा । पलायित (को०] । (को०) । ७. राशि । स चय । पुंज (को०) । ८ व्याख्या । विस्तार । विश्लेषण (को०)। ६. नाटक मे परिहासजनक प्रनाम-सज्ञा पु० [ स० प्रणाम ] दे० 'प्रणाम' । उ०-गुरुहि प्रनाम कथन । अस गत या भोडा कथन (को०)। मनहिं मन कीन्हा।-मानस, १२२६१ । (ख) कौसल्या कल्यानमय मूरति करत प्रनामु । सगुन सुमगल काज सुभ प्रपंचक-वि० [ स० प्रपञ्चक ] १ दिखानेवाला । प्रदर्शन करनेवाला २. विकास करनेवाला । ३. सागोपाग व्याख्या करनेवाला । कृपा करहिं सिय रामु ।- तुलसी म०, पृ०६३ । विस्तार से दिग्दर्शित करानेवाला को०] । प्रनामी-सशा पु० [स० प्रणमिन् ] प्रणाम करनेवाला । जो प्रपचन-सशा ५० [स० प्रपञ्चन] [वि० प्रपंचित ] विस्तार बढ़ाना । प्रणाम करे। तूल देना। प्रनामी-सञ्ज्ञा सी० [सं० प्रणाम + हिं० ई (प्रत्य॰)] वह धन या दक्षिणा जो गुरु, ब्राह्मण या गोस्वामी प्रादि को शिष्य या प्रपचबुद्धि-वि० [ स० प्रपञ्चबुद्धि ] धूतं । घोखेबाज [को०] । भक्त लोग प्रणाम करने के समय देते हैं । प्रणामी । प्रपंचवचन-सज्ञा पुं० [सं०] १ माडबर या ढोग से भरी बात । प्रनायक-वि० [स०] १ नेतारहित । नायकविहीन । २. नायकों २ विस्तृत बातचीत । व्योरे की बात (को०] । में श्रेष्ठ या प्रधान [को०] । प्रपंचित-वि० [सं० प्रपश्चित् ] १. जो विस्तृत किया गया हो। प्रनार-सञ्ज्ञा पुं० [ स० प्रनाल ] प्रणाली। पनारा । उ०- फैलाया या विस्तार किया हुमा। २ भ्रमयुक्त । ३ जिससे कज्जल प्रमान प्रब्बत ठरयो रत्तधार बुळत जलु । कचन भूल हुई हो । प्रतारित । जो छला गया हो। प्रनार हूँ सुरश्रविक इह प्रोपम दीस त पलु ।-पृ० रा०, प्रपची-वि० [स० प्रपश्चिन् ] १ प्रपच रचनेवाला। २ छली । ७/१४४1 कपटी। ढोगी। पाहबर फैलानेवाला। ३. झगडालू । बखेडिया। प्रनाल-यज्ञा पुं० [सं०] प्रणाली । पनारा। परनाला । उ०-जन छिद्र कालं, रुधिजा प्रनाल । बहै धार पग्गं, निनारध रग्ग | प्रपक्ष-सज्ञा पुं० [ स० ] पक्ष का सिरा या छोर, जैसे, पक्षिव्यूहबद्ध -पृ० रा०, ११६४२ । सेना का [को०] । प्रनालिका-मज्ञा स्त्री॰ [म० प्रणाली ] रीति । पद्धति । सरणि । प्रपतन-सचा पुं० [स०] १ उड जाना । २. नीचे गिरना। पतन । प्रणाली। उ०-तब श्रीगुसाई जी आप कृपा करिके नित्य ३. वह स्थान जिसपर से कोई वस्तु गिरे । ४ मृत्यु । नाश । को तथा बरस दिन को सव उत्सवन को प्रकार प्रनालिका समाप्ति । ५ चट्टान । ६. अाक्रमण (को०] । लिखि पठाए।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० २४८ । प्रपतित-वि० [स०] १. उडा हुमा । जो उड गया हो। २ गिरा प्रनाली-ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'प्रणाली' । हुमा । नीचे पाया तुपा । ३ नष्ट । बरवाद । ४ मरा हुमा । प्रनाशन-सञ्ज्ञा पु० [सं० प्रणाशन ] दे॰ 'प्रणाशन' । मृत को॰] । प्रनासन--सज्ञा पुं० [सं० प्रणाशन ] दे० 'प्रणाशन' । प्रपत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० ] अनन्य शरणागत होने की भावना । प्रनिघातन--सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] हत्या । वध [को०] । अनन्य भक्ति । उ०-वैष्णव ग्रथन सकल पढायो। पुनि प्रनिणत--प्रज्ञा पुं॰ [ स० प्रणिपात ] दे० 'प्रणिपात' । प्रपति को धर्म सुनायो।-रघुराज (शब्द०)। प्रनृत्त'--वि० [स०] जो नृत्य करता हो । नाचनेवाला । नर्तक [को०] । प्रपथ-वि० [स०] शिथिल । थका मौदा । प्रनृत्त-सञ्ज्ञा पुं० नाच । नुत्य [को०] । प्रपथ्य-वि० [सं०] जो विशेष हित करे । अत्यंत हितकर (को०] । प्रपच-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० प्रपञ्च ] १. पांच तत्वो का उत्तरोत्तर अनेक प्रपथ्या-सञ्चा सी० [स०] हरीतकी । हड । भेदो में विस्तार । स सार | सृष्टि । भवजाल । उ०--विधि प्रपद-सञ्चा पुं० [स०] पैर का अगला भाग। प्रपंच गुन अवगुन साना ।--तुलसी (शब्द०) । २ एक से प्रपदन-सज्ञा ॰ [ स०] पहुंच । पैठ । प्रवेश [को०] । उत्तरोत्तर भनेक होने का क्रम। विस्तार । फैलाव । ३. प्रपदीन-वि० [सं०] प्रपद सवधी। पैर के पजे का। पैर के अगले सांसारिक व्यवहारो का विस्तार । दुनिया का जजाल । भाग से संबद्ध [को०]। उ.--(क) परमारथी प्रपच वियोगी ।-तुलसी (शब्द०)। (ख) सपने होइ भिखारि तुप रंक नाकपति होय । जागे प्रपत्न-वि० [स०] १. प्राप्त । २, प्राया हुआ। पहुँचा हुमा ।