पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४६९

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प्रपलायन २१५८ प्रपौत्र ३ शरण में पाया हुमा। शरणागत । आश्रित । ४. कण्ट. प्रपालन-सा पुं० [स०] पालन । पोपण। रक्षण [को०] । ग्रस्त । दीन । दुखी (को०)। प्रपाली-सशा पुं० [सं० प्रपालिन् ] बलदेव का एक नाम । प्रपलायन-सज्ञा पुं० [ सं०] भाग जाना । पलायन करना को०] । प्रपिता-सहा पुं० [सं० प्रपितामह ] दे० 'प्रपितामह' । उ०-इमाग प्रपलायित -वि॰ [ स०] १ भागा हुमा । भग्गू | भगोठा । २ प्रपिता अनभिज्ञतावश माया चक्का में पढ़ा हुबकियां खा पराजित । हारा हुमा [को॰] । रहा है। -कवीर म०, पृ० २१५ । प्रपन्नाड़-पशा पुं॰ [ म० प्रपन्नाह ] चक्रमर्दक । चकवेंड । प्रपितामह-मज्ञा पुं॰ [सं० ] [ग्मी० प्रपितामही] १ परदादा । दादा प्रपर्ण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] गिरा हुआ पत्ता । का वाप । बाप का दादा । २ परब्रह्म । ३. कृष्ण (को०)। प्रपर्ण-वि० (पेड आदि) जो पत्तों से रहित हो [को॰] । प्रपितामही-सका श्री० [ मं० ] परदादी। प्रपलायी-वि० [स०] १ भग्गू । भगोड़ा । भागनेवाला [को०] । प्रपितृव्य-सशा पुं० [स] परदादा का भाई । प्रपलाश-वि०, सञ्चा पु० [सं०] दे॰ 'प्रपणं' । प्रपीडक-सज्ञा पुं० [म० प्रपीठक] सतानेवाला । बहुत कष्ट देनेवाला। प्रपा-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. पौसरा । प्याऊ। वह स्थान जहाँ प्यासों २.पीसने या दवानेवाला। को पानी पिलाया जाता है। २ कूप । कूमां (को०) । ३ प्रपीड़न-गग पु० [सं० प्रपोढन] [ वि० प्रपोदित ] १ वहुन अधिक जलप्रणाली (को०)। ४ पशुमो के जल पीने का हौज (को०)। कष्ट देना । २. दवाना । ३ घारक औषध । ५ यज्ञशाला। प्रपीत-वि० [सं०] वायुपूरित । स्फीत । फैला हुमा [को०] । प्रपाक-सझा पुं० [ स०] १ घाव मादि का पकना । २. दाह । प्रपीति-सचा पी० [स० ] पीना । पान करना को०] । जलन । प्रदाह (फो०] । प्रपीन-वि० [सं० ] दे० 'प्रपीत' [को०] । प्रपाठ, प्रपाठक-सशा पु० [सं०] १ वेद के अध्यायों का एक अंश । प्रपील-सा पुं० [सं० पिपीलक ] दे० 'पिपीलक' । २ श्रौत नथों का एक प्रश । सुभत गेम राजय । प्रपील पति छाजय ।-पृ० रा०, २५३३२६॥ प्रपाणि--सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ हस्तान। हाथ का अगला सिरा । प्रपुंज-सशा पुं० [स० प्रपुञ्ज ] वड़ा समूह । भारी झुड। उ०- २ हथेली को॰] । विकसित कमलावली घले प्रयुज चचरीक, गुजत कल कोमल प्रपाडु-वि० [ स० प्रपाएड ] प्रत्यधिक श्वेत [को०] । धुनि त्यागि फंज न्यारे । —तुलसी (शब्द०)। प्रपात-सज्ञा पुं० [सं०] १ पहाड या चट्टान का ऐसा किनारा प्रपुत्र-सरा पुं० [सं०] [ सी० प्रपुत्री ] पुत्र का पुत्र । पोता। जिसके नीचे कोई रोक न हो । खडा किनारा जहाँ से गिरने प्रपुनाड़-सफा पुं० [स० प्रपुनाट ] दे० 'प्रपुन्नाट' । पर कोई वस्तु बीच में न रुक सके । भृगु । मतट । २. एक प्रपुन्नड़-सज्ञा पुं० [सं० प्रपुन्नद ] दे० 'प्रपुन्नाट'। प्रकार की उड़ान । ३ एकबारगी नीचे गिरना । ४ ऊंचे से गिरती हुई जलधारा । निर्भर । झरना। दरी । प्रपुन्नाट-सा पुं० [सं०] चक्रमर्दक । चकवंड । ५. एकाएक । हमला। आकस्मिफ अाक्रमण (को०)। ६. प्रपुन्नाड़-सज्ञा पुं० [ स० प्रपुन्नाड ] दे० 'प्रपुन्नाट' । किनारा । तट (को०)। प्रपुन्नाल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'प्रपुन्नाट' । प्रपातन-सज्ञा पुं० [सं०] जमीन आदि पर गिराना या नीचे की प्रपूरक-वि० [सं०] १ पूरा करनेवाला । पूर्ण करनेवाला । ओर फेकना (को॰] । २ सतुष्ट करनेवाला [को०] । प्रपावांवु-सया पु० [स० प्रपाताम्बु ] प्रपात का जल । झरने का प्रपूरण-सज्ञा पुं॰ [ 10 ] १ भरना । पूर्ण करना। सतुष्ट करना । पानी को०]। तुष्ट करना। ३ संबद्ध करना। लगाना । ४. झुकाना । जैसे घनुप [को०] । प्रपाती-सशा पु० [ स० प्रपातिन् ] वह पर्वत या शिला जिसके प्रागे कोई रोक न हो [को०] । प्रपुराण-वि० [सं०] अत्यंत पुराना । बहुत काल का [को॰] । प्रपाथ-सज्ञा पुं॰ [ स० ] सडक | मार्ग [को०] । प्रपूरिका-सचा स्त्री॰ [सं०] कटकारी । फटेरी । भटकटैया । प्रपादिक- सन्ना पुं० [सं०] मयूर । मोर । प्रपूरित-वि० [स०] पूर्ण । भरा हुमा [को०] । प्रपान-सच्चा पुं० [सं०] १ प्याक । पौसला । २ एक पेय (को०)। प्रपूर्ण-वि० [स०] पूर्ण । भरा हुमा। युक्त। उ०-इसलाम कलामो से प्रपूर्ण जन जनपद ।-तुलसी०, पृ०६। प्रपानक-सज्ञा पुं० [सं० ] फलो के गूदे, रस आदि को पानी में घोलकर नमक, मिर्च, चीनी आदि देकर बनाई हुई पीने की प्रपूर्वग-स्था पुं० [सं०] १ परब्रह्म । ईश्वर । २ मश्विनीकुमार का नाम [को०] । वस्तु । पन्ना। उ०-अनेक सु वर पौर स्वादिष्ट पेय पदार्थों से बने हुए प्रपानक रस का मानद वह पा सकता है।-रस प्रपौंडरीक-ससा पुं० [सं० प्रपौण्डरीक पौंडरीक । पुडरी का पौधा । क०, पृ०१६। प्रपौत्र-सञ्चा पु० [सं०] [षी प्रपौत्री] । पड़पोता। पुत्र का पोता । प्रपापालिका-सज्ञा पुं० [सं०] वह स्त्री जो पौसरा चलाती हो [को॰] । पोते का पुत्र ।