पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रबाल ११८० प्रन्न प्रवाल-सच्चा पुं० [सं०] १ पल्लव। कोपल । उ०-रसाल का ५ महाबुद्ध की एक मवस्था । ६ विकाश । खिलना। ७. वक्ष अपने विशाल हाथों को पिप्पल के चचल प्रबालो से सुगध को पुन तेज करना। गघ दीप्त करना (को॰) । मिलाता है। -श्यामा०, पृ० ४१ । २. दे० 'प्रवाल ।' व्याख्या करना । सुस्पष्ट करना । विस्तृत करना (को०) । प्रबालक-सज्ञा पुं० [स०] एक पक्ष । प्रबोधक'- वि० [ स०] १ जगानेवाला । २. चेतानेवाला। ३ समझानेवाला। ज्ञानदाता। ४, सात्वना देनेवाला । ढाढ़स प्रवालपझ-सज्ञा पु० [सं०] रक्त कमल । लाल कमल [को०] । बंधानेवाला। प्रवालफल-सज्ञा पुं॰ [ स० ] लाल चदन । प्रबोधक -मशा पुं० वह व्यक्ति जिसका काम राजा को जगाना हो। प्रबालभस्म-सज्ञा पुं० [सं० प्रथालभस्मन् ] मूगे का भस्म जो एक राजा को जगानेवाला । स्तुतिपाठक [को॰] । प्रौषधि है [को०)। प्रबोधन-सशा पुं० [स०] १. जागरण । जागना । २. जगाना। प्रबालवर्ण-वि० [स०] मूगे के रग का लाल [को०] । नीद से उठाना । ३ यथार्थ ज्ञान । वोध । चेत । ४ वोध प्रबालिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] जीवशाक । कराना। जताना । ज्ञान देना । चेत कराना। समझाना प्रबास-सशा पु० [सं० प्रयास ] दे० 'प्रवास'। उ०-कहि वुझाना। ५ विकास ग विकसित करने का कार्य। ६ पूरव अनुराग अरु मान प्रवास विचारि । रस सिंगार वियोग सांत्वना या सात्वना देने का कार्य । ७ गष को दी के तीन भेद निरधारि।-मति० ग्र०, पृ० ३५० । करना (को०)। प्रबाह-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० प्रवाह ] दे० 'प्रवाह' । उ०-कवि मति- क्रि० प्र०-करना ।-होना। राम जाकी चाह ब्रजनारिन को, देह मंसुवान की प्रवाह प्रबोधनप्रणालो-सञ्चा पु० [ स० प्रबोधन+प्रणाली ] अध्यापन की भीजियतु है।-मति० ग्रं॰, पृ० २८३ । एक विधि [को॰] । विशेष-यह शब्द पु लिंग है, पर उदाहरण में कवि ने स्त्रीलिंग प्रबोधना-क्रि० स० [सं० प्रबोधन ] १ जगाना। नींद से प्रयोग किया है। उठाना । २ सजग करना । सचेत करना । होशियार करना । प्रबाहु-सशा पुं० [स०] हाथ का अगला भाग । पहुंचा । जताना । ३ समझाना वुझाना । मन मे वात विठाना । उ०- (क) कहि प्रिय वचन विवेकमय कीन्ह मातु परितोप । लगे प्रवाहुक-अध्य० [सं०] १ सीघ मे। एक लाइन में । २ समतल प्रबोधन जानकिहि प्रगति विपिन गुन दोष ।-तुलसी में | सतह के बराबर । (शब्द॰) । (ख) प्रभु तब मोहिं बहु भाति प्रबोधा ।-तुलसी प्रबिसना@-क्रि० प्र० [सं० प्रविश् ] दे० 'प्रविसना' । उ०- (शब्द०) । ४ सिखाना । पाठ पढ़ाना। पट्टी पढ़ाना । उ०- दघि दुब हरद भरि कनक थार। बहु गान करत प्रबिसत सखिन सिखायन दीन, सुनत मधुर परिणाम हित । तेइ बाल ।--ह. रासो, पृ० ३२ । कछु कान न कीन, कुटिल प्रयोधी कूवरी।-तुलसी (शब्द०)। प्रबीन-वि० [ स० प्रवीण ] दे॰ 'प्रवीण' । उ०-सोच करो ५ ढाढस देना। तसल्ली देना। उ०-(क) कहि कहि जिन होहु सुखी मतिराम प्रवीन सवै नर नारी। मजुल बजुल कोटिक कपट कहानी। धीरज घरह प्रबोधेसि रानी।- कुजन में घन, पुज सखी । ससुरारि तिहारी। -मति. तुलसी (शब्द॰) । (ख) जननी व्याकुल देखि प्रचोधत ग्र०, पृ० २६०। घोरज करि नीके जदुराई । सूर श्याम को नेकु नही डर जनि प्रवीर-वि० [सं० प्रवीर ] दे० 'प्रवीर' । रो, तू जसुमति माई ।—सूर (शब्द०)। प्रबुद्ध'-वि० [सं०] १. प्रवाष युक्त । जागा हुमा । २ होश मे प्रबोधनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म०] कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी जिस प्राया हुया । जिसे चेत हुप्रा हो । ३. पहित । ज्ञानी । ४ दिन विष्णु भगवान् सोकर उठते हैं । देवोत्थान एकादशी । विकसित । प्रफुल्ल । खिला हुमा । ५ सजीन (को०) । २ जवासा। घमासा । प्रबुद्ध महा पु०१ नव योगेश्वरो में से एक योगेश्वर । २ ऋषभदेव प्रबोधित-वि० [सं०] [वि० सी० प्रयोविता ] १ जो जगाया एक पुत्र जो भागवत के अनुसार परम भागवत थे। गया हो । जागा हुमा। २ जिसका प्रबोध किया गया हो । ३ ज्ञानप्राप्त । । प्रबुध-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] महान सत । श्रेष्ठ महात्मा [को०] । क्रि प्र-करना ।-होना। प्रबोध-सक्षा पु० [सं०] १ जागना । नीद का हटना । २. यथार्थ ज्ञान । पूर्ण बोध । ३ प्रबोधिता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं०] एफ वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे सात्वना । माश्वासन । ढाढस। तसल्ली। दिलासा । उ.--मानदघन हित वरस (स ज स ज ग) सगण, जगण फिर सगण, जगण और दरस पद परस प्रबोध प्रसादहि दीजै।-घनानद, तृ० ३४४ । म त में गुरु होता है। इसे सुनदिनी और मजुभाषिणी भी कहते हैं । दे० 'सुनदिनी' । क्रि० प्र०-करना। प्रबोधिनो-सशा खी० [स०] १. कार्तिक शुक्ल एकादशी । पुराणा- ४ चेतावनी। नुसार इस दिन भगवान विष्णु सोकर उठते हैं । २. जवासा । क्रि० प्र०-देना। प्रध-सञ्ज्ञा पु० [सं० पर्व' ] दे० 'पर्व' । उ०—फिर पूछी पृथि