प्रभास २१८३ प्रभृति प्रभास-मज्ञा पु०१ दीप्ति । ज्योति । २ एक प्राचीन तीर्थ जिसे उ०-अतुलित बल प्रतुलित प्रभुताई। मैं मतिमद जान सोम तीर्थ भी कहते हैं। गुजरात में सोमनाथ का मदिर इसी पाई।-मानस, ३२ । तीर्थ के पतर्गत था । ३. एक वसु । ४. कुमार का एक मनुचर गण । ५ अष्टम मन्वतर का एक देवगण । ६ जनों प्रभुत्त-सज्ञा पुं० [ सं० प्रभुत्व ] दे॰ 'प्रभुत्व'। उ०-गू गत प्रभासी प्रभुत्त ।-पु० रा०, २।३६ । के एक गणाधिप का नाम (को०)। प्रभुत्व-सहा पुं० [सं०] प्रभुता । प्रभासन-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] दीप्ति । ज्योति । प्रभासना-क्रि० अ० [स० प्रभासन ] प्रकाशित होना । भासित प्रभुभक्त'-वि• [ स० ] स्वामी की सच्ची सेवा करनेवाला । न . हलाल। होना । दिखाई पड़ना। उ०-जागृत में जु प्रपच प्रभासत सो सब बुद्धि विलास बन्यो है। निश्चल (शब्द०)। प्रभुभक्त'-सञ्ज्ञा पुं० मच्छी नस्ल का घोडा [को०] । प्रभासी-वि० [ स० प्रभास ] प्रकाशित या व्यक्त करनेवाला। प्रभुराई-सचा पु० [ स० प्रभु + हिं. राय ] ईश्वर । भगवान् उ०-भ्रगू लत्त गत्त प्रभासी प्रभुत्त । मनी नीलसीत फटी उ०-यह कहि गुप्त भए प्रभुराई ।-कवीर सा. पट्ट पीत ।-पू० रा०, २।३६ । पृ०४५५। प्रभारवर-वि० [सं० ] अधिक दीप्तिमान् । प्रत्यत चमकीला [को०)। प्रभुशक्ति-सज्ञा श्री० [सं० ] कोष और सेना का बल । प्रभिन्न--वि० [सं०] १. पूर्ण भेदयुक्त । २ वटा हुमा । विभक्त । प्रभुसचा-सज्ञा स्त्री॰ [सं० प्रभु + सा ] राज्य या देश पर अख टुकड़े टुकड़े किया हुआ (को०) । ३. अलग किया हुषा । पृथक् और अनुल्लघ्य शासन का अधिकार । पूर्ण अधिकार । किया हुमा (को०)। ४ विकसित । खिला हुमा (को०)। ५ प्रभुसिद्धि--सशा सी० [सं०] वह कार्य जो प्रभुशक्ति से सिद्ध हो बदला हुषा । परिवर्तित (को०)। ६ विकृत किया हुआ प्रभूखा-सञ्चा पुं० [सं० प्रभु ] दे॰ 'प्रभु' । उ०-चल्यो गयो (को०) । ७ ढीला या शिथिल किया हुमा (को०)। ८ नशे में विप्र क्षिप्र गति कतहुं न पटक्यौ । प्रभू जान बहमन्य, । १५ लाया हुमा । मदोन्मत्त (को०) । पायनि लटक्यो।-नद० ग्र०, पृ० २०४। प्रभिन्न-सञ्ज्ञा पुं० मतवाला हाथी । प्रभिन्नकरट-व० [सं०] (हाथी) जिसके गडस्पल से मद न्यू रहा प्रभूत'-वि० [सं०] १ जो अच्छी तरह हुमा हो । भूत । उद्गत । निकला हुमा । उत्पन्न । ३. उन्नत । ४ प्रचुर हो [को०। बहुत अधिक । बहुत ज्यादा । प्रभिन्नाजन-सज्ञा पुं[ स० प्रभिन्नाञ्जन ] एक प्रकार का मज़न जो तेल में तैयार किया जाता है [को०] । प्रभूत-सञ्चा पुं० पंचभूत । तत्व । उ०-राघव की चतुरग च प्रभीत-वि० [सं०] अत्यत भयभीत । चपि धूरि उठी जल हू थल छाई। मानो प्रताप प्रभु-सचा पु० [सं०] १. वह जो अनुमह या निग्रह करने में समर्थ धूम सो केसवदास पकास न माई । मेटि के पच प्रभूत क हो । जिसके हाथ में रक्षा, दह और पुरस्कार हो । अधिपति । विधि रेनुमयी नव रीति चलाई । दुख निवेदन को भव नायक । २ जिसके आश्रय में जीवन निर्वाह होता हो । जो को भूमि किर्षों सुरलोक सिधाई ।-केशव (शब्द०)। रोजी चलाता हो । स्वामी । मालिक । ३ ईश्वर | भगवान् । प्रभूतता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १, अधिकता। बहुतायत । २. राशि ४ श्रेष्ठ पुरुष का सबोषन । जैसे, प्रभो । अपराध क्षमा अवार । ढेर [को०] । करो। ५ शब्द । ६. पारद । पारा । ७ चबई प्रात के प्रभूतत्व-सशा पुं० [स० ] दे॰ 'प्रभूतता' [को०] । कायस्थो की उपाधि । ८ विष्णु । उ०-प्रमुवन की मूरत प्रभूतांश --पज्ञा पुं० [स० प्रभूत+अश] अधिक अश । अधिक दूध ना पीवत, सीर पछार नामा रोवत । -दक्खिनी०, उ.--'सवर्णी सा' कहने का स्पष्ट अभिप्राय यह है । पृ० १६ । ६ शिव (को०)। १०. ब्रह्मा (को०)। ११ इद्र पूर्ण सवर्णी तो नहीं होता, किंतु प्रभूताश में उससे (को०) । १२. सूर्य (को०) । १३. अग्नि (को०)। । । जुलता है।--सपूर्णानद अभि० अ०, पृ० २०७ । प्रभु-वि० १. शक्तिशाली । बलवान् । २ योग्य । समर्थ । पर्याप्त । ३ प्रतिस्पर्धी । बराबरीवाला । ४. स्थायी । शाश्वत [को०] । प्रभूति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ उत्पत्ति। २. शक्ति । ३. प्रधुरता प्रभुत-सचा पुं० [सं० प्रमुख '] प्रभुत्व । प्रभाव । उ०-जगपत अधिकता। ज्यादती। हित मुखदुत इण भति जिम, प्रमुत हुवत दिन रयणपत । प्रभूष्णु-वि० [सं०] योग्य । शक्तिशाली । क्षम [को०] । रघु. ६०, पृ० १२१ । प्रभृत-सज्ञा स्त्री० या पुं० [ स० परभृत ] कोकिल । प्रभुता-सज्ञा स्त्री० [स०] १ बडाई । महत्व । 'उ०-प्रभुता तजि उ०-त्रिविध प्रभजन चलि सुरभि करत प्रमजन धीर । प्रभु कीन्ह सनेहू । —मानस, २९ । २. हुकूमत । शासनाधि मन गजन पनि प्रभृत बिन मनरजन घरी।--स.स कार। उ.-प्रभुता पाइ काहि मद नाही।-तुलसी पृ० २५०। (शब्द०) । ३. वैभव । ४. साहिबी । मालिकपन । प्रभृति'-भव्य [ सं०] इत्यादि । भादि । वगैरह। प्रभुताई-सञ्चा बी० [ स० प्रभुता+हिं० ई (प्रत्य॰)] दे० 'प्रमुता' । प्रभृति-पञ्चा स्त्री॰ भारम । शुरुमात । मादि । जैसे, इंद्रप्रभृति देवत न ल
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४७४
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