पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४९

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पचवई २७५८ पचित पचवई-सका पी० [हिं०] दे० 'पचवाई। पचापच-सज्ञा मी० [हिं० पचपच ] बार बार मुख से थूकने का पचवनाए-क्रि० स० [हिं० पचाना] दे० 'पचाना' । उ०-विस भाव । उ०—जैसी ही उनको पान सुरती की पचापच से खाय गय मो वीर जानि । पचवत जहर जनु दूध पानि ।- नफरत है वैसी इधर चुरुट के धूम्र से । भारतेंदु ग्र०, भा० ३, पृ०६६५। पृ०रा०, ६७३। पचवाई-नशा नी० [हिं० पाँच + वाई ] एक प्रकार की देशी पचाय-सझा मा [हिं० पचवाई ] एक प्रकार की शराब । शराव जो चावल, जौ, ज्वार प्रादि से चुनाई जाती है। पचवाई। उ०-जब पीएगा तो पचाय ही।--मैला०, पचहत्तर -- वि० [म० पञ्च सप्तत, प्रा० पचहत्तर ] सत्तर और पृ०२४३ । पाच । प्रस्सी से पाँच कम । पचायना-सज्ञा पुं० [ म० पञ्चानन ] सिंह । उ०-कोइक काल पचहत्तर'-सा पु० मत्तर और पांच के जोडने से बननेवाली अभूत के पचायन भारे । --पृ० ग०, २४ । ३४५ । मरया या अक जो इस प्रकार लिखा जाता है-७५ । पचार-संज्ञा पुं० [हिं० पच्चर ] बाँस या लकडी का वह छोटा पचहत्तरों-[वि. पचहत्तर+वाँ ( प्रत्य॰)] गिनने में पचहत्तर डहा जो जूए मे बाईं ओर होता है और सीढी के डहे की के स्थान पर पड़नेवाला । क्रम में जिसका स्थान पचहत्तर तरह उसके ढांचे मे दोनो श्रोर ढुका रहता है । पर हो। पचारना -क्रि० स० [स० प्रचारण ] किसी काम के करने के पचहरा-वि० [हिं० पांच + हरा ] १ पांच परतों या तहोंवाला। पहले उन लोगो के बीच उसकी घोषणा करना जिनके विरुद्ध पांच बार मोला या लपेटा हुमा । पाँच प्रावृत्तियोवाला। वह किया जानेवाला हो। ललकारना । जैसे, हाँक पचारकर २ पांच वार किया हुआ (अप्रयुक्त )। कोई काम करना। उ०-कोप कीन पगुर कुवर हके वीर पचा-सा मी [ न० ] पकाने या पकने की क्रिया [को०] । पचार । -प० रासो, पृ० १४२ । पचानक-मज्ञा पु० [देश॰] एक पक्षी जिसका शरीर एक वालिश्त पचावा-सज्ञा पु० [हिं० पचना+प्राव (प्रत्य॰)] पचने की क्रिया लवा होता है। इसके डैने और गर्दन काली होती हैं। या भाव। दक्षिण भारत और बगाल इसके स्थायी आवासस्थान हैं पर पचास'-विस० पञ्चाशत , प्रा० पञ्चासा] चालीस और दस । अफगानिस्तान और बलूचिस्तान में भी यह पाया जाता है। चालीस से दस अधिक । साठ से दस कम । पचाना-क्रि० स० [हिं० पचना] १ पचना का सकर्मक रूप । पचास-सा पुं० वह सख्या या प्रक जो चालीस और दस के जोड पकाना । आंच पर गलाना । २ खाई हुई वस्तु को जठराग्नि से बने। चालीस और दस की पख्या या प्रक जो इस प्रकार की महायता से रसादि मे परिणत कर शरीर में लगने योग्य लिखा जाता है-५० । वनाना। जीणं करना। हजम करना जैसे,-तुम चार चपातियां भी नहीं पचा सकते । पचासा-वि० [हिं० पचास+चों (प्रत्य॰) ] गणना में पचास के स्थान पर पडनेवाला। संयो क्रि०-जाना ।- डालना।-लेना। ३ समाप्त या नष्ट करना। जैसे, वाई पचाना, मोटाई पचाना पचासा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पचास] १ एक ही प्रकार की पचास वस्तुओ का समूह । जैसे, पजनेस पचासा (पचास पद्यो का क्रि० प्र०-डालना ।-देना। समूह ) । २. जेलखाने का घटेा । घडियाल । उ०-बजे पर पचासा तीन ठे रोटिय के रहिगे आसा रामा। -प्रेमघन०, ३ विसी की कोई वस्तु अनुचित या अवैध उपाय से हस्तगत कर सदा अपने अधिकार मे रखना। पराए माल को अपना कर भा० १, पृ० ३६०। लेना । हजम कर जाना । उगलने का उलटा। जैसे,—क्सिी पचासी'-वि० [म० पञ्चाशीति, प्रा० पंचासीई, पच्चासी ] अस्सी का माल चुगना सहज है पर पचाना सहज नहीं है। और पाँच । अस्सी से पांच अधिक । पांच पर अस्सी। सयो० कि०--जाना । -डालना। -लेना। पचासो-सज्ञा पुं० वह सख्या या अक जो अस्सी और पांच के जोड ४ अवैध उपाय मे हस्तगत वस्तु को अपने काम मे लाकर लाभ मे बने । अस्सी और पांच के योग की फलस्वरूप सख्या या उठाना । जमे,-ब्राह्मण का धन है, ले तो लिया पर तुम अक जो इस प्रकार लिखा जाता है-८५ । पचा न सकोगे । ५ अत्यधिक परिश्रम लेकर या क्लेश देकर पचासीवा-वि० [हिं० पचासी+वाँ (प्रत्य॰)] गणना में पचासी के शरीर मस्तिष्क प्रादि को गलाना, सुखाना या क्षय करना । स्थान पर पड़नेवाला । जो क्रम मे पचासी के स्थान पर हो। जैसे,—(क ) तपस्या करके देह पचा डाली। (ख ) पचि-पशा मी [ स०] १ पकाने की क्रिया या भाव । पाचन । बेवकूफ से बहस करके कौन व्यर्थ माथा पचावे? २ अग्नि । पाग। सयो० कि०-ढालना । --देना। पचित - वि० [सं० पचित ( = पचा हुश्रा, अच्छी तरह घुलामिला ६ एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ को अपने आपमे पूर्ण रूप से हुआ)] १ पच्ची किया हुआ । जहा हुआ। बैठाया हुमा लीन कर लेना। खपाना । जैसे,—यह चावल बहुत घी ( क्व० ) । उ०-हरी लाल प्रवाल पिरोजा पगति बहुमरिण पचाता है। पचित पचावनो।-सूर ( शब्द०)। २. भली भांति पचा पादि।