देवता । प्रश्नकथा ३२०३ प्रसंख्यान क्रि० प्र०-करना ।होना । प्रश्नोपनिपद्-सज्ञा सी० [ मं०] एक उपनिषद् । विशेष ० 'प्रश्न'-४॥ २ वह वाक्य जिमसे कोई बात जानने की इच्छा प्रकट हो । सवाल । पूछने की बात । ३ विचारणीय विषय । ४. एक प्रश्रब्धि-मज्ञा स्त्री० [सं०] विश्वास । भरोसा को०] । उपनिषद् । प्रश्रय'-सज्ञा पुं॰ [ मं० ] शिथिलता । ढिलाई । ढीलापन [को०] । विशेष-यह अथर्ववेदीय उपनिषद् मानी जाती है। इसमें ६ प्रश्रय-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. प्राश्रयस्यान । २ टेक । सहारा । प्रश्न हैं और प्रत्येक प्रश्न के सात से सोलह तक मंत्र हैं। प्राधार । ३ विनय । नम्रता । शिष्टता। ४ स्नेह । प्रणय । सब मिलाकर ६७ मंत्र हैं। इसमे प्रजापति से सृष्टि की उत्पत्ति अनुराग (को०)। ५ महाभारत में वर्णित धर्म से उत्पन्न एक का विषय अलंकारो द्वारा बताया गया है और अद्वैत मत निरूपित हुआ है । प्रथम प्रश्न कात्यायन जी करते हैं कि यह प्रश्रयणा-सज्ञा पुं० [स] सौजन्य । शिष्टाचरण । विनय । नम्रता। प्रजा कहाँ से उत्पन्न हुई। इसका उत्तर विस्तार से दिया दे० 'प्रथय। गया है । दूसरा प्रश्न भार्गव वैदमि का है कौन देवता प्रजा प्रश्रयो-वि० [ म०प्रश्रयिन् ] १ शिष्ट । सुजन । भलामानुस । २ का पालन करते हैं और कौन अपना वल दिखाते हैं। इसके शात । नम्र । विनीत । उत्तर में प्राण नाम का देवता बडा बताया गया है क्योकि प्रश्रवण-मज्ञा पुं० [ स०] रामायण के अनुसार एक पर्वत । उसके बल से सब इद्रियाँ अपना अपना कार्य करती हैं। तीसरा प्रश्न पश्वलायन जी करते हैं कि प्राण किग प्रकार प्रश्रित-वि० [ स०] विनीत । वहा है और किस प्रकार उसका सबंध वाह्य घोर अतरात्मा प्रश्लथ-वि० [म.] १ ढीलाढाला। शिथिल । २ शक्तिहीन । से है। चौथा प्रश्न सौर्यायणी गार्य ने किया है कि क्लात (को०] । पुरुषों में कौन सोता है. कौन जागता है, कौन स्वप्न देखता प्रश्लिष्ट-वि० [म०] १ मिलाजुला । २ सधिप्राप्त । ३. विचारयुक्त । है, कौन सुख भोगता है। उत्तर में पुरुप की तीनों अवस्थाएं युक्तियुक्त । सयुक्तिक (को०)। दिखाकर आत्मा सिद्ध की गई है। पाँचवाँ प्रश्न शैव प्रश्लेष-सज्ञा पुं० [सं०] घनिष्ट सवध । २. सघि होने मे स्वरो सत्यकामा ने श्रोकार के अर्थ और उपासना के सबध में किया का परस्पर मिल जाना । है । छठा प्रश्न सुकेशा भरद्वाज का है कि सोलह कलापोवाला प्रश्वास-सच्चा पु० [स०] १ वह वायु जो नथने से बाहर निकलती है। बाहर पाती हुई सांस । २ वायु के नथने से बाहर ५ भविष्य की जिज्ञासा । ६. किसी न थादि का कोई छोटा प्रश निकलने की क्रिया। (को०) । ७. दे० 'वैदल' । प्रष्टव्य-वि॰ [ मं०] १ पूछने योग्य । २ पूछने का। जिसे पूछना प्रश्नकथा-सञ्चा गे० [सं०] ऐसी कहानी जिसमें प्रश्न हो [को०] । हो । जैसे, प्रष्टव्य वात । प्रश्नदूती-सशा स्त्री॰ [सं०] पहेली। वुझौवल । प्रष्टा-वि० [ स० प्रष्ट्ट ] पूछनेवाला । प्रश्नकर्ता । प्रश्नपत्र-मज्ञा पुं० [सं० प्रश्न + पत्र ] वह पत्र जिसपर परीक्षाथियो प्रष्टि'-सज्ञा पु० [सं०] १ वह घोडा या बैल जो तीन घोडो के रथ से पूछे जानेवाले प्रश्न पकित रहते हैं । परचा । या तीन वैलो की गाडी में प्रागे जोता जाता है। २ दाहिनी पोर का घोडा या वैल । ३ तिपाई। प्रश्नवादी-सज्ञा पुं॰ [ स० प्रश्नवादिन् ] ज्योतिषी [फो०) । प्रश्नविवाक-सज्ञा पुं० [सं०] १. शुक्ल यजुर्वेदसहिता के अनुसार प्रष्टि:-पि० पास खडा हुपा । पास का । पार्श्वस्थ । प्राचीन काल के विद्वानो का एक भेद जो भावी घटनामो के प्रष्ठ'-वि० [म.] १ अग्रगामी । अगुवा । २ मागे की ओर विषय में प्रश्नो का उत्तर दिया करते थे । २. पच । सरपच । स्थित (को०)। ३ प्रधान । प्रमुख । श्रेष्ठ (को॰) । यौ०-प्रप्ठवाह = कृषि कर्म मे शिक्षित युवा वैन । प्रश्नव्याकरण-सचा पुं० [सं०] जैनियो के एक शास्त्र का नाम । प्रष्ठ-प्रव्य० [सं० पृष्ठ ] पीछे। उ०-श्री गुरु मेरे इष्ट प्रष्ठ प्रश्नातीत-वि० [स०प्रश्न+ अतीत ] जिससे प्रश्न न किया जा यौरे पहिचानू।-नट०, पृ०१० । सके। जिसके पास प्रश्न न पहुँच सके ।-उ०-माज तुम नरराज प्रश्नातीत ।-साकेत, पृ० १६६ । प्रष्ठौही- सज्ञा स्त्री० [स०] वह गाय जो पहले पहल गाभिन प्रश्नि-सचा पुं० [सं०] १ जलकुमी । २ महाभारत के अनुसार प्रसख्या-तशा रखी० [स० प्रसरया] १ सब संम्यायो का योग । एक ऋषि। जोड । कुल । मीजान | टोटल । २. चिता । मनन । प्रश्नी-वि० [स० प्रश्निन् ] प्रश्न पूछनेवाला । जिज्ञासु [को०] । प्रस ख्यान-वशा पुं० [२० प्रसइयान] १ सम्यक् ज्ञान । सत्य प्रश्नोत्तर-सहा पु० [सं०] १ सवाल जवाब। प्रश्न घोर उत्तर । ज्ञान । २ पात्मानुसवान | ध्यान । ३ गणना (को०) । ४ सवाद । २ पूछताछ। ३ वह काव्यालकार जिसमें प्रश्न और प्रसिद्धि । ख्याति (को०)। ५ प्राप्ति । उपलब्धि । मदा- उत्तर रहते हैं। पुरुष कौन है। यगी (को०)।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४९४
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