पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४९६

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प्रसतान ३२०५ प्रसरणशील प्रतिरात्र यज्ञ में षोडशी नामक सोमरसपूर्ण पात्र को ग्रहण प्रसन्नसलिल-वि० [स०] जिसका जल निर्मल या स्वच्छ हो (को०)। न करे। प्रसन्नाध-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रसन्नान्ध] घोहे का एक रोग जिसमें प्रसतान+-सचा पुं० [स० प्रस्थान ] दे० 'प्रस्थान' । उ०- उसकी आँख देखने में तो ज्यो की त्यों रहती है पर उसे तम मन जाणियो प्रसतान मृत दसशिर तणो।-रघु० रू०, दिखाई नही पहता। यह प्रसाध्य रोग है और अच्छा नहीं पृ०१२६। होता। प्रसताव-सज्ञा पुं० स० प्रस्ताव ] दे० 'प्रस्ताव' । उ०-प्रसताव प्रसन्ना-ज्ञा स्त्री० [सं०] १ वह मद्य जो खीचने मे पहले उतरता भाव तिन कहि उचार । जोगिनिय बोल पादीतबार । पहराइ है । वैद्यक में इसे गुल्म वात, अर्थ, शूल और कफनाशक वेस बदलाय भेस । इम कियो राजद्वारह प्रवेस । -पृ० रा०, माना है। २ प्रसन्न करना (को०)। ११३७३। प्रसति-सज्ञा स्त्री० [सं० प्रसूति ] प्रसृति । प्रसार । फैलाव । प्रसन्नात्मा'-वि० [सं० प्रसन्नारमन् ] जो सदा प्रसन्न रहे। प्रसन्नात करण | पानंदी। उ०-प्रति कूच कूचनि प्रसति, चाहुमान न करे विषम ।- पृ० रा०,१६४१५६ । प्रसन्नात्मा-सज्ञा पुं० विष्णु । प्रसत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १. प्रसन्नता । २ निर्मलता । शुद्धि । प्रसन्नितgf-वि० [सं० प्रसन्न + हिं० इत (प्रत्य॰)] प्रानदित । प्रसत्वरी-सशा सी० [स०] प्रतिपत्ति । प्राप्ति । हर्षित । खुश । उ०—निशि दिन करेहु नयन लखि काजा । प्रसत्वा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० प्रसत्वन् ] १. धर्म । २ प्रजापति । जाते रहै प्रसन्नित राजा ।—जायसी (शब्द०)। प्रसह-सञ्ज्ञा पु० [ स० प्रति+शब्द, प्रशब्द ] प्रतिध्वनि । जोर प्रसन्नेरा-सज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की मदिरा । की आवाज । उ०-सुनिव सूर नर हक्क धपक बज्जी प्रसभ'–सचा पुं० [स०] जबर्दस्ती । बलात्कार [को॰] । चावद्दिसि । नरन सद्द कानन प्रसद्द (सिंह) किन्नो सु प्रसभर-क्रि० वि० १ बलपूर्वक । हठात् । २ अत्यधिक । ३. साग्रह । क्रोध प्रसि ।-पृ० रा०, १७।६ । पुन पुनः । सनिबंध [को०] । प्रसन- वि० [सं० प्रसन्न ] दे० 'प्रसन्न' । उ०--(क) प्रसन भयो प्रसभदमन-सञ्चा पु० [सं०] बलपूर्वक दमन करना । बलात् वशवर्ती किधी सुदर स्यामा, सदा बसौ वृंदावन घामा । नद० कर लेना [को०] । ग्र०, पृ० १६२ । (ख) सब कारज सिधि लहै, प्रसन जासों प्रसभहरण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] जवर्दस्ती छीन लेना या हर जग बदन । पोद्दार मभि० ग्र०, पृ० ४२७ । लेना [को॰] । प्रसन्न'—वि० [सं०] १ ससुष्ट । तुष्ट । २ खुश । हर्षित । प्रफुल्ल प्रसयन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १. बांधने की रज्जु । २ जाल । फद को०] । ३ अनुकूल । उचित । ४. निर्मल । स्वच्छ । ५. शात (को॰) । प्रसर-सज्ञा पुं॰ [स०] १ आगे बढना । बढना । विस्तार । २. ६ कृपालु (को०)। फैलना । फैलाव । प्रसार । ३. दृष्टि का फैलाव । प्राख की यौ०-प्रसानकल्प । प्रसन्नजल =प्रसन्नसलिल | प्रसन्नमुख = पहुँच । ४ वेग । तेजो। ५ समूह । राथि । ६ वैद्यक शास्ला- प्रसन्नवदन । प्रसन्नवदन । प्रसन्नसलिन । नुसार वात पित्तादि प्रकृतियो का सचार या घटाव बढाव । प्रसन्न-सज्ञा पुं० महादेव । ७ व्याप्ति । ८ प्रकर्ष । प्रधानता । प्रमाव । ६ युद्ध । १० प्रसन्नर-वि० [फा० पसंद ] मनोनीत । पसद । उ०-(क) नाराच नामक अस्त्र । ११ प्रलय । विनाश (को०) । १२ उनके इस कर्म को विद्वान लोग प्रसन्न नहीं करते। -दयानद वीरता । साहस । १३ बाढ । बढिया । १४ एक प्रकार का (पन्द०) । (ख) मैं इस बात को मानता हूँ पर यह पूछता पौधा जो भूमि के ऊपर फैलता है। १५. अवकाश । अवसर हूँ कि क्या कोई जो अंगरेजी जानता हो इस बात को प्रसन्न (को०) । १६ एक प्रकार का नृत्य (को०)। करेगा कि केवल एक लिपि प्रचलित होवे? कभी नहीं।- प्रसरण-सञ्चा पु० [ स०] [वि॰ प्रसरणीय, प्रसरित ] १, मागे सरस्वती (शब्द०)। बढ़ना। २ खिसकना । सरकना। ३ फैलना। फैलने की प्रसन्नकल्प-वि० [स०] १ प्रसन्न के तुल्य या समान । शात तुल्य क्रिया या भाव । फैलाव । ४. ध्याप्ति । ५. विस्तार । ६. २. सत्यप्राय [को०] । उत्पत्ति । ७ अपने काम मे प्रवृत्त होना। ८ स्वभाव की प्रसन्नता-तशा पी० [सं०] १ तुष्टि । सतोष । २. प्रफुल्लता । मधुरता (को०)। ६. सेना का लूटपाट के लिये इधर उधर हर्ष । मानद । ३ अनुग्रह । कृपा। प्रसाद । ४ स्वच्छता । निर्मलता | शुद्धि । ५. सुस्पष्टता । व्यक्तता (को॰) । प्रसरणशील-वि० [सं० प्रसरण + शोल] [ वि० सी० प्रसरण प्रसन्नवदन-वि० [सं०] जिसका मुख प्रसन्न हो। जिसके चेहरे शीला ] जो फैन सके । फैलनेवाला । उ०—जिसको प्रसरण- से प्रसन्नता टपकती हो। उ०-हे सखा, विभीपण बोले शीला प्रतिभा विभूति से विवर्तमान । -स पूर्णानद ममि० माज प्रसन्नवदन ।-अपरा, पु०४४ । ग्र०, पृ० ११२ । फैलना।