पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५००

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प्रस्त २२० प्रस्तरिणी लीन । तत्पर । नियुक्त । ६. प्रचलित । ७. इद्रियलोलुप । लंपट । ८ तीव्र । तेज (को०)। ६. पका हुआ । पक्व (को०) । १०. प्रदशित । व्यक्त किया हुआ (को०)। ११. उपयुक्त अर्थ जाननेवाला । सूक्ष्मार्थगामी (को०) । १२ लवा [को०] । प्रसृत-सज्ञा पुं० १. गहरी की हुई हथेली। अर्धाजलि । २. हथेली भर का मान । पसर । दो पल का मान । प्रसृतज-सञ्ज्ञा पु० [स०] महाभारत के अनुसार एक प्रकार का पुत्र जो व्यभिचार से उत्पन्न हो । जैसे, कुड और गोलक । प्रसृता-सज्ञा स्त्री [सं०] जांघ [को०] । प्रमृति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. फैलाव । विस्तार । २. सतति । संतान । ३. अर्धाजलि । गहरी की हुई हथेली। ४. सोलह तोले के बराबर का एक मान । पसर । ५. आगे बढना । अग्रगामिता (को०)। प्रसृत्वर-वि० [सं०] चारो मोर फैलनेवाला या फैला हुमा [को०] । प्रसृष्ट-वि० [सं०] १ उत्पन्न । २. त्यक्त । परित्यक्त । ३. निबंध । स्वच्छद । प्रतिबधहीन (को०)। प्रसृष्टा -सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. युद्ध का एक दांव । २. पगुलियाँ जो फैलाई गई हो। फैलाई हुई उंगलियाँ (फो०) । प्रसेक-सचा पुं० [सं०] १. सेचून । सींचना । २ निचोड । निसोथ । ३. छिडकाव । ४ द्रव पदार्थ का वह प्रश जो रस रसकर निचुडे या टपके । पसेव । ५ एक असाध्य रोग। पेशाब के साथ मनी पाने का रोग । जिरियाने । (सुश्रुत)। चरक के अनुसार मुंह से पानी छूटना और नाक से श्लेष्मा गिरना। ७ वमन । के (को०) । ८. नुवा या चमचा का अग्नभाग वा कटोरी (को०)। प्रसेकी-सज्ञा पुं० [सं० प्रसेकिन ] सुथ त के अनुसार एक रोग का प्रण जिसमे से पीप निकलता रहे [को०] । प्रसेद-सचा पुं० [सं० प्रस्वेद ] पसीना। उ०-(क) हरि हित मेरो कन्हैया । देहरी चढ़त परत गिरि गिरि करपल्लव जो गहत है री मैया । भक्ति हेतु यशुदा के माए चरण धरणि पर घरेया। जिनहि चरण छलिबो बलि राजा नखप्रसेद गगा जो वहैया ।-सुर (पाब्द०)। (ख) देखत तेरे लेत है तन प्रसेद सो बोर । या मे तेरी खोर कहु या कछु मेरी खोर ?. रसनिधि ( शब्द०)। प्रसेदिका तशा स्त्री० [सं०] छोटी वाटिका | प्रसौदिका [को०] । प्रसेन-सा पु० [सं०] दे० 'प्रसेनजित' । प्रसेनजित-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] भागवत् के अनुसार सत्यभामा के पिता सत्राजित् के एक भाई का नाम । विशेष-प्रसेनजित के पास एक मणि 'स्यमंतक' नाम की थी (विशेष देखिए स्यमतक शब्द)। जिसे पहनकर वह एक दिन शिकार खेलने गया। वहीं एक सिंह उसे मार मणि लेकर चला । मार्ग में जाबवान् ने सिंह को मार मणि छीन ली। सत्राजित् ने प्रसेनजित् के न आने पर कृष्णचद्र पर यह पपवाद लगाया कि उन्होंने प्रसेन को मणि के लोम से मार ढाला। कृष्ण चद्र इस अपवाद को मिटाने के लिये जगल में गए । उन्होने मार्ग में प्रसेन और उसके घोडे को मरा पाया। प्रागे चलने पर सिंह भी मरा हुआ मिला । हूढते हुए वे भागे वढे और एक गुफा में उन्हें जाववान् मिला। उसने अपनी कन्या जाववती को मणि के साथ कृष्णचद्र को अर्पित किया। कृष्णचंद्र मणि और जाववती को लेकर पाए और उन्होने सत्राजित् को मणि देकर अपना कल क मिटाया। प्रसेव-सज्ञा पु० [स० ] दे० 'प्रसेवक' । प्रसेवक-सज्ञा पु० [सं०] १. चीन की तूवी । २ सूत की थैली। थैला । ३ थैली बनानेवाला पुरुष । ४ चमड़े का थैला या कुप्पी (को०)। प्रस्कदन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रस्कन्दन] १ झपट | फलांग । २. वह जगह जहाँ से फलांग ली जाय (को०) । ३ शिव । महादेव । ४ विरेचन । जुलाव । ५. प्रतीसार । प्रस्कदिका-सज्ञा स्त्री० [ स० प्रस्कन्दिका ] १ पतीसार । २. विरे- चन । जुलाब [को०] । प्रस्कएव-सज्ञा पु० [ स०] वैदिक सध्योपासना मे प्रयुक्त सूर्योपस्थान मत्र के एक ऋषि का नाम | प्रस्फन्न'–वि० [सं०] १. पतित । समाज का नियम भग करने- वाला । २ गिरा हुआ । ३. कूदा हुमा (को०)। ४. पराभूत । पराजित । हारा हुमा (को॰) । प्रस्कन्न-सशा पुं० १. घोडे के एक रोग का नाम । विशेष—इस रोग से घोहे की छाती भारी हो जाती, शरीर स्तब्ध हो जाता है और वह चलते समय कुवडे की तरह हाथ, पैर बटोरकर चलता है। २ जातिच्युत व्यक्ति (को०)। ३. वह जो पाप करता हो । पापी मादमी (को०)। प्रस्कुंद-सज्ञा पुं॰ [सं० प्रस्कुन्द ] १. सहायता । सहारा । अवलब । २. गोल प्राकृति की वेदी [को०) । प्रस्खलन-सज्ञा पुं॰ [स०] स्खलन । पतन । प्रस्तर-सज्ञा पुं० [सं०] १. पत्थर । २. डाम या कुश का पूला। ३ पत्ते आदि का बिछावन । ४. विछावन । ५. चौदी सतह । सम तल । ६. धमहे की थैली। ७. मरिण। रत्न (को०)।८ प्रस्तार। एक ताल का नाम । १० अथ मादि का परिच्छेद (को०)। प्रस्तरण-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ बिछाना । फैलाना । २ विछावन । विछोना । ३ आसन । पीठ (को॰) । प्रस्तरणा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ पासन । पीठिका । २ शय्या [को॰] । प्रस्तरभेद-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] पखान भेद प्रस्तरयुग-वशा पु० [ सं० प्रस्तर+युग ] ऐतिहासिक क्रम में वह समय जब मानव ने पत्थरो के प्रौजार तथा अन्य सामान बनाकर उनका उपयोग करना साखा था। उ०-उन युग- स्थितियो का माज दृश्यपट परिवर्तित । प्रस्तरयुग की सभ्यता हो रही प्रव प्रवसित । -ग्राम्या, पृ०६० । प्रस्तरिणी-सच्चा सी० [सं०] १ श्वेत दूर्वा । २ गोजिह्वा । 1