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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५१३

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प्राण ३२२२ प्राधन प्राण पाना या प्राणों में प्राण प्राना = घबराहट या भय कम (शब्द०)। प्राण रग्जना%D (१) जिलाना । जीयन देना । होना। चित्त कुछ ठिकाने होना । हवास ठिकाने होना। (२) जान बचाना । जीवन की रक्षा करना । प्राण खेना- प्राण या प्राणों का गले तक थाना = मरने पर होना। मार डालना । जान सेना । उ०-वसनिफेत सामेत पत्यो मरणासन्न होना। उ०-ठाने अठान जेठानिनहूँ सब लोगन निग विजय हेतु बढ़ि । प्रेतराज गम ममर गेत पर प्राण सेत हूँ प्रकलंक लगाए । सासु लरी गहि गाँस खरी ननदीन के चढ़ि। -गोपाल (पाब्द०)। प्राण हरना = (१) गारगा। बोल न जात गिनाए । एती राही जिनके लए मैं सखी ते फहि मार डालना। 10-कौन के प्राण हरे हम, योग फानन पौने कहाँ विलमाए। प्राय गले लगे प्राण पे कैसेहूं कान्हर लागि मतो पहें मन ।-(मन्द०)। (२) पधिक दुख देना। ग्राज प्रजो नहिं पाए।-(शब्द०)। प्राण या प्राणों का मुंह उ०-मिलत एक दारण दुख देही। बिछुरत एक प्राण हरि को पाना या चले थाना = (१) मरने पर होना। (२) प्रत्यत लेहीं ।-तुलगी (शब्द०)। प्राण हारना = (१) मर जाना । दुख होना। बहुत अधिक हार्दिक कष्ट होना। जैसे,-हाय उ०-सब जल तजे प्रेम के नाते । समुभान मीन नीर हाय इसकी बातो से तो प्राण मुंह फो चले पाते हैं और पी वातें तजत प्राण हठि हारत । जानि गुरग प्रेम नहि मालूम होता है कि ससार उलटा जाता है। हरिश्चन्द्र त्यागत यदपि व्याप पर मारत ।-पूर (माम्द०) । (२) (गन्द०)। प्राण या प्राणों के लाले पडना = प्राणो की साहस टूट जाना। उत्साह न रह जना । प्राण या प्रार्थों मे चिता होना। प्राण रक्षा की परवा होना । जैसे,-ब्राहमणो हाथ धोना = जाग देना। मर जाना। प्राण मा पाना :- के प्राणो के लाले पड़ रहे थे ।-प्रेमघन॰, पृ० ३०६ । उत्साहित होना । सजीव होना । प्राण खाना बहुत तग करना । बहुत सताना । प्राण घटना, १० यह जो प्राणों के समान प्यारा हो। परम प्रिय । ११. जाना या निकालना = जीवन का मत होना। मरना। प्राण वैवस्वत मन्वतर के सप्तपियो में से एक एपि। १२ हरिवण डालना = जीवन प्रदान करना। जीयन का संचार फरना । के अनुसार घर नाममा वा के एक पुत या नाम । १३ यकार प्राण त्यागना, तजना या छोडना = मरना । प्राय देना = वर्ग। १४ एफ साम का नाम । १५ ग्रह्म। ११. प्रा।। मरना। किसी पर या किसी के ऊपर प्राण देना=(१) १७ विष्णु। १८. पाता के पुत्र का गाम । १६ पनि। किसी के किसी काम से बहुत दुखी या रुष्ट होकर मरना । प्राग । २० एक गप ट्रम्प (पो०)। २१ मूलाधार में रहने- (२) किसी को बहुत अधिक चाहगा। प्राणो से भी वाली वायु। बढ़कर चाहना। प्राण नहों में समामा - भपभीत होना । प्राणप्रधारणक्षा पुं० [सं० प्राण+माधार] , यह पो श्राशकित होना । प्राण निकलना = (१) मर जाना । प्राणों के समान प्यारा हो । पहुत प्रिय व्यक्ति । ७०-(क) मरना। (२) भय से होश हवास जाता रहना। घबरा अव ही पौर की और होति वटु लागे वाण, ताते मैं पाठी जाना । भयभीत होना । प्राण पयाम होगा = प्राण निकलना लिखी तुम प्राणप्रपारा ।—सूर (गन्द०)। (स) अपने ही उ०-प्रारण पयाय होत को राखा। कोयल पौ घातक मुख गेह मधुपुरी पावन देवफी प्राणप्रपारा हो। पसुर मारि भाखा । —जायसी (शब्द०)। प्राणों पर आ पड़ना = जीवन सुर साप बढ़ावन अमजन सुखदातारा हो। —सूर (शम्द०)। फा सकट में पहना। जान जोखिम होना। घड़ी कठिनाई २. पति । स्वामी। पडना। उ०-प्रम यहि जाय मा कहूँ यो पाई पाखिन ते, प्राणपधार'-वि० प्रिय । उमगि अनोखी घटा बरसति नेह की। कह पद्माकर चलावै प्राणक-सया पु० [म०] १ जीवफ वृक्ष । २ जीव । प्राणी । ३ खान पान की को, प्राणन परी है पानि दहसति देह की एक प्रकार का सुगधित गोंद । बोल (को०)। पद्माकर (शब्द०)। प्राण या प्राणों पर खेलना = ऐसा प्राणकर-वि० [स०] जिससे शरीर का बल बढ़े। शक्तिवर्तक । काम करना जिसमें जान जाने का भय हो। प्राणों को पौष्टिक । सपाट मे डालना। उ०-तुम तो अपने ही मुख झूठे । प्राणकष्ट-मज्ञा पुं० [सं०] वह दु ख जो प्राण निकलते समय होता हमसो मिले वरष द्वादस दिन चारिफ तुम सो है। मरने के समय की पीटा। तूठे । सूर अापने प्राणन खेल ऊधो सेख रूठे । —सूर (शब्द०) प्राण था प्राणों पर बीतना = (१) जीवन स कट में प्राणकात-गज्ञा पुं॰ [ म० प्राण कान्त ] १ प्रिय व्यक्ति। प्यारा। पडना । जान जोखिम होना । जैसे,-ऐसे समय जब कि २ पति । स्वामी। क्षण क्षण केटो के प्राण पर बीत रही है ।-तोताराम, प्राणकृच्छ्र-पशा पु० [ स०] वह कष्ट जो मरने के समय होता है । (शब्द०)। (२) जान निकल जाना। मर जाना। प्राण प्रारणकष्ट । घचामा = (१) जीवन की रक्षा करना। जान बचाना । (२) प्राणग्रह-सज्ञा पुं॰ [सं०] नासिका । नाक । जान छुडाना । पीछा छुहाना । प्राण मुट्ठी में या हथेली पर प्राणघात-राक्षा पुं० [सं०] मार डालना। हत्या । वध । लिए रहना= जीवन को कुछ न समझना। प्राण देने पर प्राणघातक-वि० [म.] प्राण सेनेवाला । मार डालनेवाला [फो०] । उतारू रहना। जैसे,—रात दिन लीलायश गाती हैं और प्राणघ्न-वि० [सं०] ( वह विष प्रादि ) जिससे प्राण निकल अवधि फी पास किए प्राण मूठी में लिए हैं । लल्लू जायं । प्राण सेनेवाला (जहर मादि)।