पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५१७

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प्राणापान २२२६ प्रात: प्राणापान--सा पु० [स०] १. प्राण और अपान वायु । २. प्राणि-सना पु० [ म०प्राणिन, प्राणी ] 'प्राणी' । अश्विनीकुमार । प्राणिक-वि० [ स० प्राण + इक (प्रत्य॰)] प्राण सवधी। प्राणों प्राणावाघ-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] प्राणस शय । की। उ०-भौतिफ प्राग नहीं यह, कायिक भाग नहीं यह प्राणायतन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] प्राणो के निकलने का प्रधान स्थान प्राणिक प्राग नही, न मानसिक आग सही यह । -प्रतिमा, या मार्ग। पृ० ८६ विशेष—याज्ञवल्क्य सहिता मे दोनों कान, नाक के दोनो छेद, दोनों प्राणिजात-सज्ञा पुं० [सं०] पशु वर्ग । जीव जगत (को०] । पाखें, गुदा, लिंग और मुख के द्वार ये प्राण निकलने के नौ प्राणित-वि० [स०] जो जीवित रखा गया हो। जिसमें प्राण प्रधान मागं गिनाए गए हैं। इन्हीं मार्गों से प्राणियों के शरीर सचार किया गया हो [को०] । से मृत्यु के समय प्राण निकलते हैं । प्राणियुत-संज्ञा पुं॰ [स०] धर्मशास्त्रानुसार वह बाजी जो मेढे, प्राणायन-सज्ञा पुं॰ [सं० ] ज्ञानेंद्रिय [को०] । तीतर, घोडे आदि जीवो की लडाई या दौड प्रादि पर प्राणायाम-सा पुं० [ स०] योग शास्त्रानुसार योग के भाठ लगाई जाय । प्रगों में चौथा । पर्या०-समाह्वया । साहय । विशेष-श्वास और प्रश्वास की गति के विच्छेद को पतजलि प्राएिपीडा-सञ्ज्ञा स्री० [स० प्राणिपीडा ] पशुप्रो को मताना [को॰] । दशन मे प्राणायाम माना है। बाहर की वायु को भीतर ले प्राणिमाता-सज्ञा स्त्री० [सं० प्राणिमातृ ] गर्भदात्री नाम का क्षुप । जाना श्वास और भीतर की वायु को बाहर फेंकना प्रश्वास प्राणियोधन-सज्ञा पुं० [सं०] पशुपों को लडाना [को०] । है । इन दोनो प्रकार की वायुनों की गतियो को प्रयत्नपूर्वक प्राणिवध-तज्ञा पु० [स०] जीवहिंसा । धीरे धीरे कम करने का नाम प्राणायाम है। इसकी तीन वृत्तियां मानी गई हैं-ग्राह्य, प्राभ्यतर और स्तभ। इन्ही प्राणिहिंसा-सला स्त्री॰ [ म० ] पशुओं को चोट पहुंचाना या तीनों को रेचक, पूरक और कुमक भी कहते हैं । भीतर की मारना [को०] । वायु को बाहर फेंकना रेचक, बाहर की वायु को भीतर ले प्राणिहिता-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. पादुका । खडाऊँ । २. जूता । जाना पूरक और भीतर खीची हुई वायु को उदरादि में भरना प्राणी'-वि० [ स० प्राणिन् ] प्राणधारी। जिसमें प्राण हो । कुभक कहलाता है । इसके अतिरिक्त एक पौर शक्ति है जिसे प्राणी-सज्ञा पुं० १. जंतु । जीव । २. मनुष्य । ३. व्यक्ति । जैसे, वाह्याभ्यवर विषयाक्षेपी कहते हैं। इसमे श्वास प्रश्वास की तुम्हारे घर मे कितने प्राणी हैं ? बाह्य मोर माम्यतर दोनो वृत्तियो का निरोध फरके उसे प्राणी-सशा सी० पुं० पुरुष या स्त्री । रोक देते हैं। इन चारों वृत्तियो के देश काल और सख्या मुहा०-दोनों प्राणी-दपति । स्त्री पुरुष । के भेद से दीर्घ और सूक्ष्म नामक दो दो भेद होते हैं। योग शास्त्र में प्राणायाम की बड़ी महिमा है। पतजलि ने इसका विशष-किसी किसी प्रात मे पुरुष अपनी स्त्री के लिये और स्त्री भपने पति के लिये 'प्राणी' शब्द का व्यवहार फल यह माना है कि इससे प्रकाश का प्रावरण क्षीण होता करते हैं। है और धारणा में, जो पोग का छठा भग है, योग्यता होती है । प्राण के निरोष से चित्त की चचलता निवृत्ति होती है प्राणीत्य-सज्ञा पुं० [सं० ] कर्ज । ऋण [को॰] । पौर फिर योगी को प्रत्याहार सुगम होता है। योगाभ्यास प्राणेश-सज्ञा पुं० [सं०] [ श्री प्राणेशा] १. पति । स्वामी । के लिये यह प्रधान कर्म माना गया है। इसके अतिरिक्त २ प्यारा । प्रेमी व्यक्ति । ३. वायु (को०) । प्राणायाम सध्या का एक भग है। शास्त्रो मे इसे सर्वप्रथम प्राणेशा-पशा सी० [सं०] १ पत्नी । २ प्रिया। और सर्वश्रेष्ठ तप माना है और कहा गया है कि प्राणायाम प्राणेश्वर-सज्ञा पुं० [स०] [सी० प्राणेश्वरी ] १ पति । स्वामी । करने से सब प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। २ प्रेमी व्यक्ति । बहुत प्यारा । ३. वायू (को०)। प्राणायामी-वि० [सं० प्राणायामिन् ] प्राणायाम करनेवाला । जो प्राणेश्वरी-सञ्ज्ञा सी० [स०] १ पत्नी । २ प्रिया। प्राणायाम करे। प्राणोत्क्रमण-सता पुं० [सं०] दे० 'प्राणोत्सर्ग'। प्रणाय्य-वि० [सं०] योग्य । उपयुक्त । प्राणावरोध-संज्ञा पुं० [सं०] प्राण का अवरोध होना। श्वास प्राणोत्सर्ग-सञ्ज्ञा पु० [सं०] प्राण जाना । मृत्यु (को०] । का रुकना। प्राणोद्बोधन-पहा पु० [सं० प्राण + उद्बोधन] प्राणो को उद्बुद्ध प्राणासन-यज्ञा पु० [स०] तत्रानुसार एक प्रकार का मासन । फरना या प्रेरणा देना । उ०—यह जमाना राष्ट्र के लिये प्राणाहुति-सचा सी० [सं०] वे पांच ग्रास जो भोजन के पूर्व प्राणोद्बोधन का था। -सुखदा, पृ० २६ । 'प्राणाय स्वाहा', 'अपानाय स्वाहा', 'ध्यानाय स्वाहा', 'समा- प्राणोपहार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] भोजन । अाहार । खाना । नाय स्वाहा' भोर 'उदानाय स्वाहा' मत्र से खाए जाते हैं। प्रात'--सज्ञा पुं॰ [स० प्रातर् ] सवेरा । प्रभात । तडका । इसे प्राणाग्निहोत्र भी कहते हैं। प्रातः-प्रव्य० सवेरे । तहके । प्रभात के समय [को०] । 1