पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्राप्त काल ३२३१ प्राभाकर व्यक्तियो के प्रति हमारे भावों को तीन भी करता है और प्राप्तिसम-सज्ञा पु० [सं०] न्याय में वह प्रत्यवस्थान या आपत्ति उनका ठीक ठीक अवस्थान भी करता है।-रस, जो हेतु और साध्य को ऐसी अवस्था में, जब दोनो प्राप्य पृ०१४६। हों, अविशिष्ट बतलाकर की जाय । प्राप्तकाल-वि० समयप्राप्त । जिसका फाल पा गया हो। विशेष—यह एक प्रकार की जाति है। जैसे, एक मनुष्य कहता प्राप्तजीवन-वि० [स०] जो रोग आदि के कारण मरते मरते वचा है कि पर्वत वह्निमान है, क्योंकि वह बूमवान है, जैसे, पाक- हो। जिसकी नई जिंदगी हुई हो। गृह । इसपर वादी के इस कथन पर कि पर्वत धूमवान है, प्राप्तदोष-वि० [सं०] जिसने कोई दोष या अपराध किया हो । दोषी। क्योंकि वह वह्निमान है जैसे, पाकगृह, प्रतिवादी यह आपत्ति करता है कि जहाँ जहाँ पग्नि है क्या वहाँ धूम सदा रहता है प्राप्तपंचत्व-वि० [सं० प्राप्त पञ्चत्व ] जो परत्व प्राप्त कर चुका अथवा कभी नही भी रहता । यदि सर्वत्र रहता है तो साध्य हो । मरा हुमा । मृत। और साधक में कोई अतर नही, फिर तो धूम अग्नि का वैसे प्राप्तप्रसवा-वि० स्त्री॰ [ स०] (स्त्री) जो बच्चा जनने को हो । ही साधक हो सकता है जैसे अग्नि धूम का। इसे प्राप्तिसम पासन्नप्रसवा [को०] । जाति कहते हैं। प्राप्तबीज-वि० [म०] जो बोया हुमा हो [को॰] । प्राप्त्याशा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] किसी वस्तु की प्राप्ति की आशा । प्राप्तवुद्धि-वि० [सं०] १ चतुर । बुद्धिमान् । २ जो बेहोश २ नाटक की पांच अवस्थामो में से तीसरी मवस्था जिसमें होने के बाद फिर होश में पाया हो । फलप्राप्ति की प्राशा रहती है, पर पाणकाएँ और विघ्न प्राप्तभार-सझा पुं० [सं०] वह जो बोझ ढोता हो (पशु आदि) । वाधाएं भी मार्ग मे भाती हैं। उ०-पागे चलकर उन फल प्राप्तभाव-वि० [स०] १ बुद्धिमान । होशियार । २ सुंदर [को०] । की प्राप्ति की भाशा होने लगती है, जिसे प्राप्त्याशा कहते हैं । प्राप्तभाव-सक्षा पुं० जवान बैल (को०] । -सा दर्पण पृ० १३४ ॥ प्राप्तमनोरथ-वि० [सं०] जिसने अपना लक्ष्य या ईप्सित प्राप्त प्राप्य-वि० [सं०] १ पाने योग्य । प्राप्त करने योग्य । प्राप्तव्य । कर लिया हो [को॰] । २ गम्य । ३ जो पहुंध में हो। जिसतक पहुँच हो सकती हो । प्राप्तयौवन-वि० [सं०] जिसका यौवनकाल पा गया हो । जवान । ४ जो मिल सके। मिलने योग्य । प्राप्तरूप-वि०, सज्ञा पु० [सं०] १ विद्वान् । पडित । २ रूपवान् । प्राप्यकारो-सज्ञा पुं० [स० प्राप्यकारिन् ] इद्रिय जो किसी विषय सुपर । ३ मनोहर । पाकर्षक (को०)। ४ ठीक । उप तक पहुंचकर उसका शन कराती है। युक्त (को०)। विशेष-श्यायदर्शन के अनुसार ऐसी इ द्रिय केवल आँख ही प्राप्ततु-वि० स्त्री० [सं० प्राप्त+ऋतु ] वह कन्या जो ऋतुमती हो है, पर वेदातदर्शन में कहा है कि कान में भी यह गुण है। चुकी हो [को०)। प्राप्यरूप-वि० [सं० ] जिसे प्राप्त करना प्रायः प्रासान हो [को॰] । प्राप्तवर-वि॰ [स०] जिसे वर प्राप्त हो चुका हो। जिसे वरदान प्राबल्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रबलता। तेजी। २ प्रधानता । ३ मिल चुका हो । उ०-अवसन्न भी हूँ प्रसन्न मैं प्राप्तवर, प्रात ताकत । शक्ति (को०)। तव द्वार पर।-अपरा, पृ०२५ । प्राबालिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्रबाल का व्यापार करनेवाला पुरुष । प्राप्तव्य-वि० [सं०] जो मिलने को हो । मिलनेवाला । प्राप्प । प्राप्तव्यवहार-वि० [स०] जो अपना कार्य सम्हालने के योग्य हो प्राबोधक, प्रावोधिक-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ प्रभातकाल । उप- काल । २ वह पुरुष जो राजाओं को उनकी स्तुति सुनाकर गया हो। बालिग (को०) । जगाने के लिये नियुक्त हो । प्राप्तार्थ-वि० [ स०] सफल [को॰] । विशेप-प्राचीन काल में यह काम करने के लिये मगध देश के प्राप्तार्थ-सञ्ज्ञा पुं॰ वह वस्तु जो प्राप्त हो गई हो (को०] । लोग नियुक्त किए जाते थे जिन्हें मागध कहते थे । प्राप्ति-सज्ञा स्री० [सं०] १ उपलब्धि । प्रापण । मिलना । प्राभंजन'-सज्ञा पुं० [म० प्राभञ्जन ] स्वाति नक्षत्र । पहुंच । ३ अधिगम । मर्जन । ४ उदय । ५ अणिमादि पाठ प्राभंजन-वि०१ प्रभजन या वायु देवता सवधी । २ जो वायु प्रकार के ऐश्वयों में से एक जिससे वाछित पदार्थ मिलता है देवता के द्वारा भधिष्ठित हो। मथवा सब इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। ६ फलित ज्योतिष के मनुसार चद्रमा का ग्यारहवां स्थान, जिसे लाभ भी कहते हैं। प्राभजनि-सभा पुं० [स० प्राभञ्जनि] १ हनुमान । २ भीष्म [को०] । ७ भाग्य । ८ व्याप्ति । प्रवेश । प्रवृत्ति । ६ जरासष की प्राभव-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. प्रभुत्व । अधिकार । २ श्रेष्ठता । एक पुत्री का नाम जो कस से ब्याही घी। १०. काम की प्रधानता। पत्नी का नाम । ११ प्राय । पामदनी । १२ मेल । संगति । प्राभवत्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रभुता। प्रभुत्व । २ सर्वप्रधानता । १३ लाभ । फायदा । १४ समिति । सघ । १५ नाटक का विभुत्व (को०] । सुखद उपसदार । फलागम । प्राभाकर-सशा पुं० [सं०] १. वह जो प्रमाकर के मत का मानने