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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५३२

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! प्रीतिय ३२४१ प्रेक्षणीय प्रीतिय-सका सी० [सं०] प्रेम। पदार्थ को कहते हैं जिसकी अग्नि का प्रकोप सहन करने की प्रीतिरीति-सञ्चा सी० [सं०] प्रेमपूर्ण व्यवहार । परस्पर का प्रेम परीक्षा हो चुकी होती है। जैसे, लोहे का फायर ग्रूफ सदुक, सवधा प्रायभाव । प्रूफ, चिमनी, इमारत का फायर प्र.फ सामान । प्रीतिवर्द्वन'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] विष्णु का एक नाम । ग्रूफरीडर-सा पुं० [अ० प्रफ+रीडर ] प्रूफ को पढ़कर अशुधियाँ प्रोतिवर्द्धनर-वि० प्रेम बढ़ानेवाला । मानदवर्धक । दूर करनेवाला । प्रफ पाठक । प्रफ शोधक। प्रीतिवर्धन-राज्ञा पुं० वि० [सं०] दे० 'प्रीतिवद्धन' । प्रम--सज्ञा पुं० [?] सीसे मादि का बना हुमा लट्ट के माकार का • वह यत्र जिसे समुद्र मे डुराकर उसकी गहराई नापते हैं । प्रीतिविवाह-सबा पुं० [स०] प्रेम के आधार पर होनेवाला,विवाह । प्रेम विवाह [को०] । विशेप-यह रस्सी के एक सिरे मे, जिसपर नाग के निशान लगे होते हैं, बाँधकर समुद्र में डाला जाता है। मोर इस प्रीतिस्निग्ध-वि० [सं०] प्रेम के कारण आर्द्र, जैसे, प्रांखें [को०] । प्रकार उसकी गहराई नापी जाती है। कभी कभी इसके नीचे प्रीती-सशा सी० [सं० प्रीति ] दे० 'प्रोति' । उ०--तिनकी तुम के प्रश मे कुछ ऐसी व्यवस्था रहती है जिससे समुद्र की तह भाव प्रीती सहित सेवा करियो ।-दो सौ बावन ०, भा० २, के कुछ ककड पत्थर, बालू या घोघे मादि भी उसके साथ पृ० ७६ । लगकर ऊपर चले पाते हैं जिससे समुद्र की गहराई के साथ प्रीत्पर्थ-अन्य [ स०] १. प्रीति के कारण । प्रसन्न करने के ही साथ इस बात का भी पता लग जाता है कि यहां को वास्ते । जैसे, विष्णु के प्रीत्यर्थ दान करना। २ लिये। नीचे की जमीन कैसी है। वास्ते। ख'–सञ्चा पुं० [सं० प्रेश] १ झूलना । पेंग लेना । २ एक प्रकार प्रीमियम-सचा पुं० [म.] वह रफम जो जीवन या दुर्घटना आदि का सामगान। का बीमा कराने पर उस कंपनी को, जिसके यहाँ बीमा प्रेख-वि० १ जो काँप रहा हो। २ हिलता या झूलता हुना। कराया गया हो, निश्चित समयो पर दी जाती है। किश्त । प्रेखण-सज्ञा पुं॰ [सं० प्रेवण] १. पच्छा तरह हिलना या झूलना। विशेष-'दे० बीमा'। २ झूला जिस पर झूलते हैं। ३. अठारह प्रकार के रूपको प्रोमियर-सञ्ज्ञा पुं० [पं०] प्रधान मत्री । बजीर आजम । मे से एक प्रकार का रूपक । प्रीय-सजा पुं० [सं० प्रिय ] दे० 'प्रिय' । उ०-उद्दित प्रधान विशेष—इस खपक मे सूत्रधार, विष्कमा मौर प्रवेशक आदि सुभ गातनह जेम जलघि पुन्निम वढहि । हुलसत होय जे की पावश्यकता नहीं होती पौर इसका नायक नीच जाति का प्रीय प्रिय जिम सुजोति जनिता चढहि ।--१० रा०, १६८४। हुआ करता है । इसमे प्ररोचना और नादी नेपथ्य में होता प्रीव-मज्ञा पुं० [स० प्रिय ] दे० 'प्रिय'। उ०—पच सखी मीली है और यह एक प्रक में समाप्त होता है। इसमे वीररस की बइठी छई पाई । निगुणी ! गुण होई तो प्रोव क्यु जाई । प्रधानता रहती है। बी० रासो, पृ०३८। प्रेखणकारिका-सच्चा स्त्री० [स० प्रेशणकारिका] नाचनेवाली । पुपित-वि० [सं०] १. सिक्त। सिंचित । प्रोक्षित । २ तापक । नतंकी को०] । दाहक । ज्वलित [को०] । प्रेखा-तमा सी० [सं० प्रेद्वा] १. हिलना । २ झूलना। झूला। पुष्ट-वि० [सं०] जला हुमा । जो जल गया हो । दग्ध । ३. याना । भ्रमण । ४ नृत्य । नाच । ५ एक प्रकार का ध्व'-या पुं॰ [सं०] १. वर्षा ऋतु या काल । २ सूर्य । ३. गृह (को०)। ६ घोड़े की चाल । शिर । ४. जस की वू'द (को०] । प्रेखित-वि० [सं० प्रेखित ] झूला हुमा । फापा हुआ [को०] । अवा--वि० तप्त । ऊम्म । गरम [को०] । प्रेखोल-परा पु० [स० प्रेडोल ] ६० 'प्रेखोलन' [को० । पूफ-सशा पुं० [ 8 ] १. किसी वात को ठीक ठहराने के लिये दिया प्रेखोलन-सा पुं० [सं० प्रेसोलन ] १. झूलना । २ हिलना । जानेवाला प्रमाण । सबूत । २. किसी छपनेवाली चीज का ३ काँपना। वह नमूना जो उसके छपने से पहले मशुद्धियां मादि दूर करने ' प्रेक्षक-वि० सा पुं० [ मं० ] देखनेवाला । दर्शक । के लिये तैयार किया जाता है। ३. किसी वस्तु का असर होने से पूरा वचाव। प्रेक्षण-तश पुं० [स०] १ पास। २. देखने की क्रिया । ३. दृश्य । नजारा (को०) । ४ रोल, तमाशा, अभिनय प्रादि (को०)। विशष-इस पर्व में इस शब्द का प्रयोग यौगिक शब्दो के उत्तर प्रेक्षणक-सा पुं० [स०] एष्टिविषय । दण्य । प्रदर्शन (पो०] । पद के रूप में हुआ करता है। जैसे, वाटर प्रक, फायर प्रफ प्रेक्षणकूट-रामा ५० [सं०] पांस की पुतली। पांस का देला (को०] । मादि । वाटर प्रूफ से ऐसे पदार्थ का वोध होता है जिसके संघष मे इस बात की परीक्षा हो चुकी होती है कि उसपर प्रेक्षणिका-शा मा० [सं०] तमाशा देखने को शोकिन सा [i] । जल नही ठहर सकता भषवा जल का कोई प्रभाव नहीं हो प्रेक्षणीय-वि० [स०] १. देखने के योग्य । दर्शनीय । २ देखने मे सकता । जैसे, पाटरप्रूफ कपडा । इसी प्रकार फायर प्रफ ऐसे सुदर । ३. विचार योग्य । विचारणीय (को॰) ।