पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५३३

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प्रेक्षणीयक ३९४२ प्रेतदेह प्रेक्षणीयफ-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दृश्य । नजारा (को०] । कवं दैहिक क्रिया हो जाने पर भी प्रेत ही बने रहते हैं। प्रेक्षा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ देखना। २ नाच तमाशा देखना। पुराणो में यह भी कहा है कि जो लोग पाहुति नहीं देते, तीर्थ- ३ दृश्य । नजारा (को०)। ४ कोई भी नाटक तमाशा आदि यात्रा नहीं करते, विष्णु की पूजा नहीं करते, दान नहीं देते, (को० ५ किसी विषय की अच्छी और बुरी बातों का विचार पराई स्त्री हर लाते हैं, झूठे या निर्दय होते हैं, मादक पदार्थों करना । ६ दृष्टि । निगाह। ७ वृक्ष की शाखा । डाल । का सेवन करते हैं, मथवा इसी प्रकार के और कुकर्म करते हैं, ८ शोभा । ६ प्रज्ञा । बुद्धि । वे प्रेत होकर सदा दुख भोगते हैं। यह भी कहा गया है कि प्रेतो का निवास मल, मूत्र मादि गदे स्थानो मे रहता है प्रेक्षाकारी- वि० [ स० प्रक्षाकारिन ] विचार कर काम करनेवाला । पौर वे निलंज्ज होते तथा अपवित्र पदार्थ खाते हैं । विवेकशील [को०] । ३ पितर (को)। ४. नरक मे रहनेवाला प्राणी । ५ पिशाचों प्रेक्षागार-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ राजामो प्रादि के मत्रणा करने का की तरह की एक कल्पित देवयोनि जिसके शरीर का रग स्थान । मरणागृह । २. प्रेक्षागृह । काला, शरीर के बाल खड़े भौर स्वरूप बहुत ही विकराल प्रेक्षागृह-सज्ञा पुं॰ [स०] १. राजाओं आदि के मत्रणा करने का माना जाता है। स्थान। मंत्रणागृह । २. थियेटर या नाट्य मंदिर में वह यो०-भूत प्रेत। स्थान जहाँ दर्शक लोग वैठकर मभिनय देखते हैं । नाटयशाला ६ भयंकर माकृतवाला व्यक्ति। वह व्यक्ति जिसकी भाकृति मे दर्शको के बैठने का स्थान । विकराल हो। ७. वह व्यक्ति जो विना थके लगातार काम प्रेक्षाप्रपंच-सचा पुं० [सं०] रूपक का अभिनय । नाटक । करता जाय । ८ बहुत ही चालाक भौर कजूस ग्रादमी। प्रेक्षाधान्-वि० [सं० प्रशावत् ] ज्ञानी। विवेकी। चतुर [को०] । प्रेतकम-सक्षा पु० [सं० प्रतकम्म॑न् ] हिंदुमो में दाह प्रादि से लेकर प्रेक्षावेतन-सक्षा पुं० [सं०] कौटिल्य अर्थशास्त्रानुसार लेसस लेने का सपिंडी तक का वह कर्म जो मृतक के उद्देश्य से किया जाता महसूल या फीस। है। प्रेतकार्य। प्रेक्षासयम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] जैनो के अनुसार सोने से पहले यह प्रेतकार्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] दे० 'प्रेतकर्म'। देख लेना कि इस स्थान पर जीव मादि तो नहीं हैं। प्रेतकृत्य-सम सं० [सं० ] दे० 'प्रेतकर्म' । प्रेक्षासमाज-पञ्चा पुं० [स] प्रेक्षक समूह । दर्शकवृ द (को०] । प्रेतगत-वि० [सं०] मरा हुमा । मृत [को॰] । प्रेक्षास्थान-सक्षा पुं० [सं०] दे॰ 'प्रेक्षागृह' । प्रेतगृह-सज्ञा पुं॰ [ स०] श्मशान । मसान । भरघट । २. मृत प्रेक्षित-वि० [स०] देखा हुपा। शरीरो के रखे या गाहे जाने मादि का स्थान । प्रेक्षिता-वि० [स० प्रेषित] देखनेवाला । दर्शक [को॰] । प्रेतगेह-सज्ञा पुं॰ [स० ] दे॰ 'प्रेतगृह' । प्रेक्षी'—सञ्चा पुं० [स० प्रेपिन् ] बुद्धिमान् । समझदार । प्रेतगोप-सज्ञा पुं० [सं०] प्रेत का रक्षक । मृत शरीर का प्रेक्षी-वि०१ देखनेवाला । दर्शक । २. सावधानी से देखनेवाला । रक्षक को०] । ३ (किसी के जैसी) माखें या दृष्टि रखनेवाला । जैसे प्रेसचारी-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० प्रेतचारिन् ] महादेव । शिव । मृगप्रेक्षणी (फो०] । प्रेततर्पण-सञ्चा पुं० [सं०] वह तर्पण जो किसी के मरने के दिन से प्रेक्ष्य-वि० [40] दे॰ 'प्रेक्षणीय' [को०] । सपिंडी के दिन तक उसके निमित्त किया जाता है। प्रेण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ गक्ति । चाल । २ प्रेरणा करना । विशेष साधारण तपंण से इसमे यह अतर है कि यह केवल मृतक के उद्देश्य से किया जाता है और केवल सपिंडी के दिन प्रत'-वि० [सं०] मृत । मरा हुमा । गतप्राण [वि॰] । तक होता है। इस तर्पण के साथ मोर पितरो का तर्पण प्रत-सज्ञा पुं० [सं०] १ मरा हुमा मनुष्य । म तक प्राणी । २ नहीं हो सकता। पुराणानुसार वह कल्पित शरीर जो मनुष्य को मरने के उपरात प्राप्त होता है। प्रेतता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] दे॰ 'प्रेतत्व' । विशेष-पुराणों में कहा है कि जब मनुष्य मर जाता है और प्रेतत्व-सधा पु० [सं०] प्रेत का भाव या धर्म 'प्रेतता'। उसका शरीर जला दिया जाता है तब वह भतिवाहिक या प्रेतदाह-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] मृतक के जलाने प्रादि का कार्य । लिंग शरीर धारण करता है, पौर जब उसके उद्देपय से प्रेतदेह-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार किसी मृतक का वह पिंड आदि दिया जाता है, तब उसे प्रेत शरीर प्राप्त होता कल्पित शरीर जो उसके मरने के समय से सपिंडी तक उसकी है। इसी प्रेत पारीर की भोग शरीर भी कहते हैं। यह पात्मा को प्राप्त रहता है। गरीर मरने के उपरांत सपिंडी होने तक रहता है। और तब विशेष-इस शरीर की उत्पत्ति उन पिंडों से होती है जो वह अपने कर्म के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है । जिन सपिंडी के दिन तक नित्य दिए जाते है। कहते हैं कि यह लोगों की श्राद्ध आदि या कवं दैहिक क्रिया नही होती, शरीर एक वर्ष तक बना रहता है और उसके उपरात उसे प्रेतावस्था में ही रहते हैं। कुछ लोग अपने कर्म के अनुसार भोगदेह प्राप्त होता है।