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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५५

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पट २७६४ पटकनिया मुहा०--पट उबढ़ना = मदिर का दरवाजा इसलिये ग्वुलना कि लोग मूर्ति के दर्शन पा सकें। दर्शन का समय पारभ होना । पट खुलना = दे० 'पट उघडना'। पट बद होना = मदिर का दरवाजा वद हो जाना । दर्शन का समय बीत जाता। २ पालको के दरवाजे के किवाड जो सरकाने से खुलते और वद होते हैं। यौ०-पटदार = वह पालकी जिसमे पट हो । कि० प्र०-खुलना ।-खोलना |--देना ।-बद करना।- सरकाना। मुहा०-पट मारना % किवाड वद कर देना। ३. सिंहासन । राज्यसिंहासन। उ०-इन नछिन चहान को पट अभिषेक समान ।-पृ० रा०, ७.१७० । यौ०-पटरानी। ४. किसी वस्तु का तलप्रदेश जो चिपटा और चौरस हो । चिपटी और चौरस तलभूमि । ५ रगमच का पर्दा । पर्दा । यौ०-पटपरिवर्तन । पद-सज्ञा पु० [ देश० ] १ टांग । मुहा०-पट घुसना -- दे० 'पट लेना'। पट लेना - पट नामक पेंच करने के लिये जोड की टाँगें अपनी ओर खीचना । २ कुश्ती का एक पेंच जिसमे पहलवान अपने दोनो हाथ जोड की आँखों की तरफ इसलिये बढ़ाता है कि वह समझे कि मेरी आँखों पर थप्पड मारा जायगा और फिर फुरती से झुककर उसके दोनो पैर अपने सिर की ओर खीचकर उसे उठा लेता और गिराकर चित्त कर देता है। यह पेंच और भी कई प्रकार से किया जाता है। पट-वि० ऐसी स्थिति जिसमें पेट भूमि की ओर हो और पीठ प्रकाश की भोर । चित का उलटा । पौंधा। मुहा०-पट पढना = (१) औंधा पहना। (२) फुश्ती मे नीचे के पहलवान का पेट के बल पडकर मिट्टी थामना । (३) मद पहना। धीमा पडना । न चलना। जैसे-रोजगार पट पडना, पासा पट पडना, आदि । तलवार पट पड़ना :- तलवार का प्रौंधा गिरना। उस शोर से न पडना जिघर घार हो। पट-क्रि० वि० चट का अनुकरण । तुरत । फौरन । जैसे, चट मॅगनी पट व्याह। पट'-[अनु०] किसी हलकी छोटी वस्तु के गिरने से होनेवाली आवाज । टप । जैसे, पट पट बूदे पडने लगी। विशेष-खटपट, घमघम श्रादि अन्य अनुकरण शब्दो के समान इसका प्रयोग भी 'से' विभक्ति के साथ क्रियाविशेषण- वत् ही होता है। सज्ञा की भांति प्रयोग न होने के कारण इसका कोई लिंग नहीं माना जा सकता। पटइना, पटइनि-सज्ञा स्त्री० [हिं० पटवा ] पटवा जाति की स्त्री। पटहार जाति की स्त्री। उ०—पटइनि पहिरि सुरंग तन चोला । श्री वरइनि मुख खात तमोला । —जायसी प्र., पृ०८१। पटक-सज्ञा पुं० [सं०] १ सूती कपड़ा । २ शिविर । तवू । सेमा। ३ प्राधा गाँव (को०)। पटकन-सश स्री० [हिं० पटकना] १ पटकने की क्रिया या भाव।२ चपत । तमाचा। क्रि० प्र०-देना। ३ छोटा डडा। छदी। क्रि० प्र०-साना ।—मारना । पटकना-क्रि० स० [म० पतन+करण या अनु० ] १ किसी वस्तु को उठाकर या हाथ मे लेकर भूमि पर जोर से दालना या गिगना । जोर के साथ ऊंचाई से भूमि की घोर झोक देना। किसी चीज को झोके के साथ नीचे की पोर गिराना। जैसे, हाथ का लोटा पटक देना, मेज पर हाथ पटकना । २ किसी सहे या वैठे व्यक्ति को उठाकर जोर से नीचे गिराना। दे मारना। उ०—पुनि नल नीलहिं अवनि पधारेसि । जहें तह पटकि पटकि भट मारेसि-तुलसी (शब्द॰) । सयो० कि०-देना। विशेष--'पटकना' मे ऊपर से नीने की ओर झोका देने या जोर करने का भाव प्रधान है। जहाँ वगल से झोका देकर किसी खडी या ऊपर रखी चीज को गिरावे वहाँ ढवेलना या गिराना कहेगे। मुहा०-( किसी पर, किसी के ऊपर या किसी के सिर ) पटकना = कोई ऐसा काम निसी के सुपुर्द करना जिसे करने की उसकी इच्छा न हो। किसी के बार वार इनकार करने पर भी कोई काम उसके गले मढ देना। जैसे,-भाई तुम यह काम मेरे ही सिर क्यो पटकते हो किसी और को क्यों नही हूँढ लेते। २ कुस्ती में प्रतिद्वंद्वी को पछाडना, गिरा देना या दे मारना। जैसे,—मैं उन्हें तीन बार पटक चुका । पटकना-कि० अ० १ सूजन बैठना या पचकना। वरम या आमास का कम होना। २ गेहूँ, चने, घान प्रादि का सील या जल से भीगकर फिर सूखकर सिकुडना । विशेष-ऐसी स्थिति को प्राप्त होने के पश्चात् अन्न मै वीजत्व नहीं रह जाता। वह केवल खाने के काम मे मा सकता हैं, वोने के नहीं। ३ पट शब्द के साथ किसी चीज का दरक या फट जाना। जैसे,-हाडी पटक गई। पटकनि-सज्ञा ली० [हिं० पटकना] पटकने की क्रिया या भाव । उ० तेसिव मृदु पद पटकनि चटकनि कछतारन की। लटकनि मट कनि झलकनि कल कुडल हारन की।- नद० ग्र०, पृ०२२ । पटकनिया–पञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पटकना] १ पटकने की क्रिया या भाव । पटकान!