पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पटकनी २७६५ पटतारना कि०प्र०-देना। २ पट के जाने की क्रिया या भाव । कि०प्र०-खाना। ३ भूमि पर गिरकर लोटने या पछाडे खाने की क्रिया या अवस्था। लोटनिया । पछाड । क्रि० प्र०-खाना। पटकनी- सज्ञा स्त्री० [हिं० पटकना] १ पटकने की क्रिया या भाव । जैसे,—पहली ही पटकनी मे वचा को छट्ठी का दूध याद या गया। क्रि० प्र०-देना। २ पटके जाने की क्रिया या भाव । क्रि० प्र०-खाना। ३ भूमि पर गिरकर लोटने या पछाडें खाने की क्रिया या अवस्था । क्रि०प्र०-खाना। पटकरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की बेल । पटकर्म-सज्ञा पु० [ स० पटकर्मन् ] कपडा बुनने का काम । जुलाहे का धधा [को०] । पटका-सज्ञा पुं० [म० पट्टक] १ वह दुपट्टा या रूमाल जिससे कमर बांधी जाय। कमरबद। कमरपेच । उ०-खैचि कमर सौं बांच्या पटका। अध पति हुमा वैठकर पटका ।-सुदर ग्रं॰, भा०१, पृ० ३५१ । क्रि० प्र०-बाँधना। मुहा०-पटका वाँधना = कमर कसना। किसी काम के लिये तैयार होना। पटका पकड़ना = किसी को कार्यविशेष के लिये उत्तरदायी या अपराधी मानकर रोकना। कार्यविशेष से अपना प्रसवध बताकर जान बचाने का प्रयत्ल करनेवाले को रोक रखना और उस काम का जिम्मेदार ठहराना। दामन पकडना। ३ दीवार मे वह वद या पट्टी जो सुदरता के लिये जोडी जाती है। पटकान-मज्ञा स्रो० [हिं० पटकना] १ पटव ने की क्रिया या भाव । जैसे,—मेरी एक ही पटवान मे उसके होश ठिकाने हो गए। क्रि० प्र०-देना। २ पटके जाने की क्रिया या अवस्था । क्रि० प्र०-खाना। ३ भूमि पर गिरकर लोटने या पछाड खाने की क्रिया या अवस्था । क्रि० प्र०-खाना। पटकार-मज्ञा पु० [सं०] १ कपडा बुननेवाला । जुलाहा । २ चित्र- पट बनानेवाला । चित्रकार । पटकुटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पट + कुटी ] रावटी। छोलदारी। खेमा (हिं०)। पटकूल-सचा पु० [सं०] रेशमी वस्त्र । उ०-सब सहर नारि शृगार कीन । अप अप्प झुड मिलि चलि नवीन । थपि कनक थार भरि द्रव्य दुव । पट कूल जरफ जरकसी कव । -पृ० रा०, १.७१३ । पटखनो-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पटकन] दे० 'पटकनी'। उ०-रियासतो के नामी गरामी शहसवार इसपर सवार हुए और सवार होते ही पटखनी खाई।—फिसाना०, भा० ३, पृ० २१ । पटचित्र-प्रज्ञा पुं० [स० पट + चित्र] १ कपडे पर बनाया हुआ चित्र । २ सिनेमा की फिल्म । उ०—उसके बाद सुनीता ने कुछ न कहा और मुह मोडकर पटचित्र ही देखती रही। सुनीता, पृ० १३४ । पटचर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ जीर्ण वस्त्र । पुराना कपडा। उ०- तब लपेट तैलाक्त पट च्चर आग लगाई रिपुत्रो ने ।--साकेत, पृ० ३६० । २ चोर । तस्कर । ३ महाभारत और पुराणों में वर्णित एक प्राचीन देश । विशेष-महाभारत के टीकाकार नीलकठ के मत से यह देश प्राचीन चोल है। पर महाभारत सभापर्व मे सहदेव का द्विग्विजय प्रकरण पढने से इसका स्थान मत्स्य देश के दक्षिण चेदि के निकट कही पर जान पडता है। जैन हरिवश के मत से यह मत्र देश का ही प्रशविशेष है। पटड़ा-सझा पु० [हिं०] दे० 'पटरा'। पटड़ी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे० 'पटरी'। पटण-सञ्चा पुं० [स० पत्तन] दे० 'पत्तन'। उ०-हाट पटण देखि रह्या हैरान । नानक एह गढ छूटे निदान । -प्राण, पु०२८। पटतर--संज्ञा पु० [हिं० सं० पट्ट ( =पटरी) +तल ( = पटरी के समान चौरस)] १ समता। बराबरी । तुल्यता। समा- नता । उ०—महामधुर कमनीय जुगल बर। इनही को दीज इन पटतर।-घनानद, पृ० ४१ । २ उपमा। साध्य कथन । तशवीह। क्रि० प्र०—देना ।-पाना ।- लहना। पटतर-वि० जिसकी सतह ऊँची नीची न हो । चौरस । समतल । वरावर। पटतरना-क्रि० प्र० [हिं० पटतर ] वरावर ठहराना। उपमा देना । उ०--जो पटतरिम तीय सम सीया। जग अस जुवति कहाँ कमनीया ।—मानस, २२४७ । पटतारना'-क्रि० स० [हिं० पटा+तारना (=श्रदाजना) ] खङ्ग भाले मादि को उस स्थिति मे पकडना जिसमे उनसे वार किया जाता है। खाँडा, भाला आदि शस्त्रो को विसी पर चलाने के लिये पकटना या खीचना । सँभालना। उ०—फिर पठान सो जग हित चल्यो सेल पटतारि । —सूदन (शब्द०)।