पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/८३

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पतियार २७६२ पतुकी विश्वास करना। सच मानना। प्रतीत करना। उ०-प्रिय साध्वी । सच्चरिया। उ०-विमुप हुई मौनव्रत सेपर उम विना प्रिया से रहा नहीं जाता था। पर उनको उसका खल के प्रति पतिव्रता ।-साकेत, पृ० ३८६ । हरिण न पतियाता था।-शकु०, पृ०१५। विशेष-मन्वादि स्मृतियो के अनुसार पतिव्रता ली को पाजन्म पतियारी- [हिं० पतियाना ] विश्वास करने के योग्य । विश्व- पति की प्राज्ञा का अनुसरण करना चाहिए। कोई ऐसी सनीय । उ०-तीन लोग भरि पूरि रहो है नांही है पतियार। वात न करनी चाहिए जो पति को अप्रिय हो। पति -वीर (शब्द०)। कितना ही दुश्शील क्यो न हो, पतियता यो सदा पतियारा - सज्ञा पुं० [हिं० पतियाना ] पतियाने का भाव । सर्वदा उसे अपना देवता मानना चाहिए। जो वा पति विश्वास । एतवार । उ०तुमसो और पास नहिं कोऊ को अप्रिय हो उसकी मृत्यु के पश्चात् भी वे पतिग्रता मानहु करि पतियारे । हरीचद खोजत तुमही को वेद पुगन के लिये पातंव्य हैं। पति की मृत्यु के अनतर पुवारे ।-भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० १३३ । पतिव्रता स्त्री को फल, मूल प्रादि साफर पूर्ण ब्रह्मचर्य से पतियारी-सचा सी० [हिं० पतियारा] विश्वास । एतवार । रहना चाहिए । पति के विदेश होने की दशा में उसे शृगार, उ०-वेद पुरान सिधारी तहाँ 'हरिचद' जहाँ तुम्हारी हासपरिहास, गोसा, मर तमाशे में या दूसरे के घर जाना पतियारी। मेरे तो साधन, एक ही हैं जग नदलला वृपभानु श्रादि कार्य त्याग देना चाहिए । सपूर्ण प्रत, पूजा, तपस्या दुलारी।-भारतेंदु ग्र॰, भा॰ २, पृ० ७६ । और प्राराधना त्यागार पति सेवा में रत रहना ही पतिव्रता पतिरिपु-वि० [ म०] पति से द्वेष करनेवाली (स्त्री)। पति से के लिये एपमान घम है। पुत्र की अपेक्षा पति को सौगुना वैर रखनेवाली। अधिक प्यार करे। पति उगे सब पापो मे छुडा देता है । पतिलधन-सज्ञा पुं [पुं० पतिलङ्घन] १ पति को नापना। पति के परपुरप पर प्रेम का पातिव्रत का उल्लघन करनेवाली स्त्री रहते अन्य से विवाह कर लेना। २ पति की प्राज्ञा या शृगालयोनि मे जन्म पाती है। उल्लघन करना (को०] । पतिष्ठ- ि[२०] अत्यत पतनशील । गिग्नेवाला। पतिलीन पु- वि० [हिं० पति (= प्रतिष्टा) + सं० लीन ] समान पतिसेवा-सा स्त्री॰ [१०] पति की रोवा । पतिभक्ति किो०] । हीन । प्रतिष्ठाहीन । उ०-प्रति दीनन की गतिहीनन को पतिस्याह- पुं० [हिं० ] ३० 'पातशाह'। उ०-वादित खा पतिलीनन की रति के मन हो। सव ही विधि जान, पतिस्याह सो', करी सलाम सु याय । करौ सुखदान, जिवावत प्रान कृपातन हो।-घनानद, पृ० ८१. पृ० ११०। पतिलोक-सज्ञा पुं॰ [ म० ] पति को प्राप्त स्वर्ग जो पतिव्रता स्त्री पतिहारी--- ग मी० [ मं० प्रतिहारी ] दे० 'पटतर'। उ०- को प्राप्त होता है। पतिव्रता स्त्री को मिलनेवाला वह स्वर्ग रंगभूमि वह भाति सवारी । ताल मिलाइ परे पतिहारी। जिसमे उसका पति रहता है। -माघवानल०, पृ० १६४ । पतिवती-गि [ स० पतिवती ] पतिवती । सघवा । नभर्तृगा। पती-सा म० [सं० पति ] दे० 'पति' । पतिवती- वि० [स० पति +हिं० वती (प्रत्य॰) ] सधवा (स्त्री)। पतीजनापा-कि० अ० [ हि० प्रतीत+ना (प्रत्य॰)] पति- सौभाग्यवती। थाना । एतवार करना। भरोसा करना। विश्वास करना । पतिवनी- सज्ञा सी० [ मं० ] सौभाग्यवती स्त्री [को० । प्रतीत करना । उ० (क) तव देवकी दीन ह्र भाष्यो नृप को पतिवरत-मज्ञा पु. [म० पतिव्रत ] दे० 'पतिव्रत' । उ०-- नाहि पतीज । - (शब्द०)। (ख ) वोल्यो विहंग विहंसि रघुवर वलि कहो गुभाव पतीज।-तुलसी (शब्द॰) । जलगा काज नरकी जादम । धुर ऊठी पतिवरत तणं प्रम । पतीनना@-क्रि० स० [हिं० प्रतीत + ना ( प्रत्य॰)] विश्वास -रा० रू०, पृ०१७ । पतिवर्त-सज्ञा पु० [ मा पतिव्रत ] २० 'पतियत' । करना। सच मानना । यकीन करना । उ०-देवै गर्भ भई पतिवर्ता-पि. [ स० पतिव्रता ] दे॰ 'पतिव्रता'। है कन्या राइ न वात पतीनी हो । —सूर (शब्द०)। पतिवेदन'-वि० [म.] जो पति को प्राप्त करावे। पति का लाभ पतोरा-सश सी० [सं० पटित ] पाति । कतार । पक्ति । करानेवाला। पतीरो-मा गो [दश०] एक प्रकार की चटाई। पतिवेदन'–सञ्चा पु० महादेव । शिव । पतीला-वि० [हिं० पतला ] दे० 'पत्तला' । पतिव्रत-सज्ञा पु० [ म० ] पति मे ( स्नी की ) अनन्य प्रीति और पतीना--वि० [हिं० ] २० 'पतला' । भक्ति । पति में निष्ठापूर्वक अनुराग। पातिव्रत्य । पतीली-सशा सी० [स० पतिली ( = हांडी ) ] नावे या पीतल की पतिव्रता-वि० [ म०] पति मे अनन्य अनुराग रखनेवाली और एक प्रकार की वटलोई जिसका मुह और पेंदी साधारण यथाविधि पतिसेवा करनेवाली (स्त्री)। जिस (स्त्री) वटलोई की अपेक्षा अधिक चौडी और दल मोटा होता है। का प्रेमपात्र और उपास्य एकमात्र पति हो। सव प्रकार देगी। पति के अनुकूल आचरण करनेवाली (स्त्री)। सती। पतुकी-म खो [ स० पतिली ] हांडी। उ०-पतुकी घरी स्याम -हे. रासो