पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/८४

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छीमी। पतुरिया २७१३ पत्तक खिसाइ रहे उत ग्वारि हंसी मुख आँचल के ।-केशव ग्र०, पतौवा हूँ।-तुलनी ग्र०, पृ० २२८ । (स) झारिक पतीवर भा०१, पृ० ८३1 गए वाहिर ले डारिवै के देखी भीर भार, रहे वैठिये रसाल पतुरिया-नश सी० [ मं० पातिली ( = स्त्री विशेष ) ] १ नाचने हैं।-भक्तमाल (श्री०), पृ० ४५८ । गाने या व्यवसाय करनेवाली स्त्री। वेश्या। रडी। पत्तग-सज्ञा पुं० [० पत्तन ] पतग नामक लक्ष्टी । वक्फम । २ व्यभिचारिणी स्त्री । छिनाल स्त्री। पत्त'-मा पु० [ मे० पत्र, प्रा० पत्त] ३० 'पत्र'। उ०-पत्त पतुली-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] कलाई मे पहनने का एक आभूपण पुगतन झरिग पत्त अकुरिग उट्ट तुछ । ज्यो गसत्र उत्तरिय जिसको अवध प्रात की स्त्रियां पहनती हैं । चढिय संसव किसोर कुछ ।-पृ० रा०, २५६६ । पतुही-सज्ञा सी० [हिं० पत्ता] मटर की वह फली जिसके दाने, पत्त'-सशा पु० [ म० पट्ट या पत्र ( = लेखाधार) ] पट्ट। पटरी । रोग, प्राधिदैविक वाधा या समय से पहले तोड लिए जाने के उ०-सुनि हंस वैन उर लगी वत्त । निधिना लिपत क्यो कारण यथेष्ट पुष्ट न हो सके हो। नन्हे नन्हे दानोवाली मिटै पत्त।-पृ० रा०, २५॥१२० । पत्त३-सज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'पति' । उ०-माहाँ ज्थप थपणो । पतूख-सशा स्त्री॰ [हिं० पतोखा ] दे० 'पतोखी'। यह नरनाहाँ पत्त राह दुई हद रक्सणी अमसाह छत्तपत्त । पतूखी-सशा स्त्री० [हिं०] दे० 'पतोखी' । उ०- अंखिया हरि -रा०६०, पृ०१०। दरसन की भूखी। वारक वह मुख प्रानि दिखावह दुहि पत्तन-सञ्चा पु० [ स०] १ नगर । शहर । पय पियत पतूखी ।-सूर०, १० । ३५५७ । विशेष-प्राचीन समय मे नगरो के नाम के साथ इस शब्द का पतेना-सशा सी० [ देश०] पक्षी विशेप । उ०-सुनाती है वोली, प्रयोग होता था। जैसे, प्रभासपत्तन। अब इनका अपभ्रंश नहीं फूल सुधनी, पतेना सहेली लगाती हैं फेरे ।-हरी घास०, पाटन या पट्टन अनेक नगरो के नाम के साय मयुक्त है । जैसे, पृ०१३६ झालरापाटन, विजगापट्टन, मुसलीपट्टन आदि। कभी कभी इस शब्द का प्रयोग उस नगर के लिये भी होता था जहाँ बंदरगाह पतोई-सज्ञा सी० [ देश० ] वह फेन जो गुड वनाते समय खौलते रस मे उठता है। होता था और जो समुद्री यात्रियो और व्यापारियो के कारण छोटा नगर हो जाता था। पतोखद'-सा सी० [ सं० पत्रौषध ] वह पोषधि जो किसी वृक्ष, यौ०-परानवणिक = नगर का वणिक । शहर का व्यापारी । पौधे या तृण का पत्ता या फूल श्रादि हो। घासपात की दवाई। खरविरई। २ मृदंग। पतोखद-मज्ञा पु० [ मं० श्रोपधिपति ] चद्रमा । ( डि० ) । पत्तनाध्यक्ष-सगा पुं० [सं०] वदरगाह का अध्यक्ष या प्रधान पतोखदी-सशा श्री• [मे० पोत्रीपधि ] दे० 'पतोखद'। अधिकारी (कोटि०)। पतोखा'-सज्ञा पुं० [हिं० पत्त ] [ अल्पा० पतोखी ] पत्ते का बना पत्तर-सशा पु० [ स० पत्र ] १ धातु का ऐसा चिपटा लवोतरा टुकडा जो पीटकर तैयार किया गया हो और पत्ते की तरह पान । दोना। पतला होने पर भी कड़ा हो तथा जिसकी तह या परत की पतोखा---तज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का वगला जो मलंग वगले जा सके । धातु को चादर । जैगे,-(क) मदिर के शिखर से छोटा और किलचिया मे वडा होता है। इसका पर सूब पर मोने का पत्तर चढा है। (स) या बनाने के लिये तावे सफेद, नरम, चिकना और चमकीला होता है। टोपियो प्रादि का एक पत्तर ले प्रायो। के बनाने मे प्राय इसी के पर काम में लाए जाते हैं । पतखा । विशेप- कागज की तरह महीन पत्तर जो झट मोडा पौर पतोसी-सशा पी० [हिं० पतोखा ] १. एक पत्ते का दोना । छोटा तह किया जा मो 'वर्क' कहलाता है। दोना । २ पत्तो का वना छोटा छाता । घोघो। २२० 'पत्तल'। पतोरा-शा पु० [हिं० ] २० 'पत्योरा' । पत्तल-श यो [स० पन्न, हिं० पत्ता] १ पत्तो को सीको से जोडकर पतोहा-राशा मी० [सं० पुत्रवधू ] -, 'पतोहू' । बनाया हुआ एक पाय जिससे थाली का काम लिया जाता है। पतोहरी -सरा स० [म० पत्रोदरो ] क्षीण कटिवाली ली। उ० विशेप-पत्तन प्राय घरगद, महए या पनाम प्रादि के पत्तो ससिजन प्रेरते. हसि हेरते सयानी लारुमी पातरी, पतोहरी, की बनाई जाती है। इसकी बनावट गोलारार होती है। तरुणी, तरहट्टी वन्ही विनखणी परिहास पेसरणी तु दरी साथ व्यास की लवाई एक हाय ने कुछ कम या अधिक होती है। जवे देखिन-कीतिक, पृ०४ । २ पुनवधू । हिंदुनो के यहाँ बडे भोजो में इसी पर भोजन परमा पतोहू -गज्ञा स्त्री॰ [स० पुत्रवधू प्रा० पुतबहू] बेटे की स्त्री । पुत्रवः । जाता है। अन्य प्रवनरो पर भी इना पानी के स्थान पर पतौआ-मज्ञा पु० [सं० पत्र, हिं० पता ] पत्ता । पर्ण । उपयोग किया जाता है। जगली मनुप तो मदा नी में साना पाते हैं। पतौवास पुं० [हिं०] दे॰ 'पतोमा' । उ०—(क) जाने, विनु जाने, के रिवाने, केलि कवहुँका सिवहिं चढ़ाए ह्र हैं चैल के मुहा०-एक पचल के सानेवाले = परम्पर घनिष्ठ सामादिक