पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/९२

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पयिकृत २८०१ पदक पथिकृत्-तज्ञा पु० [ स०] १ पथप्रदर्शक । अग्नि [को०] । २ सेंधा नमक। ३ छोटी हड का पेड। ४. हित । मगल । पथिचक्र-सज्ञा ॰ [ स०] फलित ज्योतिष में एक चक्र जिससे कल्यारण। यात्रा का शुभ और अशुभ फल जाना जाता है । पथ्य-वि• हितकर । अनुकूल । उचित । उ०-कौशल्या परि धीरजु पथिदेय-सचा पुं० [ स०] वह कर जो किसी विशिष्ट पथ पर कहई । पूत पथ्य गुरु आयेसु अहई । —मानस, २।१७६ । चलनेवालो से लिया जाता है । पथ्यका-सशा स्त्री० [स०] मेथी। पथिद्रुम-सज्ञा पु० [ स०] खैर का पेड । पथ्यशाक-पञ्चा पुं० [ म० ] चौलाई का साग । पथिन्-सा पुं० [ स०] १ राह । मार्ग । २ यात्रा । ३ कार्य- पथ्या--नचा स्त्री० [०] १ हरीतकी । हह । उ०-अभया, पथ्या, पद्धति । कार्य की सरणि । ४ सप्रदाय । मत । ५ पहुँच । अव्यथा, अमृता, चेतक होइ । - नद० ग्र०, पृ० १०४ । २. ६ एक नरक (को०] । बन ककोडा। ३ आर्या छद का एक भेद जिसके और कई विशेष-सस्कृत के प्रथमा एकवचन मे इसका रूप पथा होता है अवातर भेद हैं। ४ सैधनी। ५ चिमिटा । ६ गगा। ७ पोर कर्मकारक बहुवचन मे पथ । सस्कृत समाम मे इसका सडक । रास्ता। राह (को॰) । रूप 'पथ' होता है, जैसे, दृष्टिपथ, सत्पथ, श्रुतिपथ, कर्णपथ पथ्यादि क्वाथ-सज्ञा पु० [म०] वैद्यक में एक प्रकार का पाचक आदि । हिंदी मे यही रूप प्रचलित और मान्य है । काढ़ा जो त्रिफला, गुड च, हलदी, चिरायते और नीम आदि को उबालकर बनाया जाता है। पथिप्रश-वि० [ स०] पथ का ज्ञाता । मार्ग का जानकार [को०] । पथिप्रिय-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] राह का प्रिय साथी [को०] । पथ्यापंकि-सञ्ज्ञा पुं॰ [म० पथ्यापछिक] पांच पदो का एक प्रकार का वैदिक छद जिसके प्रत्येक पाद मे पाठ आठ वर्ण होते हैं। पथिल-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] राही । वटोही । पथिवाहक'-वि० [स०] निर्दय । कठोरहृदय (को०] । पथ्यापथ्य-सज्ञा पु०[म. पथ्य और प्रपथ्य । रोगी के लिये पथिवाहक-सशा पु० १ व्याधा। शिकारी। आखेटक । २ लाभकर और हानिकर वस्तु [को०] । मोटिया । बोका ढोनेवाला व्यक्ति [को०] । पथ्याशन-सन्ना पु० [ म०] पाथेय । सबल । पयिस्थ-वि० [ स०] राह चलता हुमा । जो रास्ता तय कर रहा पथ्याशी-वि० [सं० पथ्याशिन् ] पथ्य वस्तु खानेवाला [को॰] । हो [को०] । पद-सशा पु० [म.] १ व्यवसाय | काम । २ पाण। रक्षा। पथी- सञ्चा पु० [स० पथिन् ] रास्ता चलनेवाला। मुसाफिर । यात्री। ३ योग्यता के अनुसार नियत स्थान । दर्जा । ४ चिह्न । पथिक । इ०-(क) राम नाम अनुराग ही जिय जो रति- निशान । ५ पैर । पांव । चरण । उ०-सो पद गहो जाहि से आतो। स्वारथ परमारथ पथी तोहिं सव पतिमातो। सदगति पार ब्रह्म से न्यारा।-कवीर श०, भा० ३, पृ०३ । यो०- पदकंज । पदपंकज । पदपश्न = दे० 'पदकमल' । -तुलसी ग्र०, पृ० ५३५ । (ख) पथी दृग ए विसाल होय के विहाल वाके रहे हैं दुकूलनि के कूलनि मैं जाई री।- ६ वस्तु । चीज। ७. शब्द । ८ प्रदेश । ६ पैर का निशान । दीन० प्र०, पृ० ११ । १० श्लोक वा किसी छद का चतुर्थांश । श्लोकपाद । ११ उपाधि। १२ मोक्ष । निर्वाण। १३ ईश्वरभक्ति सबधी पथीय--वि० [स०] १ पथ सबधी । २ सप्रदाय सवधी । गीत । भजन । १३ पुराणानुसार दान के लिये जूते, पथुन--सञ्ज्ञा पुं० [ स० पथ ] पथ । मागं । रास्ता । राह । उ०-- छाते, कपडे, अंगूठी, कमडलु, प्रासन, बरतन, और भोजन विधि करतब विपरीत बाम गति राम प्रेम पयु न्यारो। का समूह । जैसे,—पांच ब्राह्मणो को पददान मिला है। १५ —तुलसी (शब्द०)। हग । कदम । पग। (को०)। १६ वैदिक मत्रो के पाठ पथेय पु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाथेय ] 70 'पाथेय' । करने का एक ढग। मत्रो के शब्दो को अलग अलग पथेरा-संज्ञा पु० [हिं० पाथना+एरा (प्रत्य॰) ] ईंटें पाथनेवाला कहना । जैसे, पद पाठ । १७ विसात का कोठा या खाना । कुम्हार । १८. किरण (को०)। १६ लबाई की एक माप (को०) । पथौरा-सज्ञा पु० [हिं० पाथना + औरा (प्रत्य॰)] वह स्थान २० राह । मार्ग। ११ वर्गमूल (गणित) । २२ वहाना । जहाँ उपले पाये जाते हो। गोबर पाथने की जगह । हीला (को०) । २३ फल (को०) । २४ सिक्का (को॰) । पथ्य'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ चिकित्सा के कार्य अथवा रोगी के लिये पदई-सञ्ज्ञा सी० [सं० पदवी ] दे० 'पदवी'। उ०-छीर नीर हितकर वस्तु, विशेषत आहार । वह हलका और जल्दी निरवारि पिवै जो। इहि मग प्रभु पदई पावै सो । -नद पचनेवाला खाना जो रोगी के लिये लाभदायक हो। उपयुक्त ग्र०, पृ०११८। माहार। उचित पाहार। उ०—करिकै पथ्य विरोध इक पदक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ एक प्रकार का गहना जिसमें रोगी त्यागत प्रान । -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २२७ । किसी देवता के पैरो के चिह्न अकित होते हैं और क्रि० प्र०—देना ।—लेना । जो प्राय वालको की रक्षा के लिये पहनाया मुहा०-पथ्य से रहना = सयम से रहना । परहेज से रहना। जाता है। २ पूजन आदि के लिये किसी देवता के