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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/९३

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पदकमल २९०१ पदम का नाम। पैरो के बनाए हुए चिह्न। ३ सोने चांदी या किसी और पदत्राण-सशा पुं० [सं०] पैरो की रक्षा करनेवाला जुता । घातु का बना हुमा सिक्के की तरह का गोल या चौकोर पत्रान--सचा पु० [सं० पदत्राण ] ६० 'पदत्राण'। उ०-नहि टुकडा जो किसी व्यक्ति अथवा जनसमूह को कोई विशेष पदत्रान सीस नहिं छाया। पेमु नेमु व्रतु घरमु अमाया । अच्छा या अद्भुत कार्य करने के उपलक्ष मे दिया जाता है। -मानस, २०२१५ इसपर प्राय दाता और गृहीता का नाम तथा दिए जाने का पदत्री-लझा पु० [सं०] पक्षी । चिडिया । (अनेकार्थ०) । कारण और समय आदि अकित रहता है। यह प्रशसा सूचक पददलित-वि० [ स०] १ पैरों से रौंदा हुमा। २ जो दवाकर और योग्यता का परिचायक होता है। ४ वह जो वेदो का बहुत हीन कर दिया गया हो । पदपाठ करने में प्रवीण हो । ५ डग । कदम । पग (को॰) । पददारिका-सज्ञा स्त्री० [स०] विवाई नाम का पैर का रोग । ६ स्थान । पद । प्रोहदा (को०)। ७ एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि पददेश-सन्न पुं० [सं०] निचला भाग। तल भाग। उ०-वृत्र उसी जल के पददेश के नीचे सो गया।-प्रा० भा०प०, पृ० ८६ । पदकमल--सञ्ज्ञा पु० [सं०] कमल सदृश पांव । कमलरूपी चरण । पदनिक्षेप-सचा पुं० [स०] चरणचिह्न। पैर की छाप। पदन्यास । उ०-पदकमल घोइ चढाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। उ०-इस दिशा मे कामायनी प्रथम और अतिम पदनिक्षेप -मानस, २|१०० । है।-बी०१० म०, पु० ३४८ । पदक्रम-एशा पुं० [सं०] १ गमन करना। चलना। २ वेदमत्रों के पदो के पाठ की एक पद्धति । ३ वाक्यविन्यास । वाक्य पदन्यास-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ पैर रखना। चलना । गमन करना । मे शब्दो या पदो के रखने का ढग । कदम रखना। उ०-मृदु पदन्यास मद मलयानिल विगलत शीश निचोल । -सूर (शब्द॰) । २. पैर रखने की एक मुद्रा पद्ग-संशा पु० [स०] पैदल चलनेवाला। प्यादा । पदचतुरर्ध-सज्ञा पुं॰ [ स० पदचतुरई ] विषम वृत्तों का एक भेद ३ पैर की छाप । चरणचिह्न। ४ चलन । ढग । ५ पद रचने का काम । ६ गोखरू । जिसके प्रथम चरण मे ८, दूसरे मे १२, तीसरे में १६ और पदपंक्ति-सज्ञा पु० [सं० पदपड क्ति ] एक वैदिक छद जिसके पांच चौथे मे २० वर्ण होते हैं। इसमें गुरु लघु का नियम नहीं होता। इसके अपीड, प्रत्यापीठ, मजरी, लवली, और अमृत- पाद होते हैं और प्रत्येक पाद में पांच वर्ण होते हैं । धारा ये पाँच अवातर भेद होते हैं । पदपद्धति-मज्ञा ली० [सं० ] पैरो का चिह्न। अनेक पैरो के क्रमबद्ध पदचर-सज्ञा पु० [स०] पैदल । प्यादा । उ० --सजि गज रथ पदचर चिह्न या कतार [को०] । तुरग लेन चले अगवान । —मानस, १।३०४ । पदपद्म-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पदकमल'। पदचार, पदचारण-सशा पुं० [सं०] पैदल चलना। उ०—देख पदपलटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० पद+हिं० पलटना] एक प्रकार का नाच । चचल मृदु पटु पदचार लुटाता स्वर्ण राशि कवियार। पदपाट–सञ्चा पु०[स०] १ वेदमत्रो का ऐसा पाठ जिसमें सभी पद अलग गुजन, पृ०४६। अलग करके कहे जायें । २ अथ जिससे पदपाठ हो [को०] । पदचारी-वि० [स०] पैदल चलनेवाला। पैदल । उ० ते अब फिरत पदबंध-सज्ञा पुं॰ [ स० पदबन्ध ] कदम । डग [को०] । विपिन पदचारी। कदमूल फल फूल अहारी।—मानस, २।४० । पद्मजन-सज्ञा पुं॰ [स० पदभजन ] शब्दो की निरुक्ति । शब्द- पदचिह्न-सज्ञा पुं॰ [स०] वह चिह्न जो चलने के समय पैरो से जमीन विश्लेषण [को०] । पर बन जाता है। पदभंजिका–सञ्चा स्त्री० [सं० पदभञ्जिका] टीका । टिप्पणी [को॰] । पषुच्छेद-सज्ञा पु० [ म० ] सघि और समासयुक्त किसी वाक्य के पदभ्रंश-समा पुं० [स०] पदच्युति दोष [को॰] । प्रत्येक पद को व्याकरण के नियमो के अनुसार अलग अलग पदम-सझा पुं० [ स० पम ] दे॰ 'पद्म' । करने की क्रिया। पदच्युत-वि० [स०] जो अपने पद या स्थान से हट गया हो। पद्म-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पद्मकाष्ठ ] वादाम की जाति का एक जगली अपने स्थान से हटा या गिरा हुआ। जैसे, किसी राजकम- पेड । अमलगुच्छ । पद्माख । विशेष-यह पेड सिंधु चारी का पदच्युत होना। उ०-अत में राव जी आपा प्रासाम तक २५०० से ७००० फुट परभू पुराने कारिदे ने प्रबल होकर उसको पदच्युत किया। की ऊंचाई तक तथा खासिया की पहाडियो और उत्तर बर्मा मे अधिकता से पाया जाता है। कही कही यह पेड लगाया -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ३६४ । भी जाता है। इसमें से बहुत अधिक गोद निकलता है जो पदच्युति-सज्ञा स्त्री० [म०] अपने पद से हटने या गिरने की अवस्था । किसी काम मे नही लाया जाता। इसमे एक प्रकार का फल पदज-सज्ञा पुं० [स०] १ पैर की उंगलियां । उ०—मृदुल चरन होता है जिसमें से कड ए बादाम के तेल की तरह का तेल सुभ चिह्न पदज नख अति अद्भुत उपमाई। -तुलसी ग्र०, निकलता है। इन फलो को लोग कही कहीं खाते और कही पृ० ४६१ । २ शूद्र । कहीं फकीर लोग उनकी मालाएं बनाकर गले में पहनते हैं । पद्ज-वि० [सं०] जो पैर से उत्पन्न हो । यह फल शराब बनाने के लिये विलायत भी भेजा जाता है। पदतल-तज्ञा पुं० [सं०] पैर का तलवा । इस वृक्ष की लकडी छडियाँ और पारायशी सामान बनाने के पदत्याग-सञ्ज्ञा पु० [सं०] अपने पद या प्रोहदे को छोड़ने की क्रिया । काम मे पाती है। कहते हैं, गर्भ न रहता हो तो इसकी